सिकटी बिहार के अररिया जिले का एक प्रखंड-स्तरीय कस्बा है, जो अररिया लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा है. इसे पहले पालासी के नाम से जाना जाता था. वर्ष 1951 में पालासी विधानसभा क्षेत्र की स्थापना हुई और 1972 तक यही नाम बना रहा. 1977 के चुनाव से इसका नाम बदलकर सिकटी कर दिया गया. 2008 के परिसीमन के बाद इसमें सिकटी और कुरसाकांटा प्रखंड तथा पालासी प्रखंड की
10 ग्राम पंचायतें शामिल की गईं. यह पूर्णतः ग्रामीण क्षेत्र है, यहां शहरी मतदाता नहीं हैं.
सिकटी अररिया जिले के उत्तरी हिस्से में भारत-नेपाल सीमा के क़रीब स्थित है. यह अररिया से लगभग 35 किमी उत्तर और राज्य की राजधानी पटना से करीब 330 किमी उत्तर-पूर्व में है. आसपास के प्रमुख कस्बों में फारबिसगंज (28 किमी पश्चिम), जोकीहाट (25 किमी दक्षिण), किशनगंज (60 किमी पूर्व) और बहादुरगंज (45 किमी दक्षिण-पूर्व) शामिल हैं. नेपाल की ओर बिराटनगर केवल 35 किमी दूर है, जबकि रंगेली, उर्लाबारी और धरान भी 50-70 किमी की दूरी पर स्थित हैं. सड़क मार्ग से बिहार और नेपाल दोनों से जुड़ाव है तथा रेलवे की सुविधा अररिया और फारबिसगंज से उपलब्ध है.
यहां की जमीन समतल और उपजाऊ है. मानसून में पानी भराव आम समस्या है. कृषि यहां की मुख्य आर्थिक गतिविधि है. धान, गेहूं, मक्का और सरसों प्रमुख फसलें हैं, जबकि दलहन और जूट कुछ क्षेत्रों में उगाई जाती हैं. पशुपालन और डेयरी से भी आमदनी होती है. स्थानीय साप्ताहिक बाजार लगते हैं, जबकि बड़े व्यापार और सेवाओं के लिए लोग अररिया और फारबिसगंज पर निर्भर रहते हैं. कृषि के अलावा रोजगार के अवसर सीमित हैं, जिस कारण लोग बेरोज़गारी के मौसम में बाहर पलायन करते हैं। नेपाल के साथ अनौपचारिक व्यापार भी यहां की एक खासियत है.
अब तक सिकटी (पूर्व में पालासी) में 17 विधानसभा चुनाव हो चुके हैं. पालासी नाम से हुए शुरुआती छह चुनावों में कांग्रेस तीन बार, निर्दलीय प्रत्याशी दो बार और स्वातंत्र्य पार्टी एक बार विजयी रही. 1977 से सिकटी नाम के तहत हुए 11 चुनावों में भाजपा चार बार, कांग्रेस तीन बार, निर्दलीय दो बार तथा जनता दल और जदयू एक-एक बार जीत चुके हैं.
सिकटी की राजनीति में मोहम्मद अज़ीमुद्दीन का दबदबा लंबे समय तक रहा. उन्होंने कुल पांच बार जीत दर्ज की. 1962 में स्वातंत्र्य पार्टी से, 1967 और 1969 में निर्दलीय, 1977 में फिर निर्दलीय और 1990 में जनता दल से उन्होंने जीत हासिल की. 2000 में उनकी आखिरी लड़ाई भाजपा के आनंदी प्रसाद यादव से थी, जिसमें उन्हें हार का सामना करना पड़ा.
2010 से सिकटी सीट भाजपा के कब्जे में है. आनंदी प्रसाद यादव ने दूसरी बार जीत दर्ज की और उसके बाद विजय कुमार मंडल लगातार तीन बार (2010, 2015, 2020) से सीट पर काबिज हैं. 2020 में उन्होंने आरजेडी के शत्रुघ्न प्रसाद सुमन को 13,610 वोटों से हराया.
लोकसभा चुनावों में भी भाजपा का दबदबा दिखता है. 2019 में भाजपा को सिकटी क्षेत्र से 58,319 वोटों की बढ़त मिली, जो 2024 में घटकर 37,252 रह गई, लेकिन फिर भी अंतर काफी बड़ा रहा.
2020 विधानसभा चुनाव में यहां 2,88,031 पंजीकृत मतदाता थे, जिनमें 92,457 मुस्लिम (32.10%) और 36,810 अनुसूचित जाति (12.78%) के मतदाता शामिल थे. 2024 तक मतदाताओं की संख्या बढ़कर 3,00,389 हो गई. पूरी तरह ग्रामीण क्षेत्र होने के बावजूद यहां मतदान प्रतिशत काफी अच्छा रहता है. 2020 में यह 62.36% रहा.
भाजपा के लगातार तीन कार्यकाल और लोकसभा में भारी बढ़त को देखते हुए सिकटी में राजद गठबंधन के लिए राह आसान नहीं है. सत्तारूढ़ दल को चुनौती देने के लिए विपक्ष को मजबूत रणनीति और बेहतर तालमेल की जरूरत होगी.
(अजय झा)