भारतीय राजनीति में परिवारवाद, भाई-भतीजावाद लंबे अरसे से विमर्श का हिस्सा रहे हैं. यूपी-बिहार जैसे हिंदी पट्टी के राज्य हों या तमिलनाडु और कर्नाटक, उत्तर से दक्षिण तक परिवारवाद की राजनीतिक की जड़ें गहरी रही हैं. उत्तर से दक्षिण भारत तक कई ऐसे उदाहरण मिलते हैं, जब पिता ने अपने पुत्र को सत्ता और अपनी सियासी विरासत सौंप दी हो. कुछ उदाहरण ऐसे भी मिलते हैं जब एक पिता ने पुत्र को अपनी ही बनाई पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया हो. इसका ताजा उदाहरण तमिलनाडु से सामने आया है.
अंबुमणि पीएमके से बाहर
तमिलनाडु में बीजेपी की सहयोगी पीएमके के संस्थापक एस रामदास ने अपने बेटे अंबुमणि रामदास को पार्टी से निकाल दिया है. एस रामदास ने पार्टी की कमान अब अपने हाथ में ले ली है. तमिलनाडु में पट्टाली मक्कल कच्ची (पीएमके) के संस्थापक एस रामदास ने अपने बेटे और पार्टी के पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष अंबुमणि को गुरुवार को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया. रामदास ने कहा, कि अंबुमणि पीएमके को बर्बाद करने की कोशिश कर रहे हैं. वह राजनेता बनने के लायक नहीं हैं और उन्होंने मनमाने ढंग से काम किया है. मेरे बगैर अंबुमणि कभी आगे नहीं बढ़ पाते.
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पित-पुत्र के विवाद की शुरुआत तब हुई जब अंबुमणि ने स्वतंत्र रूप से पार्टी कार्यक्रमों की अगुवाई करनी शुरू कर दी. वन्नियार समुदाय के लिए आंतरिक आरक्षण की मांग को लेकर आंदोलन का ऐलान कर दिया. इस आंदोलन में उनके पिता रामदास ने हिस्सा लेने से इनकार कर दिया था. मई में अपने पिता के साथ चल रहे विवाद के बीच अंबुमणि ने कहा था कि पीएमके सिर्फ एक पार्टी नहीं, यह एक बड़ा आंदोलन है. यह आंदोलन किसी व्यक्ति विशेष का नहीं है.
इस साल जुलाई में पार्टी की गवर्निंग बॉडी की बैठक पिता-पुत्रा ने अलग-अलग बुलाई थी. जुलाई में ही रामदास ने आरोप लगाया था कि अंबुमणि उनकी जासूसी की है. उनका आरोप है कि थाईलामपुर स्थित घर में टैपिंग डिवाइस लगाया गया था. अंबुमणि ने 2004 से 2009 तक मनमोहन सिंह सरकार में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री के रूप काम किया था.
केसीआर ने बेटी को किया सस्पेंड
भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) प्रमुख और तेलंगाना के पूर्व मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव (केसीआर) ने अपनी बेटी के. कविता को भारत राष्ट्र समिति से सस्पेंड कर दिया. कविता के खिलाफ यह कार्रवाई उनके ओर से पार्टी संगठन के वरिष्ठ नेताओं की सार्वजनिक आलोचना के बाद हुई है. पूर्व विधान परिषद सदस्य कविता ने अपने पिता चंद्रशेखर राव को राक्षसों से घिरा भगवान बताया था.
कविता ने अपने ही पार्टी के वरिष्ठ नेताओं हरिश राव और संतोष राव पर गंभीर आरोप लगाए थे. उन्होंने दावा किया कि इन नेताओं ने उनके पिता और बीआरएस सुप्रीमो चंद्रशेखर राव की छवि को बर्बाद करने की साजिश रची है. कविता का कहना है कि इस साजिश के पीछे तेलंगाना के मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी भी का हाथ है. बीआरएस पार्टी सूत्रों के अनुसार कविता जब से दिल्ली शराब घोटाले में गिरफ्तारी के बाद रिहा हुई हैं, तभी केसीआर ने उनसे दूरी बना ली है.
कविता की ये कहानी वाईएसआर कांग्रेस पार्टी के प्रमुख जगन मोहन रेड्डी की बहन वाईएस शर्मिला जैसी है. वाईएस शर्मिला ने संपत्ति विवाद के बाद आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे अपने भाई वाईएस जगनमोहन रेड्डी के खिलाफ बगावत कर दी थी. शर्मिला ने तेलंगाना में YSRTP नाम से अपनी पार्टी भी बनाई. हालांकि, उन्होंने बाद में अपनी पार्टी का कांग्रेस में विलय कर दिया था. इसके बाद वह आंध्र प्रदेश कांग्रेस कमेटी की अध्यक्ष बनाई गईं. हालांकि अब तक कविता ने भविष्य के कदम को लेकर कोई ऐलान नहीं किया है.
लालू यादव ने तेज प्रताप को निकाला
बिहार की मुख्य विपक्षी पार्टी और महागठबंधन की अगुवा राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के प्रमुख लालू यादव ने अपने बड़े बेटे तेज प्रताप यादव को छह साल के लिए पार्टी से निकाल दिया है. लालू ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर पोस्ट कर तेज प्रताप को गैर जिम्मेदाराना और सामाजिक मूल्यों के खिलाफ आचरण के लिए यह कार्रवाई करने की बात कही थी. तेज प्रताप के खिलाफ यह कार्रवाई उनके सोशल मीडिया हैंडल से हुई एक पोस्ट को लेकर हुई, जिसमें उनके 12 साल से अनुष्का यादव के साथ रिलेशनशिप में होने की बात कही गई थी.
तेज प्रताप यादव ने बाद में यह पोस्ट डिलीट कर एक अन्य पोस्ट में अकाउंट हैक किए जाने की बात कही थी. तेज प्रताप ने यह भी कहा था कि उन्हें और परिवार को बदनाम करने के लिए तस्वीरें एडिट कर पोस्ट की गई थीं. तेज प्रताप की सफाई काम नहीं आई और लालू यादव ने उन्हें छह साल के लिए पार्टी से निकाल दिया. बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू यादव ने कहा कि निजी जीवन में नैतिक ईमानदारी की कमी सामाजिक न्याय के लिए पार्टी की व्यापक लड़ाई को कमजोर करती है. तेज प्रताप का व्यवहार उनके पारिवारिक मूल्यों या परंपराओं को नहीं दर्शाता है.
मुलायम ने भी अखिलेश को निकाला था
बिहार के पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश में भी करीब नौ साल पहले इसी तरह का घटनाक्रम देखने को मिला था. 30 दिसंबर 2016 को सपा के तत्कालीन प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने अपने ही बेटे अखिलेश यादव को छह साल के लिए पार्टी से निकालने का ऐलान कर दिया था. सपा संस्थापक मुलायम सिंह ने लखनऊ में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कहा था कि हमने पार्टी को बचाने के लिए अखिलेश यादव को छह साल के लिए निष्कासित करने का फैसला किया है. हमारे लिए पार्टी सबसे महत्वपूर्ण है.
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अखिलेश तब यूपी के मुख्यमंत्री थे. मुलायम ने उसी प्रेस कॉन्फ्रेंस में यह भी कहा था कि अखिलेश अब सीएम नहीं हैं. सीएम कौन होगा, यह पार्टी तय करेगी. उन्हें सीएम मैंने ही बनाया था और वह अब मेरी सलाह भी नहीं लेते. मुलायम सिंह यादव के इस ऐलान के बाद अखिलेश ने अगले ही दिन सपा विधायक दल की बैठक बुला ली थी. अखिलेश की बैठक में तब सपा के 229 में से 200 से ज्यादा विधायक पहुंचे थे और मुख्यमंत्री के लिए उनका समर्थन किया थी.
सपा विधायक दल की बैठक में बहुमत को लेकर आश्वस्त हो जाने के बाद अखिलेश ने एक जनवरी 2017 को सपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक बुला ली थी. इस कार्यकारिणी के बाद राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद से मुलायम सिंह यादव को हटाकर अखिलेश की ताजपोशी का ऐलान कर दिया गया. मामला कोर्ट भी गया लेकिन पार्टी का निशान और कमान अखिलेश के ही पास रहे.
बिकाश कुमार सिंह