पूर्णिया, उत्तर बिहार के मिथिला क्षेत्र का एक हिस्सा. यह बिहार का चौथा सबसे बड़ा शहर और एक उभरता हुआ आर्थिक केंद्र है, जिसका एक दिलचस्प इतिहास है. इसका नाम संस्कृत शब्द "पूर्ण-अरण्य" से पड़ा है, जिसका अर्थ है "संपूर्ण जंगल". यह सौरा नदी के तट पर बसा हुआ है. ब्रिटिश उपनिवेशवाद से पहले तक यह घना जंगल था, जहां बहुत कम लोग बसते थे. लेकिन यूरोपियों
को इसकी उपजाऊ भूमि, प्रचुर संसाधन और अनुकूल जलवायु आकर्षित करने लगी, जिससे इसे "मिनी दार्जिलिंग" का उपनाम मिला. हालांकि, अब गर्मियां अधिक कठोर हो गई हैं, फिर भी पूर्णिया बिहार में सबसे अधिक वर्षा वाला क्षेत्र है, जहां आर्द्रता 70 प्रतिशत से अधिक रहती है.
शुरुआत में, यूरोपीयंस शहर के केंद्र में स्थित सौरा नदी के आसपास बसे, जिसे अब रामबाग के नाम से जाना जाता है. उन्होंने जमींदारी अधिकार खरीदे, व्यापार किया और नील तथा अन्य फसलों की खेती शुरू की. अंग्रेज किसानों ने पूर्णिया के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, और आज भी उनके प्रभाव के अवशेष यहां देखे जा सकते हैं.
पूर्णिया सामरिक रूप से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह भारतीय सेना और वायु सेना के प्रमुख ठिकानों की मेजबानी करता है. इसके अलावा, भारत के केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों की पांच शाखाओं में से तीन- सीमा सुरक्षा बल (BSF), सशस्त्र सीमा बल (SSB) और भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP) यहां मौजूद हैं.
राजनीतिक रूप से भी पूर्णिया का इतिहास दिलचस्प रहा है. 1951 में स्थापित पूर्णिया विधानसभा सीट, पूर्णिया लोकसभा क्षेत्र की छह विधानसभा सीटों में से एक है. अब तक यहां 19 विधानसभा चुनाव (दो उपचुनाव सहित) हो चुके हैं. शुरू में कांग्रेस ने लगातार छह बार जीत हासिल की, लेकिन 1977 में इंदिरा गांधी विरोधी लहर के दौरान जनता पार्टी ने यहां से जीत दर्ज की. इसके बाद, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPM) ने लगातार पांच चुनाव जीते, लेकिन 2000 से भाजपा ने अपना दबदबा कायम करते हुए लगातार सात बार जीत दर्ज की.
2015 से भाजपा के विजय कुमार खेमका इस सीट से विधायक हैं. 2020 के चुनाव में उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी को 32,000 से अधिक मतों से हराया था. इस सीट पर सबसे पहले कांग्रेस के कमलदेव नारायण सिन्हा ने जीत दर्ज की थी, जिन्होंने 1952 से 1972 के बीच छह बार चुनाव जीता. 1977 में जनता पार्टी के देव नाथ रॉय ने तीन वर्षों तक इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया. इसके बाद 1980 से 1998 तक CPM के अजीत सरकार ने लगातार चार बार चुनाव जीता.
अजीत सरकार की राजनीतिक यात्रा 14 जून 1998 को उनके ड्राइवर और एक पार्टी कार्यकर्ता के साथ दिनदहाड़े हत्या के बाद समाप्त हो गई. इस हत्याकांड के लिए पप्पू यादव जिम्मेदार थे, जो वर्तमान में पूर्णिया के सांसद हैं. पप्पू यादव, जिन्हें लालू प्रसाद यादव के "जंगल राज" के दौरान राजनीति में लाया गया था, 2008 में हत्या के आरोप में दोषी ठहराए गए और आजीवन कारावास की सजा प्राप्त की, जिससे वे चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य हो घोषित हुए. हालांकि, बाद में जब वे इस हत्या के मामले से बरी हो गए, तो 2014 से उन्होंने फिर से चुनाव लड़ना शुरू कर दिया.
अजीत सरकार की हत्या के बाद उनकी पत्नी माधवी सरकार ने 1998 के उपचुनाव में CPM के टिकट पर जीत दर्ज की, लेकिन इसके बाद यह सीट वाम दलों से दक्षिणपंथी दलों की ओर झुक गई.
हालांकि भाजपा ने 2020 के विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज की थी, लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने पूर्णिया विधानसभा क्षेत्र में बढ़त हासिल कर ली. इसका मुख्य कारण पप्पू यादव का प्रभाव था, जिन्होंने कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा. यादव का पूर्णिया पर जबरदस्त पकड़ है, क्योंकि उन्होंने अब तक छह बार लोकसभा सांसद के रूप में चुनाव लड़ा है, जिसमें से चार बार पूर्णिया सीट से जीत हासिल की है. उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर दो बार, समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार के रूप में एक बार और एक बार निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में यह सीट जीती है.
पूर्णिया एक हिंदू-बहुल क्षेत्र है, जहां हिंदू आबादी 75.19 प्रतिशत है, जबकि मुस्लिम आबादी 23.26 प्रतिशत है. पूर्णिया विधानसभा क्षेत्र में अनुसूचित जाति (SC) की जनसंख्या लगभग 11.14 प्रतिशत है, जबकि अनुसूचित जनजाति (ST) की जनसंख्या लगभग 5.99 प्रतिशत है. मुस्लिम मतदाता यहां की कुल मतदाता संख्या का लगभग 25.7 प्रतिशत हैं. वहीं, ग्रामीण मतदाता 36.63 प्रतिशत और शहरी मतदाता 63.38 प्रतिशत हैं. 2020 के विधानसभा चुनावों में पूर्णिया विधानसभा क्षेत्र में कुल 3,12,793 मतदाता थे, जो 2024 के लोकसभा चुनावों में बढ़कर 3,29,903 हो गए.
पूर्णिया ऐतिहासिक रूप से उत्तर बिहार का एक प्रमुख शैक्षणिक केंद्र रहा है. प्रसिद्ध हिंदी साहित्यकार फणीश्वर नाथ रेणु और बॉलीवुड अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत इसी मिट्टी के सपूत रहे हैं.
(अजय झा)