बिहार के कटिहार जिले के दक्षिण-पूर्वी कोने में स्थित मनिहारी विधानसभा क्षेत्र अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए आरक्षित है और यह कटिहार लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आता है. 2008 की परिसीमन अधिसूचना के अनुसार, यह मनिहारी, मनसाही और अमदाबाद प्रखंडों को सम्मिलित करता है.
मनिहारी गंगा नदी के किनारे बसा है और यहां का नदी बंदरगाह एवं फेरी सेवा इसे
झारखंड के साहेबगंज से जोड़ती है. यह इलाका गंगा और महानंदा नदियों द्वारा निर्मित उपजाऊ एवं समतल भू-भाग है, लेकिन यह क्षेत्र हर साल बाढ़ और कटाव जैसी प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित रहता है.
रेल और सड़क दोनों से मनिहारी अच्छी तरह जुड़ा हुआ है. मनिहारी रेलवे स्टेशन, कटिहार जंक्शन से जुड़ा हुआ है और यहां से उत्तर बंगाल तथा असम तक रेल संपर्क है. कटिहार–मनिहारी रोड मुख्य सड़क मार्ग है. यह विधानसभा क्षेत्र कटिहार से लगभग 35 किमी, पटना से 290 किमी और सिलीगुड़ी से लगभग 160 किमी दूर है.
यहां की अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से कृषि पर आधारित है, जिसमें धान, मक्का और जूट प्रमुख फसलें हैं. मछली पालन और नदी आधारित व्यापार, विशेष रूप से मनिहारी नगर में, आमदनी के अन्य स्रोत हैं. क्षेत्र में कोई बड़ा उद्योग नहीं है, लेकिन छोटे व्यवसाय और प्रवासी श्रमिकों की आय स्थानीय अर्थव्यवस्था को सहारा देती है.
गंगा किनारे बसे मनिहारी को व्यापार और धार्मिक गतिविधियों का ऐतिहासिक केंद्र माना जाता है. फरक्का रेल पुल के बनने से पहले, यहां का नदी बंदरगाह उत्तर बंगाल और असम से फेरी मार्ग के ज़रिए जुड़ा हुआ था. माघ पूर्णिमा और छठ के अवसर पर मनिहारी घाट पर भारी भीड़ उमड़ती थी. 1811 में ब्रिटिश सर्वेक्षक फ्रांसिस बुकेनन ने उल्लेख किया कि सालाना मेले में यहां लगभग चार लाख तीर्थयात्री जुटते थे.
यह नगर गौरिशंकर मंदिर, 19वीं सदी की हज घरशाही मस्जिद और संतमत सत्संग कुटी जैसे धार्मिक स्थलों का घर है, जहां महर्षि मेंहीं ने वर्षों तक साधना की थी.
मनिहारी विधानसभा क्षेत्र की स्थापना 1951 में हुई थी और अब तक यहां 17 बार विधानसभा चुनाव हो चुके हैं. इनमें कांग्रेस ने सात बार जीत हासिल की, जबकि विभिन्न समाजवादी दलों ने दस बार विजय प्राप्त की. समाजवादी नेता युवराज ने लगातार चार बार (तीन बार प्रजा सोशलिस्ट पार्टी और एक बार संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी से) जीत हासिल की.
2008 में परिसीमन के बाद इसे अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित कर दिया गया, जिससे यह बिहार की केवल दो एसटी आरक्षित सीटों में शामिल हो गया (दूसरी सीट कटोरिया, बांका में है).
इसके बाद से इस सीट का प्रतिनिधित्व सिर्फ एक व्यक्ति, मनोहर प्रसाद सिंह ने किया है. 2010 में वे जनता दल (यूनाइटेड) के टिकट पर 4,165 वोटों से जीतकर विधायक बने. जब जदयू ने राजद के नेतृत्व वाले महागठबंधन में शामिल होकर यह सीट कांग्रेस को दे दी, तब सिंह कांग्रेस में शामिल हो गए और 2015 का चुनाव 13,680 वोटों से जीता. 2020 में उन्होंने यह सीट 21,209 वोटों के बड़े अंतर से बरकरार रखी.
2020 में मनिहारी में कुल 2,87,266 पंजीकृत मतदाता थे. इनमें 37,258 (12.97%) अनुसूचित जनजाति, 20,970 (7.30%) अनुसूचित जाति और 1,11,746 (38.90%) मुस्लिम समुदाय के थे. यह क्षेत्र अत्यधिक ग्रामीण है, जहां शहरी मतदाताओं की संख्या केवल 6.01% है. यहां संथाल और उरांव समुदायों की उपस्थिति प्रमुख है.
मतदान प्रतिशत सामान्यतः 60 से 65 प्रतिशत के बीच रहा है, विशेष रूप से जनजातीय इलाकों में वोटिंग प्रतिशत अधिक रहता है.
मनिहारी को आज भी नदी कटाव, खराब सड़क संपर्क, सीमित स्वास्थ्य सेवाएं और विशेषकर जनजातीय महिलाओं में कम साक्षरता जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है. हर वर्ष आने वाली बाढ़ जीवन और कृषि दोनों को बाधित करती है. हालांकि, ग्रामीण विद्युतीकरण, स्कूल नामांकन, और पंचायत स्तर के बुनियादी ढांचे में कई सरकारी योजनाओं के जरिए सुधार देखा गया है.
2015 और 2020 में कांग्रेस की जीत के बाद, 2024 के लोकसभा चुनावों में भी कांग्रेस को मनिहारी विधानसभा क्षेत्र में बढ़त मिली. कांग्रेस के उम्मीदवार तारिक अनवर ने इस क्षेत्र में अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी पर 9,637 वोटों की बढ़त हासिल की, जिससे यह संकेत मिलता है कि आगामी विधानसभा चुनावों में कांग्रेस मनिहारी में मजबूत स्थिति में है.
(अजय झा)