अरावली: आज के भारत से भी पुराना इतिहास, अब वजूद पर संकट

अरावली पर्वत तब बने थे जब गंगा नहीं थी. हिमालय नहीं था. महाद्वीप जुड़ रहे थे. जीवन की उत्पत्ति की शुरुआत हो रही थी. 250 करोड़ साल पुरानी इन पर्वतमालाओं की हाइट छोटी करने की बात कही जा रही है. ये तो ऐसा ही है जैसे इस दुनिया से छोटी ऊंचाई वाले जीवों को खत्म करने की बात कह दी जाए. जानिए इस फोल्डेड माउंटेन रेंज की कहानी...

Advertisement
जयपुर के आमेर पैलेस से दिखती अरावली की पहाड़ी और मावठा. (Photo: ITG/Getty) जयपुर के आमेर पैलेस से दिखती अरावली की पहाड़ी और मावठा. (Photo: ITG/Getty)

ऋचीक मिश्रा

  • नई दिल्ली,
  • 22 दिसंबर 2025,
  • अपडेटेड 6:56 AM IST

भारत की धरती पर फैली अरावली पर्वत श्रृंखला न केवल एक भौगोलिक चमत्कार है, बल्कि यह दुनिया की सबसे पुरानी पर्वत श्रृंखलाओं में से एक है. राजस्थान, हरियाणा, गुजरात और दिल्ली तक फैली यह श्रृंखला करीब 670 किलोमीटर लंबी है. इसका इतिहास पृथ्वी के प्राचीन काल से जुड़ा हुआ है.

वैज्ञानिकों के अनुसार, अरावली का निर्माण प्रोटेरोजोइक युग में हुआ था, जो लगभग 250-350 करोड़ साल पहले शुरू हुआ था. यह श्रृंखला न केवल भारत की जलवायु और पर्यावरण को प्रभावित करती है, बल्कि यह थार रेगिस्तान के फैलाव को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. 

Advertisement

अरावली का परिचय और उसका महत्व

अरावली पर्वत श्रृंखला उत्तर-पश्चिमी भारत में स्थित है, जो दक्षिण-पश्चिम दिशा में गुजरात के पालनपुर से शुरू होकर दिल्ली तक फैली हुई है. इसकी ऊंचाई औसतन 300 से 900 मीटर तक है. सबसे ऊंची चोटी गुरु शिखर है जो 1,722 मीटर ऊंची है. यह राजस्थान के इकलौते हिल स्टेशन माउंट आबू में है.

माउंट आबू के गुरु शिखर से दिखती अरावली पहाड़ियों की रेंज. (File Photo: Getty)

अरावली का नाम संस्कृत शब्द 'अरावलि' से आया है, जिसका अर्थ है- पत्थरों की पंक्ति. यह श्रृंखला भारत की प्राकृतिक दीवार की तरह काम करती है, जो थार रेगिस्तान के फैलाव को रोकती है. उत्तरी भारत को शुष्क हवाओं से बचाती है. यानी सूखी और गर्म हवाओं से.  

वैज्ञानिक दृष्टि से, अरावली दुनिया की सबसे पुरानी पर्वत श्रृंखलाओं में से एक है. जबकि हिमालय जैसी युवा पर्वत श्रृंखलाएं मात्र 5 करोड़ वर्ष पुरानी हैं. अरावली का इतिहास 250 करोड़ वर्ष से अधिक पुराना है. यह प्रोटेरोजोइक युग की देन है, जब पृथ्वी की क्रस्ट (यानी ऊपरी परत) में बड़े बदलाव हो रहे थे.

Advertisement

यह भी पढ़ें: थार को थामे खड़ी अरावली के अस्तित्व पर संकट? अगर मिट गई तो क्या होगा...

अरावली न केवल भूवैज्ञानिक इतिहास की किताब है. यह खनिजों से समृद्ध है. कई नदियों का स्रोत है, जैसे लूनी, बनास और साबरमती. इसके जंगल जैव विविधता से भरे हैं, जहां दुर्लभ पौधे और जानवर पाए जाते हैं.

अरावली का योगदान बहुआयामी है. यह पर्यावरण संतुलन बनाए रखती है. जल संरक्षण में मदद करती है. आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि यहां संगमरमर, जस्ता, तांबा जैसे खनिज पाए जाते हैं. लेकिन आजकल अवैध खनन और शहरीकरण के कारण इसकी स्थिति खतरे में है.  

अरावली का निर्माण: कैसे और कब बनीं ये पहाड़ियां?

अरावली पर्वत श्रृंखला का निर्माण एक लंबी भूवैज्ञानिक प्रक्रिया का परिणाम है, जिसे ओरोजेनी कहा जाता है. यानी  वह प्रक्रिया जिसमें पृथ्वी की टेक्टॉनिक प्लेटों के टकराने से पर्वत बनते हैं. अरावली का मामला थोड़ा अलग है क्योंकि यह बहुत प्राचीन है. यह प्रोटेरोजोइक युग (लगभग 2.5 अरब से 540 मिलियन वर्ष पहले) में बनी थी. विशेष रूप से इसका मुख्य निर्माण 1.8 अरब वर्ष पहले हुआ, जब प्राचीन क्रेटॉनों (पृथ्वी की पुरानी स्थिर क्रस्ट के टुकड़े) के टकराने से हुआ.

पृथ्वी की क्रस्ट कई प्लेटों में बंटी हुई है, जो मेंटल (पृथ्वी की दूसरी परत) के ऊपर तैरती रहती हैं. ये प्लेटें धीरे-धीरे चलती हैं, साल में कुछ सेंटीमीटर. जब दो प्लेटें टकराती हैं, तो क्रस्ट मुड़ जाती है. ऊपर उठती है और पर्वत बनते हैं. अरावली के मामले में, यह तीन प्रमुख क्रेटॉनों - बुंदेलखंड क्रेटॉन, राजस्थान क्रेटॉन और अन्य के टकराने से बनी. यह प्रक्रिया 'अरावली-दिल्ली ओरोजन' के नाम से जानी जाती है. 

Advertisement
अरावली रेंज में मौजूद जयगढ़ किले से दिखता जयपुर शहर का हिस्सा. (File Photo: Getty)

प्रोटेरोजोइक युग में, पृथ्वी पर महाद्वीप अलग-अलग थे. अरावली का निर्माण तब शुरू हुआ जब समुद्री तल की चट्टानें (जैसे ज्वालामुखी चट्टानें, कार्बोनेट और ग्रेनाइट से बनी चट्टानें) दबाव में आईं. यह एक 'यूजियोसिंक्लाइन' (समुद्री गर्त) में हुआ, जहां चट्टानें जमा होती रहीं. फिर टेक्टॉनिक दबाव से मुड़ीं. बैंडेड ग्नीस कॉम्प्लेक्स (BGC) इसका मुख्य हिस्सा है, जो 2.5 अरब वर्ष पहले पूरा हुआ. 

मुख्य ओरोजेनी 180 करोड़ साल पहले हुई, लेकिन इसका विकास 300 वर्ष पहले से शुरू हो चुका था. Pb आइसोटोप डेटा से पता चलता है कि विभिन्न खनिज जिलों में 36 सैंपल्स से उम्र का अनुमान लगाया गया है.

यह भी पढ़ें: अचानक तुर्की में बन गए 700 गड्ढे... पाताल में समाता जा रहा पूरा इलाका, Photos
 
यह श्रृंखला कब से अस्तित्व में है? लगभग 250 करोड़ साल से, लेकिन लगातार मिट्टी की परत खत्म होने (Erosion) के कारण इसकी ऊंचाई कम हुई है. आज यह पहाड़ियां पुरानी और घिसी हुई हैं, लेकिन उनकी चट्टानें प्राचीन इतिहास बताती हैं.

टेक्टॉनिक प्लेट थ्योरी के अनुसार, पृथ्वी की दूसरी परत यानी मेंटल में कन्वेक्शन करेंट्स (गर्मी से उत्पन्न धाराएं) प्लेटों को हिलाते हैं. जब प्लेटें टकराती हैं, तो सबडक्शन (एक प्लेट दूसरी के नीचे जाती है) या कोलिजन होता है. अरावली में यह कोलिजन था, जिससे फोल्ड माउंटेंस बने. यह प्रक्रिया बहुत धीमी थी. इसमें लाखों वर्ष लगे. ज्वालामुखी गतिविधि और मेटामॉर्फिज्म (चट्टानों का रूप बदलना) ने इसमें योगदान दिया. 

Advertisement

जब अरावली बनी, तब भारत कहां था और कैसा था?

अरावली जब बनी तब भारत कोलंबिया नाम के सुपरकॉन्टीनेंट का हिस्सा था. (Graphics: ITG)

अरावली के निर्माण के समय, भारत जैसा हम आज जानते हैं, वैसा नहीं था. यह प्रोटेरोजोइक युग था, जब पृथ्वी पर महाद्वीप अलग-अलग थे और सुपरकॉन्टिनेंट्स बन रहे थे. भारतीय उपमहाद्वीप उस समय 'कोलंबिया' नामक सुपरकॉन्टिनेंट का हिस्सा था, जो 180 से 150 करोड़ साल पहले था.

प्राचीन भूगोल के अनुसार भारतीय क्रेटॉन (जैसे धारवार, बुंदेलखंड, अरावली) उत्तर-दक्षिण और पूर्व-पश्चिम दिशा में जा रहे थे. बुंदेलखंड क्रेटॉन और भंडारा क्रेटॉन के बीच सतपुड़ा मोबाइल बेल्ट में टकराव हुआ. उस समय भारत की स्थिति भूमध्य रेखा के पास थी, लेकिन सटीक lat-long पेलियोमैग्नेटिक डेटा से आती है. धारवार और बुंदेलखंड क्रेटॉनों के पेलियोमैग्नेटिक अध्ययन से पता चलता है कि यह दक्षिणी गोलार्ध में था.

कैसा था भारत?... उस समय पृथ्वी पर जीवन मुख्य रूप से समुद्र में था - बैक्टीरिया, एल्गी. भूमि पर कोई पेड़-पौधे या जानवर नहीं थे. जलवायु गर्म और नम थी, क्योंकि वायुमंडल में ऑक्सीजन कम थी. महासागरों में आयरन-रिच पानी था, जो बैंडेड आयरन फॉर्मेशन्स बनाते थे. अरावली क्षेत्र में समुद्री गर्त थे, जहां प्रेशर क्रिएट हो रहा था. टकराव से ये प्रेशन निकलने लगे. इससे क्रस्ट की ऊपरी परत मुड़ने लगी. और पर्वत बने. भारत उस समय एक छोटा महाद्वीप था, जो बाद में गोंडवाना में शामिल हुआ. 

Advertisement
गोंडवाना के पास मौजूद भारत. (Graphics: ITG)

180 करोड़ साल पहले, अरावली बेसिन पैसिव मार्जिन से एक्टिव मार्जिन में बदल रहा था. यह क्षेत्र टेक्टोनिक रूप से सक्रिय था. ज्वालामुखी फट रहे थे. तब भूकंप आम थे. आज के भारत से बहुत अलग - कोई हिमालय नहीं, कोई गंगा के मैदान नहीं.

अरावली का योगदान: वैज्ञानिक दृष्टि से

अरावली का योगदान केवल सौंदर्य नहीं, बल्कि वैज्ञानिक और व्यावहारिक है. सबसे पहले...

पर्यावरणीय योगदान: यह 'भारत की प्राकृतिक हरी दीवार' है, जो थार रेगिस्तान को पूर्व की ओर फैलने से रोकती है. बिना अरावली के राजस्थान और हरियाणा ज्यादा शुष्क होते. यह मॉनसून हवाओं को प्रभावित करती है, वर्षा बढ़ाती है.

जल संरक्षण: अरावली कई नदियों का स्रोत है. ये नदियां कृषि और पीने के पानी के लिए महत्वपूर्ण हैं. वैज्ञानिक रूप से यह जल चक्र में मदद करती है - वर्षा का पानी चट्टानों में रिसता है और भूजल बनता है. एक तरह से प्राकृतिक स्पॉन्ज जैसा है, जो बारिश का पानी नीचे जमीन में भेजता है. 

यह भी पढ़ें: न सोना, न हीरा... ये है दुनिया की सबसे महंगी वस्तु, कीमत- 62 लाख करोड़ प्रति ग्राम

खनिज योगदान: अरावली खनिजों से भरपूर है. यहां जस्ता, सीसा, तांबा, चांदी और संगमरमर पाए जाते हैं. उदयपुर और राजसमंद क्षेत्र में खनन उद्योग फल-फूल रहा है.  

Advertisement

जैव विविधता: यह एक इकोलॉजिकल हॉटस्पॉट है. यहां 300 से ज्यादा पक्षी प्रजातियां, तेंदुआ, स्लॉथ बियर जैसे जानवर हैं. पौधों में नीम, बबूल, धोक जैसे. वैज्ञानिक अध्ययन दिखाते हैं कि यह क्षेत्र प्राचीन वनस्पति का संरक्षक है. जानवरों और वनस्पतियों का लंबा-चौड़ा कॉरिडोर है.

हरियाणा के गुरुग्राम में ऐसी दिखती हैं अरावली की पहाड़ियां. (File Photo: Getty)

सांस्कृतिक और ऐतिहासिक: अरावली में प्राचीन किले, मंदिर हैं. यह राजपूत इतिहास से जुड़ी है. यहां की चट्टानें पृथ्वी के इतिहास का अध्ययन करने के लिए महत्वपूर्ण हैं.

आर्थिक योगदान: खनन से रोजगार लेकिन पर्यावरणीय क्षति भी. वैज्ञानिकों का कहना है कि सतत विकास जरूरी है.

वर्तमान स्थिति और चुनौतियां

आज अरावली खतरे में है. अवैध खनन ने 20% क्षेत्र नष्ट कर दिया है. जलवायु परिवर्तन से वर्षा कम हो रही है. सरकार अरावली ग्रीन वॉल प्रोजेक्ट चला रही है. वैज्ञानिक सुझाव देते आए हैं कि यहां जंगल बचाना जरूरी है. और बनाना भी. खनन नियंत्रण जरूरी है. 

अरावली भारत की प्राचीन धरोहर है, जिसका निर्माण टेक्टॉनिक टकराव से हुआ. यह 250 करोड़ साल पुरानी है. उस समय भारत सुपरकॉन्टिनेंट का हिस्सा था. इसका योगदान पर्यावरण, अर्थव्यवस्था और विज्ञान में है. हमें इसे बचाना चाहिए. अरावली अगर खत्म हुआ तो दिल्ली-एनसीआर तक रेगिस्तान बनने में समय नहीं लगेगा.

---- समाप्त ----

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement