कोढ़ा विधानसभा क्षेत्र बिहार के कटिहार जिले में स्थित है जो पूर्णिया लोकसभा सीट का हिस्सा है. इस क्षेत्र की स्थापना 1967 में की गई थी और तभी से यह अनुसूचित जाति (SC) के लिए आरक्षित है. कोढ़ा और फलका प्रखंड इस विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत आते हैं.
कोढ़ा एक प्रखंड स्तरीय कस्बा है जो राष्ट्रीय राजमार्ग 31 पर स्थित है. यह कटिहार से लगभग 22
किलोमीटर उत्तर-पश्चिम और पूर्णिया से 35 किलोमीटर दक्षिण-पूर्व में स्थित है. गंगा नदी यहां से मात्र 15 किलोमीटर दक्षिण में बहती है, जबकि नेपाल की सीमा लगभग 81 किलोमीटर उत्तर में है. इसके आसपास के प्रमुख शहरों में किशनगंज (90 किमी), भागलपुर (130 किमी) और सिलीगुड़ी (170 किमी) शामिल हैं. कोढ़ा राजधानी पटना से 280 किलोमीटर पूर्व और दरभंगा से लगभग 153 किलोमीटर दूर है.
कोढ़ा और इसके आसपास के क्षेत्र का इतिहास प्रवास और औद्योगिक परिवर्तनों से जुड़ा हुआ है. भारत-पाक विभाजन के दौरान पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) से आए हिंदू शरणार्थी यहां बस गए थे. पहले यह क्षेत्र जूट उद्योग के लिए प्रसिद्ध था, जिससे बिहार के अन्य हिस्सों, वर्तमान झारखंड के आदिवासी समुदायों और नेपाली प्रवासियों को रोजगार मिला. अब यहां की अर्थव्यवस्था मुख्यतः कृषि पर आधारित है, जिसमें धान, गेहूं, मक्का, जूट और केले प्रमुख फसलें हैं. कोसी-गंगा के मैदानी इलाके की उपजाऊ जलोढ़ मिट्टी इस कृषि को सहयोग करती है. कुछ लोग मखाना प्रसंस्करण और मौसमी व्यापार में लगे हैं, लेकिन बड़े पैमाने पर उद्योग की उपस्थिति नहीं है.
कोढ़ा विधानसभा क्षेत्र ने अब तक 14 बार चुनाव देखे हैं. इनमें कांग्रेस ने छह बार, बीजेपी ने तीन बार और जनता दल ने दो बार जीत दर्ज की है. लोकतांत्रिक कांग्रेस, जनता पार्टी और जेडीयू ने एक-एक बार इस सीट पर जीत हासिल की है. एक समय में कांग्रेस का गढ़ माने जाने वाले इस क्षेत्र में पिछले कुछ वर्षों में बीजेपी का प्रभाव बढ़ा है.
बिहार के पहले अनुसूचित जाति मुख्यमंत्री भोला पासवान शास्त्री ने कोढ़ा से लगातार तीन बार जीत हासिल की थी. वे 1967 और 1972 में कांग्रेस के टिकट पर और 1969 में लोकतांत्रिक कांग्रेस के टिकट पर जीते. सीताराम दास ने भी 1977 में जनता पार्टी के टिकट पर और 1990 व 1995 में जनता दल के प्रत्याशी के रूप में तीन बार इस सीट से जीत दर्ज की थी.
इस क्षेत्र की एक खास राजनीतिक प्रवृत्ति यह रही है कि यहां के मतदाता आमतौर पर सत्तारूढ़ विधायक को दोबारा मौका नहीं देते. 2020 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी की कविता देवी ने कांग्रेस की पूनम कुमारी उर्फ पूनम पासवान को 28,943 वोटों से हराया था. पूनम पासवान ने 2015 में जेडीयू के टिकट पर बीजेपी के तत्कालीन विधायक महेश पासवान को 5,426 वोटों से हराया था. बाद में जेडीयू के एनडीए में वापसी करने पर पूनम पासवान फिर से कांग्रेस में लौट आईं. यह उनके लिए एक तरह से राजनीतिक वापसी थी, क्योंकि उन्होंने अपने दिवंगत पति, वरिष्ठ नेता शकुनी चौधरी के निधन के बाद कांग्रेस से ही राजनीति की शुरुआत की थी. 2010 में महेश पासवान ने कांग्रेस की सुनीता देवी को 52,444 वोटों से हराया था. सुनीता देवी इस क्षेत्र की अंतिम नेता थीं जिन्हें दो बार लगातार (फरवरी और अक्टूबर 2005) में जीत मिली थी. उन्होंने पहली बार महेश पासवान को हराया था.
कोढ़ा क्षेत्र पूरी तरह ग्रामीण है. 2020 में यहां कुल 2,91,238 पंजीकृत मतदाता थे, जो 2024 के लोकसभा चुनावों में बढ़कर 3,00,389 हो गए. चुनाव आयोग के अनुसार, 2020 की मतदाता सूची के 3,018 मतदाता 2024 तक प्रवास कर चुके थे. 2020 के चुनावों में अनुसूचित जातियों की भागीदारी 12.9% (37,570), अनुसूचित जनजातियों की 7.88% (22,950) और मुस्लिम मतदाताओं की संख्या 31.5% (91,740) रही. यहां मारवाड़ी, सिंधी व्यापारी और विभाजन के समय बसाए गए बंगाली हिंदू शरणार्थी समुदाय भी निवास करते हैं.
जहां एक ओर कोढ़ा की जनता अपने मौजूदा विधायकों को दोबारा मौका देने में संकोच करती है, वहीं दूसरी ओर बीजेपी को 2025 में एक और बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ सकता है. 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को कोढ़ा क्षेत्र में 51,020 वोटों से पीछे रहना पड़ा, जबकि निर्दलीय उम्मीदवार पप्पू यादव (राजेश रंजन) ने पूर्णिया सीट पर जीत हासिल की. ऐसे में बीजेपी के लिए रास्ता कठिन है, लेकिन यह सीट अभी भी उनके लिए पूरी तरह से अप्राप्य नहीं है.
(अजय झा)