देश के कई राज्यों में बारिश देखने को मिल रही है. इस मौसम में दुधारू पशु बड़ी संख्या में बीमार होते हैं. इसी मौसम में गाय-भैंसों में थनैला रोग से शिकार होने की संभावनाएं भी बढ़ जाती हैं. इसके चलते वह दूध देना भी कम कर देती हैं. यह रोग आमतौर पर पशु के ख़राब , गंदी, नमीयुक्त स्थान पर रखने या बैठने से जीवाणु संक्रमण द्वारा होता है. ये जीवाणु पशु में थनों की दुग्ध नलिका के जरिए प्रवेश कर जाते हैं.
थनैला रोग से कैसे शिकार होते हैं पशु
थनों में प्रवेश करने के बाद ये जीवाणु दूध के संपर्क में आकर और अधिक वृद्धि करते हुए गाय-भैंस के कोशिकाओं पर अटैक करते हैं. अटैक करने के बाद इन कोशिकाओं का नष्ट करना शुरू कर देते हैं. कोशिकाएं नष्ट होने के चलते गाय-भैंस दूध देना कम कर देती हैं.
इलाज नहीं मिलने पर पशु की मौत तक हो सकती है
थनैला रोग के दौरान अगर गाय-भैंस दूध देती भी हैं तो पीने लायक नहीं होता है. दूध में दुर्गंध, पीलापन, हल्कापन आने लगता है. इस रोग से कई बार पशुओं का थन भी सड़कर गिर जाता है. सबसे पहले इस रोग का शिकार होने पर पशुओं में बुखार आने लगता है. पशुओं में खाने के प्रति इच्छा कम हो जाती है. पशुओं का थन लकड़ी के समान कठोर हो जाता है. कई बार समय पर इलाज नहीं मिलने से आपके पशु की मौत भी हो जाती है.
दूध निकालने का गलत तरीका भी थनैला रोग की वजह
दूध निकालने का गलत तरीका भी इस गाय-भैंसों में इस रोग के होने की बड़ी वजह बन सकती है. गलत तरीके से दूध निकालने की कोशिश में पशु के थनों पर चोट या रगड़ लग जाने, खराब सड़ा-गला चारा खिलाने और पशु के आवास में सही सफाई व्यवस्था नहीं रखने से यह रोग हो जाता है. अधिक दूध देने वाले पशु इस रोग से ज्यादा प्रभावित होते हैं.
बरतें ये सावधानियां
दूध निकालने के बाद के बाद गाय-भैंस को आधा घंटा नीचे न बैठने दें, क्योंकि इस दौरान थनों के छिद्र खुले रहते हैं. दुधारू पशुओं को विटामिन-ई की एक ग्राम मात्रा प्रतिदिन दाना मिश्रण के साथ खिलाना चाहिए. विटामिन-ई प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है. पशु को साफ़ पानी पिलाएं, गोबर और पेशाब आदि को दिन में साफ़ करते रहें, समय-समय पर थनों में गांठ, सूजन, दूध की गुणवत्ता आदि की जांच करते रहें. किसी भी तरह की दिक्कत पाए जाने की स्थिति में तुरंत पशु चिकित्सक को संपर्क करें.