
रुद्रप्रयाग के कोटमल्ला के रहने वाले जगत सिंह चौधरी कुछ असंभव सा कर दिखाया है. पेशे से BSF के सैनिक रहे जगत सिंह चौधरी उर्फ जगत सिंह जंगली ने चार दशकों के दौरान अपनी तीन एकड़ बंजर जमीन पर तकरीबन 100 से ज्यादा प्रजातियों के 1.50 लाख से अधिक पेड़ों को लगाकर खुद का जंगल खड़ा कर दिया है.
जगत सिंह के बेटे राघवेंद्र बताते हैं कि पिता जी की 1967 में नौकरी बीएएसफ में लग गई थी. 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में भी उन्होंने हिस्सा लिया था. वह बीएसएफ की 52वीं बटालियन में थे और जम्मू-कश्मीर के बांदीपोरा उनकी तैनाती थी. युद्ध समाप्त होने के बाद जब वह 1974 में छुट्टी पर आए, तो पाया गांव में सन्नाटा पसरा है. वजह पूछने पर पता चला कि लकड़ी और चारे की व्यवस्था करने गई एक महिला पैर फिसलने की वजह से घायल हो गई.
ऐसे शुरू किया पेड़ों को लगाना
इस वाकये के बारे में जगत सिंह बताते हैं कि उन्होंने गौर किया तो पाया कि उनके क्षेत्र के सभी जलाशय पूरी तरह से सूख चुके हैं. महिलाओं को जलावन और चारे के लिए लंबी दूरी तय करना पड़ता है. ऐसे में कई बार महिलाएं हादसे का शिकार हो जाती हैं और उनकी मौत हो जाती है. मैंने सोचा गांव के आस-पास ही जलावन और घास मिल जाए ऐसी घटनाओं को रोका जा सकता है. फिर मैंने अपने खाली पड़े तीन हेक्टेयर जमीन पर OAK का पेड़ लगाना शुरू कर दिया.

बीएसएफ से ले लिया रिटायरमेंट
जगत सिंह के मुताबिक 1980 में उन्होंने बीएएसफ से रिटायरमेंट ले लिया. धीरे-धीरे पेड़ों की संख्या बढ़ानी शुरू कर दी. नए-नए पेड़ लगाने शुरू कर दिए. हालांकि, शुरुआत में गांव वाले मुझे ताना देते थे, पागल बोलते थे. कहते थे कि बीएसएफ की इतनी बढ़िया नौकरी छोड़ मैंने अपना जीवन बर्बाद कर लिया.
डेढ़ लाख पेड़ों का जंगल कर दिया तैयार
जगत सिंह ने रिटायरमेंट के बाद मिले पैसों का बहुत बड़ा हिस्सा मैंने अपनी इस मुहिम पर खर्च कर दिया. कुछ पैसे दोस्तों से भी उधार लिए. शुरू के कुछ सालों तक किसी को कुछ समझ नहीं आया. पत्नी के अलावा किसी ग्रामीण ने भी साथ नहीं दिया. हालांकि, जब पेड़ बढ़ने शुरू हो गए. आसपास हरियाली दिखने लगी. लकड़ियों का इंतजाम होने लगा, पशुओं के लिए चारा मिलने लगा तो उनके मुहिम के गांव के अन्य लोग जुड़ने लगे. लोगों के साथ मिलकर पेड़ लगाते-लगाते आज उन्होंने खुद का डेढ़ लाख पेड़ों का जंगल तैयार कर लिया.

जलस्रोतों का भी किया विकास
पेड़ लगाने के अलावा जगत सिंह ने अपने जलस्रोतों के विकास के लिए भी दिन-रात एक कर दिए. जगत सिंह बताते हैं कि उनकी जमीन बिल्कुल बंजर थी. ढलान वाली जमीन होने की वजह से यहां पानी रूकता नहीं, साथ में उपजाऊ मिट्टी बहा ले जाता है. पौधे लगाने की वजह से मिट्टी के बहाव में कमी आई. फिर जगह-जगह ग़ड्ढे खोदे ताकि बारिश का पानी संचय किया जा सके. इससे जमीन के अंदर नए स्रोतों का भी विकास हुआ. इसके अलावा कुछ साल पहले मैंने स्थानीय प्रशासन से मदद मांगी. कृषि विभाग ने 40,000 लीटर के दो वॉटर टैंक बनवाए हैं, जिससे किसानों को खेती में काफी मदद मिल रही है.
बेटा भी पिता की राह पर
जगत सिंह के बेटे राघवेंद्र भी अपने पिता के नक्शेकदम पर चल रहे हैं. उन्होंने बीएससी एनवायॉमेंटल स्टडीज से अपनी पढ़ाई पूरी की है. पेड़ लगाने के लिए पूरे उत्तराखंड से कॉल आते हैं. जहां भी बंजर जमीन है और हरियाली की जरूरत है वह पहुंच जाते हैं. वह कहते हैं कि उन्हें अपने पिता पर बेहद गर्व है. उन्होंने लोगों को पर्यावरण का महत्व समझाया और बताया कि अगर खुद को बचाना है तो सबसे पहले पर्यावरण को बचाना होगा.
आजीविका के बन रहे हैं साधन
राघवेंद्र कहते हैं कि उनके पास देवदार, कैल, काफल, बांज, थुनेर, चीड़ जैसे 100 से अधिक प्रजाति के 1.50 से भी अधिक पेड़ हैं.इसके अलावा, उनके पास केसर, केदार पत्ती, इलायची, ब्राह्मी जैसे कई दुर्लभ प्रजाति के पौधे भी हैं. फिलहाल यह जंगल स्थानीय रुड़िया जनजाति के लिए आजीविका का साधन बना हुआ है. यहां बड़े पैमाने पर बांस के पौधे लगाए गए हैं. रुड़िया समुदाय के लोग इससे टोकरी, टी ट्रे, मैट जैसे कई तरह के उत्पाद बनाते और मुनाफा हासिल करते हैं.

जगत सिंह जंगली को मिल चुके हैं ये पुरस्कार
जगत सिंह जंगली उत्तराखंड के वन विभाग का ब्रांड अम्बेसडर भी है. इसके अलावा बीएसएफ के पर्यावरण बचाने के मुहिम का भी वह चेहरा हैं. बीते चार दशकों के दौरान पर्यावरण के प्रति लोगों को जागरुक करने के लिए उन्हें इंदिर गांधी वृक्ष मित्र पुरस्कार, आर्यभट्ट पुरस्कार जैसे कई पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है.