ग्रामीण क्षेत्रों में खेती-किसानी के बाद आमदनी का सबसे तगड़ा स्रोत पशुपालन को ही माना जाता है. गाय और भैंस पालन के सहारे किसान काफी अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं. कुछ सालों पहले किसानों के बीच विदेशी नस्ल की गायों के पालन का चलन बढ़ा था. हालांकि, भारत की जलवायु अलग होने के चलते ये प्रयोग सफल नहीं हुआ. इस दौरान किसान फिर से देसी नस्ल की गायों के पालन की तरफ रूख कर रहे हैं.
देसी गायों को पहचानना बेहद आसान है. इन गायों में कूबड़ पाया जाता है. ज्यादातर किसानों को गिर, साहीवाल और लाल सिंधी गायों के बारे में पता है. हालांकि, अभी भी कई ऐसी देसी गायें हैं, जिनकी दूध देने की क्षमता काफी अधिक है. राठी, कांकरेज, खिल्लारी कुछ इसी तरह की नस्लें हैं.
राठी गाय
ये गाय मूल रूप से राजस्थान की है. ज्यादा दूध देने की क्षमता को देखते हुए ये दुग्ध व्यवसायियों की पसंदीदा बनी हुई है. राठी नस्ल का नाम राठस जनजाति के नाम पर पड़ा है. यह गाय प्रतिदन औसतन 6 -10 लीटर तक दूध देती है. अच्छी तरह देखभाल करने पर इस गाय की दूध देने की क्षमता 15 से 18 लीटर प्रतिदिन तक हो सकती है.
कांकरेज गाय
कांकरेज गाय राजस्थान के दक्षिण-पश्चिमी भागों में पाई जाती है. औसतन 6 से 10 लीटर दूध देने वाली इस गाय का मुंह छोटा और चौड़ा होता है. चारे पानी की पर्याप्त व्यवस्था और अच्छे वातावरण के बीच यह गाय भी 15 लीटर प्रतिदिन दूध देने की क्षमता रखती है.
खिल्लारी
इस नस्ल का मूल स्थान महाराष्ट्र और कर्नाटक है. खाकी रंग की इस गाय का सींग लंबा, पूंछ छोटी होती है. इस नस्ल की गाय का औसतन भार 360 किलो होता है. इसके दूध की वसा लगभग 4.2 प्रतिशत होती है. यह एक दिन में औसतन 7-15 लीटर दूध दे सकती है.