भारत में श्री अन्न योजना के तहत मोटे अनाजों की खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है. भारत की ही पहल पर संयुक्त राष्ट्र में इस साल को अंतरराष्ट्रीय मिलेट्स वर्ष के तौर पर मनाया जा रहा है. मोटे अनाजों में ज्वार, रागी, कुट्टू, काकुन, सांवा, कोदो के साथ बाजरा की खेती को देश में बड़े स्तर पर बढ़ावा दिया जा रहा है.
बाजरा में होते हैं भरपूर पोषक तत्व
गेहूं-चावल की तुलना में बाजरा में पोषक तत्व ज्यादा होते हैं. इसके अलावा इसमें लोहा, कैल्शियम, जस्ता, मैग्नीशियम और पौटेशियम जैसे तत्व भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं. यह विटामिन और फाइबर का शानदार स्रोत है. मधुमेह मरीजों के लिए भी बाजरा का सेवन फायदेमंद माना जाता है. साथ ही बाजरे में मौजूद कैरोटीन, नियासिन, विटामिन बी6 और फोलिक एसिड और लेसीथीन शरीर के स्नायुतंत्र को मजबूत बनाता है. बाजरे में पॉलीफेनोल्स, टेनिल्स, फाइट स्टेरोल्स तथा एंटीऑक्सीडेंटस भी प्रचुर मात्रा होती है. सरकार ने इसे न्यूट्री सीरियल्स श्रेणी की फसलों में रखा है. यह फसल कुपोषण से लड़ने के लिए सरकार के लिए एक बढ़िया हथियार साबित हो सकता है. माना जा रहा है कि अगर इसकी खूबियों का प्रचार प्रसार किया जाए तो ये फसल जल्द ही गेहूं के विकल्प के तौर पर उभर सकती है. यही वजह है कि बाजरे की खेती के रकबे को बढ़ाने के लिए सरकार काफी बड़े स्तर पर प्रयास कर रही है.
मोटे अनाजों के निर्यात पर काम कर रही है सरकार
मोटे अनाज, विशेषकर बाजरे को देश की अर्थव्यवस्था को बेहतर करने के लिहाज से भी अहम माना जा रहा है. सरकार ने मोटे अनाज के उत्पादों को बाजार में पहुंचाने के लिए 2026-27 तक 800 रुपये खर्च करने की घोषणा भी की थी. मोटे अनाजों के निर्यात पर ध्यान केंद्रित करते हुए 'खाद्यान्न उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण' (एपीडा) ने उन 30 देशों को चिन्हित किया है, जिनमें निर्यात की अच्छी संभावनाएं हैं. इसी के तहत देश में 21 ऐसे राज्यों को चिन्हित किया है, जहां ज्यादा से ज्यादा मिलेट्स यानी मोटे अनाजों की खेती होती है. इन राज्यों में मोटे अनाज की खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है.
बढ़िया विकल्प उभर कर सामने आया बाजरा
धान की फसल के लिए पानी की आवश्यकता ज्यादा है. पंजाब और हरियाणा में भूजल स्तर काफी नीचे आ चुका है. सरकार किसानों को धान की जगह अन्य फसलों की खेती को अपनाने की सलाह दे रही है. बकायदा इसके लिए किसानों को आर्थिक मदद भी दिया जा रहा है. इसके अलावा पानी में डूबी धान ती फसल में जमीन से ग्रीन हाउस गैस निकलती है. वहीं, गेहूं की फसल की खेती ठंड के महीने की जाती है. पिछले कुछ सालों से गेहूं के फसल के वक्त तापमान में वृद्धि दर्ज की जा रही है. अगर तापमान में यही वृद्धि जारी रही है तो गेहूं की खेती के लिए मुश्किलें पैदा हो सकती हैं. वहीं, बाजरे की खेती हर तरह की जमीन पर की जा सकती है. कम पानी की जरूरत और 50 प्रतिशत तापमान में भी इसकी खेती होना इसे गेहूं और चावल की खेती की जगह बाजरा को बढ़िया विकल्प बनाता है. पंजाब और हरियाणा में अब किसान खरीफ के दौरान धान की जगह बाजरे की खेती भी करने लगे हैं.
कम वक्त में बढ़िया मुनाफा
बता दें कि गेहूं और धान की फसल की बुवाई से लेकर कटाई तक में न्यूनतम 4 महीने का वक्त लग ही जाता है. वहीं, बाजरा मात्र 60 दिनों यानी दो महीने में तैयार हो जाता है. दो महीने बाद आप उसी खेत में अन्य कम अवधि की फसल की बुवाई कर अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं. वहीं, दूसरी तरफ बाजरा की मिला इनकम आपके लिए डबल मुनाफा कमाने का मौका होगा. इसे दो साल या इससे अधिक समय तक भंडारण किया जा सकता है. इसकी खेती में उर्वरक बहुत कम मात्रा में लगता है. ऐसे में इसकी खेती में लागत कम आती है.
प्रस्संकरण भी बढ़िया मुनाफा कमा सकते हैं किसान
किसान बाजरे का प्रस्संकरण कर भी कर सकते हैं. इससे आसानी से ब्रेड, लड्डू, पास्ता, बिस्कुट, प्रोबायोटिक पेय पदार्थ भी बनाए जा सकते हैं हैं. इतना ही नहीं छिलका उतारने के बाद इसका प्रयोग चावल की तरह किया जा सकता है. इसके आटे को बेसन में मिलाकर इडली, डोसा, उत्पम और नूडल्स आदि बनाया जाता है. अगर कोई किसान प्रसंस्करण के उद्योग में उतरना चाहता है तो यह उसके लिए कमाई का एक बेहतर जरिया बन सकता है.
किसानों की आय में होगा शानदार इजाफा
बाजरा की खेती किसानों की आय बढ़ाने का एक बढ़िया जरिया साबित हो सकता है. सरकार मोटे अनाज के निर्यात पर जोर दे रही है. ऐसे में बाजरा के बने उत्पाद भी निर्यात होंगे. इन उत्पादों को बनाने में बाजरा की खपत ज्यादा होगी. इससे सीधे तौर पर किसानों को फायदा होगा. बाजरा कई रोगों के खिलाफ फायदेमंद है. इसके प्रचार-प्रसार की जरूरत है. देश के कई हिस्सों में बाजरा की रोटी बनाई जाती है. अगर लोग जागरूक होंगे तो बाजरा की खपत बढ़ेगी, इसका फायदा भी किसानों को मिलेगा. वहीं, कम पानी, कम लागत और कम वक्त में ये फसल तैयार हो जाती है. अगर इस अनाज को सही मार्केट मिलता है तो यह बेहद जल्द गेहूं-धान के विकल्प के तौर पर सामने आ सकता है.