किशनगंज बिहार में एक जिला है, जो एक विधानसभा क्षेत्र है और किशनगंज लोकसभा सीट का हिस्सा है. यह सीट वर्ष 1951 में स्थापित हुई थी और सामान्य श्रेणी के अंतर्गत आती है. इस क्षेत्र में किशनगंज नगरपालिका, किशनगंज प्रखंड के कुछ हिस्से और पूरा पोठिया प्रखंड शामिल है.
किशनगंज की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि इसकी सांस्कृतिक और राजनीतिक यात्रा को दर्शाती
है. कहा जाता है कि खगड़ा नवाब मोहम्मद फकीरुद्दीन के समय एक हिंदू संत ने "आलमगंज" नामक स्थान में प्रवेश करने से मना कर दिया था, क्योंकि उस क्षेत्र, नदी (रमज़ान) और नवाब के नाम में "इस्लामी प्रतीक" शामिल थे. इसके बाद नवाब ने किशनगंज गुड़री से लेकर रमज़ान पूल गांधी घाट तक के हिस्से का नाम बदलकर "कृष्ण-कुंज" कर दिया. इस क्षेत्र को पहले "नेपालगंज" भी कहा जाता था और ऐसा माना जाता है कि यह नेपाल का हिस्सा था जिसे मुगलों ने अपने अधीन कर लिया था. समय के साथ यह नाम "किशनगंज" में परिवर्तित हो गया.
यह क्षेत्र कई ऐतिहासिक और धार्मिक स्थलों का केंद्र रहा है. ठाकुरगंज ब्लॉक में चुरली एस्टेट के खंडहर, जो अब जर्जर स्थिति में हैं, एक प्रसिद्ध आकर्षण हैं.
हरगौरी मंदिर, ठाकुरगंज में स्थित, टैगोर एस्टेट के ज़मींदार द्वारा तब बनवाया गया जब उन्हें शिव-पार्वती की जुड़ी हुई मूर्ति मिली. मान्यता है कि भगवान शिव ने सपने में आकर मूर्ति को वहीं स्थापित करने का निर्देश दिया था. शिवरात्रि पर यहां भारी भीड़ होती है.
बनदर्जूला गांव, बेनूगढ़ में खुदाई के दौरान विष्णु और सूर्य देव की प्राचीन मूर्तियां मिलीं, जिससे यह स्थान एक स्थानीय तीर्थ स्थल बन गया है.
किशनगंज शहर में स्थित खानकाह, एक मुस्लिम सूफी संत की मजार है, जहां अब भी श्रद्धालु बड़ी संख्या में आते हैं.
किशनगंज पूर्वी हिमालय की तलहटी में बसा हुआ है और महानंदा, मेची और कंकई जैसी नदियों से सिंचित उपजाऊ मैदानों का हिस्सा है. यह बिहार का एकमात्र इलाका है जहां वाणिज्यिक स्तर पर चाय की खेती होती है. इस कारण इसे अक्सर दार्जिलिंग और पूर्वोत्तर भारत का प्रवेश द्वार भी कहा जाता है. यहां की अर्थव्यवस्था मुख्यतः कृषि पर आधारित है- धान, मक्का, जूट और केले प्रमुख फसलें हैं. चाय की खेती और व्यापार ने जिले की आर्थिक स्थिति को एक विशिष्ट पहचान दी है.
किशनगंज शहर रेल और सड़क दोनों माध्यमों से अच्छी तरह जुड़ा है. यह दिल्ली-गुवाहाटी रेलमार्ग पर स्थित है. पास के प्रमुख स्थानों में इस्लामपुर (30 किमी), सिलीगुड़ी (90 किमी), और पटना (400 किमी) हैं. निकटतम हवाई अड्डा बागडोगरा (लगभग 90 किमी) है. अन्य आसपास के कस्बों में बहादुरगंज (25 किमी), ठाकुरगंज (35 किमी), और अररिया (70 किमी) शामिल हैं.
किशनगंज विधानसभा क्षेत्र में अब तक 19 बार चुनाव हो चुके हैं. इनमें से कांग्रेस ने 10 बार, राजद ने 3 बार, जबकि स्वतंत्र पार्टी, प्रजा सोशलिस्ट पार्टी, जनता पार्टी (सेक्युलर), लोकदल, जनता दल और एआईएमआईएम ने एक-एक बार जीत दर्ज की है.
यह मुस्लिम बहुल क्षेत्र है, जहां से 17 बार मुस्लिम उम्मीदवार विजयी रहे हैं. प्रजा सोशलिस्ट पार्टी की सुशीला कपूर इस क्षेत्र से जीतने वाली अंतिम हिंदू उम्मीदवार थीं, जिन्होंने 1967 में चुनाव जीता था.
बीजेपी की स्वीटी सिंह इस सीट पर कई बार जीत के करीब पहुंचीं. वह 2010 में सिर्फ 264 वोटों से और 2020 में 1,381 वोटों से हार गईं. 2015 में जब झामुमो और सीपीएम के हिंदू उम्मीदवार भी मैदान में थे, तब हिंदू वोट बंट गया और उनकी हार का अंतर बढ़कर 8,609 हो गया. आमतौर पर उनकी नजदीकी हार मुस्लिम वोटों के विभाजन की वजह से संभव हो सकी.
2020 विधानसभा चुनाव: कांग्रेस के इजहाऱुल हुसैन ने 61,078 वोटों से जीत दर्ज की. बीजेपी की स्वीटी सिंह को 59,697 और एआईएमआईएम के कमरुल होदा को 41,904 वोट मिले.
2024 लोकसभा चुनाव: कांग्रेस के मोहम्मद जावेद को इस विधानसभा क्षेत्र में 19,608 वोटों की बढ़त मिली, जबकि एआईएमआईएम तीसरे स्थान पर रही.
2020 में यहां कुल 2,93,565 मतदाता थे, जिनमें अनुसूचित जाति- 5.85% (17,174), अनुसूचित जनजाति- 4.78% (14,032), मुस्लिम मतदाता- 60.9% (1,78,781), ग्रामीण मतदाता- 74.89% (2,19,851), शहरी मतदाता- 25.11% (73,714) शामिल हैं.
2024 में यह संख्या बढ़कर 3,16,867 हो गई, जबकि 2020 की सूची में दर्ज 4,639 मतदाता क्षेत्र से बाहर चले गए. मतदान प्रतिशत में गिरावट देखी गई. 2015 में 66.63% से घटकर 2020 में 60.86% रह गया.
हालांकि बीजेपी अब तक इस सीट पर जीत हासिल नहीं कर सकी है, लेकिन यदि हिंदू वोट एकजुट होता है और एआईएमआईएम मुस्लिम वोटों में फिर से सेंध लगा पाती है, तो बीजेपी को उम्मीद हो सकती है. फिर भी कांग्रेस मजबूत स्थिति में है और आगामी चुनाव में मुकाबला त्रिकोणीय होने की पूरी संभावना है.
(अजय झा)