बिहार के अररिया जिले में स्थित जोकीहाट एक सामान्य श्रेणी का विधानसभा क्षेत्र है, जो अररिया लोकसभा सीट का हिस्सा भी है. यह जोकीहाट प्रखंड और पड़ोसी पलासी प्रखंड के 11 पंचायतों को मिलाकर बना है.
यह क्षेत्र कोसी नदी की उपजाऊ जलोढ़ मैदानों में स्थित है, जिससे यहां धान, मक्का और जूट की खेती बड़े पैमाने पर होती है. स्थानीय अर्थव्यवस्था
मुख्य रूप से कृषि आधारित है, जिसे प्रवासी श्रमिकों से प्राप्त होने वाले धन से भी सहारा मिलता है. असमान भूमि स्वामित्व और गैर-कृषि कार्यों की कमी के चलते यहां मौसमी प्रवास एक प्रमुख सामाजिक-आर्थिक पहलू बना हुआ है. बुनियादी ढांचे में धीरे-धीरे सुधार हो रहा है. ग्रामीण सड़कों की स्थिति बेहतर हुई है और मोबाइल नेटवर्किंग ने कनेक्टिविटी बढ़ाई है.
जोकीहाट, जिला मुख्यालय अररिया से लगभग 25 किलोमीटर दक्षिण-पूर्व में स्थित है. उत्तर-पश्चिम में फॉर्ब्सगंज और दक्षिण-पश्चिम में लगभग 60 किलोमीटर दूर पूर्णिया स्थित है. सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन अररिया कोर्ट है, जो राष्ट्रीय राजमार्ग-57 से सड़क मार्ग द्वारा जुड़ा हुआ है. राज्य की राजधानी पटना यहां से लगभग 350 किलोमीटर दूर है.
1967 में स्थापित इस सीट पर अब तक 16 बार चुनाव हो चुके हैं, जिनमें दो उपचुनाव 1996 और 2008 में हुए. इस सीट की एक अनोखी बात यह है कि यहां से अब तक सभी विधायक मुस्लिम समुदाय से ही चुने गए हैं. इसका कारण क्षेत्र की जनसांख्यिकी है, जहां मुसलमान मतदाताओं की संख्या लगभग 65.70% है.
इस सीट की राजनीति पर लंबे समय तक वरिष्ठ नेता मोहम्मद तस्लीमुद्दीन और उनके परिवार का प्रभाव रहा है. तस्लीमुद्दीन और उनके बेटों ने कुल 16 में से 11 बार इस सीट पर कब्जा जमाया. उन्होंने कांग्रेस (1969), निर्दलीय (1972), जनता पार्टी (1977, 1985), और समाजवादी पार्टी (1995) से जीत हासिल की. केंद्र की देवेगौड़ा और मनमोहन सिंह सरकारों में वे राज्य मंत्री भी रहे.
1996 में तस्लीमुद्दीन के राष्ट्रीय राजनीति में जाने के बाद उनके बेटे सरफराज आलम ने राजनीतिक विरासत संभाली. उन्होंने 1996 के उपचुनाव में जनता दल से और 2000 में राजद से जीत दर्ज की. 2005 में हार के बाद उन्होंने 2010 और 2015 में जदयू के टिकट पर वापसी की, लेकिन बाद में निलंबन के चलते दोबारा राजद में लौट आए.
2020 के चुनाव में एक बड़ा उलटफेर हुआ जब सरफराज ने राजद के टिकट पर चुनाव लड़ा, लेकिन उन्हें उनके छोटे भाई शाहनवाज आलम ने हरा दिया, जो उस समय AIMIM के टिकट पर चुनाव लड़ रहे थे. शाहनवाज ने 7,383 वोटों से जीत हासिल की और बाद में राजद में शामिल हो गए. इससे पारिवारिक संघर्ष गहरा गया है और 2025 में संभावना है कि जिसे भी टिकट नहीं मिलेगा, वह किसी अन्य पार्टी से चुनाव मैदान में उतर सकता है, जिससे मुकाबला काफी दिलचस्प हो सकता है.
पार्टीवार आंकड़ों के अनुसार, जदयू ने अब तक चार बार जीत दर्ज की है, जबकि कांग्रेस, जनता पार्टी, राजद और निर्दलीय उम्मीदवारों ने दो-दो बार जीत हासिल की है. प्रजा सोशलिस्ट पार्टी, जनता दल, समाजवादी पार्टी और AIMIM ने एक-एक बार जीत हासिल की है.
2020 विधानसभा चुनाव में जोकीहाट में कुल 2,93,347 पंजीकृत मतदाता थे, जिनमें मुस्लिम मतदाता लगभग 1,92,728 (65.70%) और अनुसूचित जाति के मतदाता करीब 22,001 (7.5%) थे. 2024 के लोकसभा चुनाव तक मतदाता संख्या बढ़कर 3,05,595 हो गई थी, हालांकि 3,521 मतदाता प्रवास कर चुके थे.
2024 के लोकसभा चुनाव में अररिया सीट से भाजपा के प्रदीप कुमार सिंह ने जीत हासिल की, लेकिन जोकीहाट विधानसभा क्षेत्र में उन्हें राजद के प्रत्याशी और वर्तमान विधायक शाहनवाज आलम से 64,968 वोटों से करारी शिकस्त मिली. यह उस परंपरा को जारी रखता है, जहां भाजपा ने कभी जोकीहाट नहीं जीता. भाजपा हमेशा हिंदू उम्मीदवारों को मैदान में उतारती रही है, यह मानकर कि मुस्लिम वोटों के बंटवारे से फायदा होगा, लेकिन ऐसा कभी नहीं हुआ.
राजद के लिए तस्लीमुद्दीन की राजनीतिक विरासत अब भी एक मजबूत आधार है, लेकिन AIMIM की मौजूदगी और जदयू द्वारा संभावित मुस्लिम उम्मीदवार को उतारने की तैयारी से मुकाबला रोचक हो गया है. पारिवारिक प्रतिद्वंद्विता, पार्टी की रणनीतियां और जनसंख्या का साम्प्रदायिक संतुलन- इन सबके बीच जोकीहाट बिहार की राजनीति का एक प्रमुख केंद्र बना हुआ है.
(अजय झा)