राजस्थान में सिरोही जिले के गांवों में आजीवका का मुख्य साधन आज भी खेती किसानी ही है. लेकिन क्लाइमेट चेंज की वजह से मौसम की मार के चलते पारंपरिक तरीके से की जा रही खेती में बदलाव आया है. यहां के युवा किसान पारम्परिक खेती छोड़कर नए नए प्रयोग कर रहे हैं. जीरा, सौंफ, अरंडी और गेहूं की पैदावार वाले इलाकों में नयी पीढ़ी के किसान आलू की फसल बो रहे है. सिरोही जिला मुख्यालय से तक़रीबन 25 किलोमीटर दूरी पर स्थित भूतगाँव के 34 वर्षीय युवा किसान दिनेश माली ने संताना और एलआर किस्म के आलूओं की 80 बीघा में फसल बोई है.
युवा किसान दिनेश माली ने बताया कि वो पपीते का व्यापार करते थे. इस दौरान उनका अक्सर गुजरात आना जाना होता था. आलू की इस स्पेशल क्रॉप को बोने का आइडिया उन्हें वहीं से मिला. दिनेश माली ने बताया कि इसके लिए उन्होंने काफी मेहनत की है. पहले तो फसल बोने के लिए लाल मिट्टी की पथरीली जमीन को उपजाऊ बनाया, फिर गुजरात से लाल रंग के आलू और संताना सफ़ेद आलू अपनी 80 बीघा जमीन में बोया.दिनेश के खेतों में उगी आलूओं की यह फसल उनकी पहली फसल है. इसे उन्होंने नवंबर के महीने में बोया था.
दिनेश ने 30 बीघे में लाल आलू बोया है. गोल आकार के लाल आलू को एलआर के नाम से जाना जाता है. 8-10 बीघा प्रति टन के औसत से इसकी फसल 120 दिनों में तैयार हो जाती है. सफ़ेद आलू को संताना नाम से जाना जाता है. ये आकर में लम्बा होता है. इसकी फसल को तैयार होने में 90 दिन का समय लगता है. दिनेश बताते है कि शोर्ट टर्म की इस खेती में पानी, खाद की निराई गुड़ाई का सही ध्यान रखते हुए अगर इसे किया जाये तो यह फसल फायदे का सौदा है.
अपने खेतो में फसल तैयार करने के साथ ही दिनेश ने अपने आलूओं को बेचने का इंतजाम भी कर लिया था. दिनेश ने बाकायदा एक कम्पनी से एग्रीमेंट कर आलूओं की फसल तैयार होने के बाद उसे उचित दाम पर बेचने का सौदा किया. दिनेश ने बताया कि सफ़ेद संताना आलू 11.50 पैसे प्रति किलो और लाल एलआर आलू 12.50 प्रति किलो के मूल्य पर बिकता है.