सीजफायर के बाद हमास और बागी कबीलों में सत्ता की लड़ाई, क्या लागू होते ही मटियामेट हो जाएगा गाजा पीस प्लान?

गाजा में इजराइली सेना तय की हुई सीजफायर लाइन तक पीछे हट चुकी है, लेकिन शांति अब भी नहीं आ सकी. युद्ध रुका तो गाजा पट्टी में अंदरुनी लड़ाई शुरू हो गई. पिछले कुछ दिनों में हमास और स्थानीय ताकतवर समूहों के बीच झड़प में कई लोग मारे गए. सत्ता की ये लड़ाई भी युद्ध जितनी ही खतरनाक साबित हो सकती है.

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बंधकों के बदले इजरायल फिलिस्तीनी कैदियों को छोड़ रहा है. (Photo- AP) बंधकों के बदले इजरायल फिलिस्तीनी कैदियों को छोड़ रहा है. (Photo- AP)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 17 अक्टूबर 2025,
  • अपडेटेड 11:35 AM IST

डोनाल्ड ट्रंप के शांति प्रस्ताव के बाद उम्मीद थी कि गाजा पट्टी में शांति लौट आएगी और रीकंस्ट्रक्शन पर काम चलने लगेगा. लेकिन वहां नई लड़ाई शुरू हो गई. इस बार बाहरी नहीं, बल्कि भीतरी ताकतें आपस में ही लड़-भिड़ रही हैं. दरअसल कुल जमा 41 किलोमीटर लंबे गाजा के भीतर कई स्थानीय समूह हैं, जो हमास के कमजोर होने की ताक में थे. अब वे एक्टिव हो चुके हैं. 

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अलग-अलग मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, पिछले कुछ दिनों में कथित तौर पर हमास ने भीड़भाड़ वाले इलाकों में आंखों पर पट्टी बांधकर कुछ लोगों को मार दिया. ऐसी कई वीडियोज वायरल हैं. हमास उन्हें इजरायल से जुड़े अपराधी बता रहा है. ये हत्याएं हमास द्वारा की गई सार्वजनिक हत्याओं की गिनती को बढ़ाते हुए 50 पार कर चुकीं. इंटरनेशनल ताकतों के दबाव में हमास ऊपरी तौर पर तो चुप हो चुका और इसपर भी राजी है कि वो गाजा पट्टी पर राज नहीं करेगा, लेकिन असल में वो इन हत्याओं के जरिए गाजा पर कंट्रोल बनाए रखना चाहता है. 

ट्रंप भी डराने-धमकाने के इन सिलसिलों से अनजान नहीं. उन्होंने हाल में सोशल मीडिया ट्रूथ पर कहा कि अगर हमास ऐसी हरकतें जारी रखता है तो हमारे पास उन्हें मारने के अलावा कोई विकल्प नहीं रहेगा. 

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लेकिन हमास डरा किसे रहा है

सीजफायर के बाद बंधकों और कैदियों का लेनदेन शुरू हो गया. हमास को हथियार डालने के लिए कहा गया. फिलहाल वो हां-ना के बीच अटका हुआ है. अलग फिलिस्तीन की जिद भले ही कुछ वक्त के लिए कोल्ड स्टोरेज में डाल दी जाए, लेकिन सत्ता का स्वाद जीभ से आसानी से उतरता नहीं दिखा. यही वजह है कि वो अपने ही लोगों पर आक्रामक होने लगा. बाहरी देशों से पटखनी खाया हुआ आतंकी गुट गाजा में दोबारा अपनी खोई साख पाने में लगा है. इधर स्थानीय कबीले भी हैं जो ताकत दिखाने में लगे हैं.

 (Photo- AP)

ये कबीले अलग-अलग पाले में हैं

कुछ हमास के वैचारिक विरोधी वेस्ट बैंक स्थित फतह से जुड़े हैं तो कुछ को इजराइल का समर्थन हासिल है. ये कबीले कौन हैं? गाजा में उनका क्या रोल है? और हमास के लिए वे कितना बड़ा खतरा ला सकते हैं?

गाजा में फैमिली क्लान या कबीले लंबे समय से मौजूद रहे. लेकिन वो किसी वायरस की तरह मौके के इंतजार में थे कि जैसे ही शरीर की इम्युनिटी कमजोर पड़े, वे हमला बोल दें. अब यही हो रहा है.

ये समूह गाजा के अलग-अलग हिस्सों में फैले हुए परिवारों का समूह हैं. सबसे बड़े और सबसे ज्यादा हथियारबंद कबीले में से एक है दुगमुष कबीला जो, गाजा सिटी में सक्रिय है. इसके पास बाकियों की तुलना में हथियार भी ज्यादा हैं और मैनपावर भी. सबसे बड़ी बात ये है कि इनके पास जनसमर्थन भी है. यही वजह है कि सीजफायर के तुरंत बाद हमास इस पर खासतौर पर हमलावर हो गया. 

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अल मजयदा कबीला भी खान यूनिस के एक हिस्से में ताकत रखता है. महीने की शुरुआत से ही हमास उस पर आक्रामक रहा और यहां तक कि इस परिवार के कई सदस्य खत्म हो गए. हालांकि इसी हफ्ते इस समूह ने हमास का सार्वजनिक तौर पर समर्थन किया. 

दिलचस्प ये है कि कबीलों और हमास में मारामारी भले हो लेकिन दोनों का रिश्ता लगातार बदलता रहता है. हमास के बहुत से सदस्य इन्हीं कबीलों से आते हैं. इसी तरह वेस्ट बैंक स्थित फतह के लोग भी कबीलों से निकले लड़ाके हैं. 

(Photo- AP)

कब और क्यों मजबूत हुए कबीले

कबीलों से यहां मतलब चुनिंदा खास परिवारों से है, जो एक वंशावली से हों. इजरायल के बनने के बाद से भी मिडिल ईस्ट में संघर्ष शुरू हो गया. गाजा से लोग भागने लगे. इस समय कबीलों ने मध्यस्थ और संरक्षक का रोल निभाना शुरू किया. लोगों का भरोसा उनपर बढ़ा. लेकिन वक्त के साथ सरकारें मजबूत हुईं और उनकी ताकत कम हो गई. हालांकि हर अस्थिरता के साथ वे दोबारा दिखने लगते हैं. जन समर्थन कमजोर भले पड़ा हो लेकिन खत्म नहीं हुआ. उनके पास अभी भी राजनीतिक असर और सैन्य ताकत काफी बची हुई है. 

इनकी पैठ का अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि साल 2007 में जब हमास ने गाजा पर कंट्रोल हासिल किया, तब कबीलों को राजी करने में उसे लगभग सालभर लग गया. 

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खुद को ताकतवर दिखाने की होड़

अब माना जा रहा है कि हमास के हटने के बाद सत्ता शून्य की स्थिति आ सकती है. इस बीच ये कबीले फिर अपनी ताकत दिखाने लगे. इधर हमास अपनी हार मानने को राजी नहीं. उसकी स्थिति ऐसे मुखिया की तरह है जो बाहर चोट खाने के बाद घर पर लोगों को डांटता है. वो हमले कर रहा है. 

यहीं पर एंट्री हुई इजरायल की. दुश्मन का दुश्मन दोस्त की क्लासिक थ्योरी पर काम करते हुए कथित तौर पर उसने इस कबीलों की मदद शुरू कर दी. जून में इजराइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने स्वीकार किया था कि उनकी सरकार गाजा स्थित कुछ मिलिशियाओं को हथियार दे रही है. यही वजह है कि सीजफायर का प्लान सामने आते ही हमास ने कबीलों से जुड़े लोगों को निशाना बनाना शुरू कर दिया.

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