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'अकेले चेन्नई को मिले 220,000 H-1B वीजा', US इकोनॉमिस्ट ने VISA फ्रॉड का लगाया आरोप

डॉ. डेव ब्रैट ने H-1B वीज़ा सिस्टम में बड़े पैमाने पर धोखाधड़ी का आरोप लगाते हुए दावा किया कि चेन्नई कॉन्सुलेट ने कानूनी सीमा से कहीं अधिक वीज़ा जारी किए. महवश सिद्दीकी के पुराने आरोप भी फिर चर्चा में आए हैं. ट्रंप प्रशासन जांच तेज़ कर रहा है, जबकि H-1B पर बड़ी राजनीतिक बहस जारी है.

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H-1B वीजा के जरिए अमेरिका जाते हैं 71 फीसदी लोग (File Photo: PTI)
H-1B वीजा के जरिए अमेरिका जाते हैं 71 फीसदी लोग (File Photo: PTI)

पूर्व US प्रतिनिधि और अर्थशास्त्री डॉ. डेव ब्रैट ने H-1B वीज़ा सिस्टम में बड़े पैमाने पर धोखाधड़ी का आरोप लगाया है. उन्होंने एक पॉडकास्ट में दावा किया कि भारत के एक ज़िले ने पूरे देश में कानूनी तौर पर मंज़ूर कुल वीज़ा की संख्या से दोगुने से ज़्यादा वीज़ा हासिल किए हैं. ब्रैट की बातों ने इस प्रोग्राम की जांच फिर से शुरू कर दी है. यह सब ऐसे वक्त में हुआ है, जब ट्रंप प्रशासन H-1B वीज़ा पर अपनी कार्रवाई तेज़ कर रहा है.

स्टीव बैनन के वॉर रूम पॉडकास्ट पर बोलते हुए, ब्रैट ने कहा, "H-1B सिस्टम इंडस्ट्रियल लेवल के फ्रॉड के कब्ज़े में आ गया है. भारत से वीज़ा देना कानूनी लिमिट को पार कर गया है."

ब्रैट ने कहा, "71 परसेंट H-1B वीज़ा भारत से और सिर्फ़ 12 परसेंट चीन से आते हैं. इससे पता चलता है कि वहां कुछ चल रहा है. सिर्फ़ 85 हजार H-1B वीज़ा की लिमिट है, फिर भी किसी तरह भारत के एक ज़िले- मद्रास (चेन्नई) को 220,000 मिल गए. यह कांग्रेस द्वारा तय लिमिट से 2.5 गुना ज़्यादा है, तो यही स्कैम है."

ब्रैट ने इस मुद्दे को अमेरिकी वर्कर्स के लिए सीधे खतरे के तौर पर पेश किया. उन्होंने कहा, "जब इनमें से कोई आकर दावा करता है कि वे स्किल्ड हैं, वे नहीं हैं, तो यही फ्रॉड है. वे आपके परिवार की नौकरी, आपका मॉर्गेज, आपका घर, यह सब छीन रहे हैं."

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रिपोर्ट्स के मुताबिक, चेन्नई में US कॉन्सुलेट ने 2024 में करीब 220,000 H-1B वीज़ा और 140,000 और H-4 डिपेंडेंट वीज़ा प्रोसेस किए. कॉन्सुलेट चार बड़े इलाकों- तमिलनाडु, कर्नाटक, केरल और तेलंगाना से एप्लीकेशन हैंडल करता है, जिससे यह दुनिया के सबसे बिज़ी H-1B प्रोसेसिंग सेंटर्स में से एक बन गया है.

"वीज़ा फ्रॉड 'इंडस्ट्रियलाइज़्ड' था..."

ये दावे भारतीय मूल की US फॉरेन सर्विस ऑफिसर महवश सिद्दीकी के पहले के आरोपों को फिर से सामने लाए हैं, जिन्होंने करीब दो दशक पहले चेन्नई कॉन्सुलेट में काम किया था. सिद्दीकी ने एक इंटरव्यू में H-1B सिस्टम को नकली डॉक्यूमेंट्स, नकली क्वालिफिकेशन्स और प्रॉक्सी एप्लीकेंट्स से भरा हुआ बताया.

उन्होंने कहा कि उन्होंने 2005 और 2007 के बीच करीब 51 हजार नॉन-इमिग्रेंट वीज़ा जारी किए, जिनमें से ज़्यादातर H-1B थे. उन्होंने कहा, "भारत से 80-90 परसेंट H-1B वीज़ा नकली थे या तो नकली डिग्री या नकली डॉक्यूमेंट्स, या ऐसे एप्लीकेंट्स जो बस बहुत ज़्यादा स्किल्ड नहीं थे."

सिद्दीकी ने हैदराबाद को एक खास हॉटस्पॉट बताया और दावा किया कि शहर के अमीरपेट इलाके में ऐसी दुकानें थीं, जो खुलेआम वीज़ा एप्लिकेंट्स को कोचिंग देती थीं और नकली एम्प्लॉयमेंट लेटर, एजुकेशनल सर्टिफिकेट और यहां तक कि शादी के डॉक्यूमेंट भी बेचती थीं.

यह भी पढ़ें: फर्जी डिग्री, राजनीतिक दबाव... अमेरिकी डिप्लोमैट ने H-1B वीजा प्रोग्राम में किया धोखाधड़ी का दावा

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सिद्दीकी ने कहा कि जब कॉन्सुलर अधिकारियों ने बड़े पैमाने पर फ्रॉड पैटर्न की पहचान करना शुरू किया, तो उनकी कोशिशों का विरोध हुआ. उन्होंने दावा किया कि कई तरफ से 'काफी पॉलिटिकल प्रेशर' था और उनकी एंटी-फ्रॉड पहल को अंदर ही अंदर एक 'रोग ऑपरेशन' कहकर खारिज कर दिया गया.

उन्होंने कहा, "एक इंडियन-अमेरिकन होने के नाते, मुझे यह कहते हुए दुख हो रहा है, लेकिन इंडिया में फ्रॉड और रिश्वतखोरी आम बात है." सिद्दीकी ने यह भी आरोप लगाया कि कुछ एप्लिकेंट इंटरव्यू से बचते हैं, अगर ऑफिसर अमेरिकन हो, कि प्रॉक्सी कैंडिडेट कभी-कभी उनकी जगह पर आते हैं, और इंडिया में कुछ हायरिंग मैनेजर कथित तौर पर वीज़ा एप्लीकेशन को सपोर्ट करने के लिए जॉब ऑफर के बदले पैसे मांगते हैं.

जांच के दायरे में वीज़ा प्रोग्राम...

H-1B वीज़ा US कंपनियों को खास फील्ड, खासकर टेक्नोलॉजी में विदेशी वर्कर को हायर करने की इजाज़त देता है. इसके ज़्यादातर होल्डर भारतीय नागरिक हैं. साल 2024 में करीब 70 परसेंट, जिससे भारत US लेबर मार्केट में आने वाले स्किल्ड माइग्रेंट का सबसे बड़ा सोर्स बन गया है.

MAGA से जुड़े पॉलिटिकल लोग H-1B वीज़ा और F-1 स्टूडेंट वीज़ा दोनों को तेज़ी से टारगेट कर रहे हैं, उनका कहना है कि इन प्रोग्राम का गलत इस्तेमाल किया जाता है और ये अमेरिकी वर्कर को नुकसान पहुंचाते हैं. लेकिन, US प्रेसिडेंट ने हाल ही में H-1B वीज़ा प्रोग्राम को सपोर्ट करने का इशारा दिया, जिसका इस्तेमाल इंडियन टेक प्रोफेशनल्स बड़े पैमाने पर करते हैं और कहा कि US को अपनी वर्कफोर्स में गैप भरने के लिए ग्लोबल टैलेंट की ज़रूरत है.

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हाल ही में फॉक्स न्यूज़ के एक इंटरव्यू में, ट्रंप से पूछा गया कि क्या उनका एडमिनिस्ट्रेशन H-1B वीज़ा जारी रखेगा, जबकि इस बात की आलोचना हो रही है कि इससे अमेरिकन सैलरी कम हो सकती है. ट्रंप ने बिना किसी हिचकिचाहट के इशारा किया कि वह प्रोग्राम के लिए तैयार हैं और उन्होंने कहा कि देश को स्किल्ड वर्कर्स को अट्रैक्ट करके कॉम्पिटिटिव बने रहना चाहिए.

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