बरारी, बिहार के कटिहार जिले में स्थित एक सामान्य श्रेणी की विधानसभा सीट है. यह कटिहार लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा है और बरारी, समेली और कुरसेला सामुदायिक विकास खंडों को सम्मिलित करता है.
बरारी क्षेत्र कोसी नदी के निकट स्थित है, जिससे यहां की मिट्टी अत्यंत उपजाऊ है. धान, गेहूं और केले की खेती इस क्षेत्र की प्रमुख फसलें हैं. यहां की
अर्थव्यवस्था मुख्यतः कृषि आधारित है, लेकिन प्रवासी मजदूरों द्वारा भेजे गए धन (रेमिटेंस) भी आर्थिक ढांचे में बड़ी भूमिका निभाते हैं. कम भूमि-स्वामित्व और सीमित रोजगार अवसरों के कारण दिल्ली और मुंबई जैसे महानगरों की ओर मौसमी पलायन एक आम प्रवृत्ति है.
हाल के वर्षों में बुनियादी ढांचे में कुछ सुधार देखने को मिला है. विशेषकर बरारी बाजार और कुरसेला जंक्शन के आसपास सड़क संपर्क और मोबाइल नेटवर्क की स्थिति बेहतर हुई है.
बरारी, कटिहार शहर से लगभग 12 किलोमीटर दक्षिण-पूर्व में स्थित है और यह एनएच-31 तथा कटिहार जंक्शन रेलवे स्टेशन से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है. इसके दक्षिण में लगभग 25 किलोमीटर दूर मनीहारी स्थित है, जो साहेबगंज (झारखंड) के लिए फेरी सेवा के लिए जाना जाता है. नौगछिया, जो दिल्ली-गुवाहाटी रेलमार्ग पर एक प्रमुख जंक्शन है, बरारी से लगभग 35 किलोमीटर पश्चिम में है. भागलपुर जिले का एक छोटा शहर, कॉलगोंग, 40 किलोमीटर दक्षिण-पश्चिम में स्थित है, जबकि पूर्वोत्तर बिहार का प्रमुख शहरी केंद्र पूर्णिया लगभग 50 किलोमीटर उत्तर-पश्चिम में है. राज्य की राजधानी पटना बरारी से लगभग 300 किलोमीटर दक्षिण-पश्चिम में स्थित है.
1957 में स्थापित बरारी विधानसभा सीट पर अब तक 16 बार चुनाव हो चुके हैं. प्रारंभिक सात में से पांच बार कांग्रेस पार्टी ने जीत हासिल की, जिसमें अंतिम जीत 1980 में हुई. इसके बाद से यहां का मतदाता लगातार विभिन्न दलों को मौका देता रहा है- भाजपा और राजद ने दो-दो बार, जबकि सीपीआई, जनता पार्टी, लोकदल, जनता दल, एनसीपी, जदयू और एक निर्दलीय उम्मीदवार ने एक-एक बार जीत दर्ज की.
यहां मतदाता अक्सर दल बदलने वाले नेताओं को भी समर्थन देते आए हैं. उदाहरण के तौर पर, मोहम्मद साकूर ने 1969 में सीपीआई के प्रत्याशी के रूप में कांग्रेस के वर्चस्व को तोड़ा, फिर 1972 में कांग्रेस से चुनाव जीतकर आए और 2005 में एनसीपी से विजयी रहे. वहीं मंसूर आलम ने 1985 में लोकदल, 1995 में जनता दल और 2000 में राजद के टिकट पर जीत हासिल की.
2020 के विधानसभा चुनाव में बरारी में 2,71,982 पंजीकृत मतदाता थे, जो 2024 लोकसभा चुनाव तक बढ़कर 2,82,738 हो गए. चुनाव आयोग के अनुसार इस दौरान 2,707 मतदाताओं का प्रवास हुआ. 2020 में अनुसूचित जातियों के मतदाता लगभग 23,796 (8.75%) थे, जबकि अनुसूचित जनजातियों के 9,821 (3.61%) थे. मुस्लिम मतदाता इस क्षेत्र में लगभग 81,108 (29.80%) हैं. इसके बावजूद, बरारी ने 16 में से 10 बार हिंदू विधायकों को चुना है. मोहम्मद साकूर और मंसूर आलम ही दो मुस्लिम नेता रहे हैं जिन्होंने मिलकर छह बार इस सीट का प्रतिनिधित्व किया.
लोकसभा चुनावों में भी यही प्रवृत्ति देखी गई है. 2024 में कांग्रेस के तारिक अनवर ने कटिहार सीट जीती, लेकिन बरारी विधानसभा खंड में वे जदयू के दुलाल चंद्र गोस्वामी से 8,529 वोटों से पीछे रहे. इसी प्रकार 2009 और 2019 में भी हिंदू उम्मीदवारों को बढ़त मिली थी.
2020 के विधानसभा चुनाव में जदयू के विजय सिंह ने राजद के नीरज कुमार को 10,438 वोटों से हराया था. बरारी में मतदाता सहभागिता राज्य औसत से हमेशा अधिक रही है. 2020 में जब सबसे कम मतदान हुआ, तब भी यह प्रतिशत 67.24 रहा, जो बिहार के औसत 58.70 प्रतिशत से काफी ऊपर था.
2020 की जीत और 2024 के लोकसभा चुनाव में बढ़त के चलते जदयू, जो भाजपा-नेतृत्व वाले एनडीए का हिस्सा है, वर्तमान में बढ़त में है. हालांकि राजद के नेतृत्व वाले विपक्षी गठबंधन के कारण मुकाबला अभी भी कांटे का बना हुआ है. बरारी एक ऐसा क्षेत्र है जहां हर चुनाव एक नया मोड़ ला सकता है. यह बिहार की राजनीति का एक दिलचस्प मंच बना हुआ है.
(अजय झा)