संयुक्त राष्ट्र ने एक रिपोर्ट जारी कर चेतावनी दी है कि पानी के अति उपयोग और अंधाधुंध विकास के कारण दुनिया तेजी से सूख रही है. रिपोर्ट में पानी को मानवता के लिए जीवन रक्त के रूप में वर्णित करते हुए कहा गया है कि दुनिया की 26% आबादी साफ पानी की कमी से जूझ रही है. संयुक्त राष्ट्र की यह रिपोर्ट यूएन जल सम्मेलन से ठीक पहले बुधवार को प्रकाशित की गई है.
संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने संयुक्त राष्ट्र की इस मुद्दे पर दशकों बाद हो रही पहली बड़ी बैठक से कुछ घंटे पहले जारी की गई रिपोर्ट की प्रस्तावना में कहा, 'दुनिया आंख मूंदकर एक खतरनाक रास्ते पर चल रही है क्योंकि पानी का अंधाधुंध इस्तेमाल, प्रदूषण और अनियंत्रित ग्लोबल वार्मिंग मानवता के 'जीवन रक्त' को बहा रही है.'
ताजिकिस्तान और नीदरलैंड संयुक्त राष्ट्र जल सम्मेलन की सह-मेजबानी कर रहे हैं जो बुधवार से शुक्रवार तक चलेगा. इस सम्मेलन में 12 देशों के 6,500 प्रतिभागी हिस्सा लेंगे.
रिपोर्ट के प्रमुख लेखक रिचर्ड कॉनर ने समाचार एजेंसी एएफपी से बातचीत में कहा, 'अगर हम जल संरक्षण के लिए कुछ नहीं करते हैं तो करीब 40-50% की वैश्विक आबादी की स्वच्छता तक पहुंच नहीं होगी और 20-25% लोगों को सुरक्षित जल-आपूर्ति तक पहुंच नहीं होगी. दुनिया की आबादी हर दिन बढ़ रही है, ऐसे में उन लोगों की संख्या और बढ़ती जा रही है जिन्हें पानी और स्वच्छता नहीं मिल रही.'
'अभी नहीं तो कभी नहीं'
रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया की आबादी का लगभग 10% ऐसे देशों में रहता है जहां पानी का तनाव उच्च या गंभीर स्तर पर पहुंच गया है.
आईपीसीसी विशेषज्ञ पैनल द्वारा सोमवार को प्रकाशित सबसे हालिया संयुक्त राष्ट्र जलवायु रिपोर्ट के अनुसार, 'वर्तमान में दुनिया की लगभग आधी आबादी वर्ष के कम से कम एक हिस्से में गंभीर पानी की कमी का अनुभव करती है.'
कॉनर का कहना है कि पानी की कमी का सबसे अधिक प्रभाव गरीबों पर पड़ता है. उन्होंने कहा, 'इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप कहां रह रहे हैं, अगर आप काफी अमीर हैं तो आपको पानी मिल जाएगा.'
रिपोर्ट में कहा गया कि विश्व के अरबों लोगों को दूषित पानी पीना पड़ रहा है जिससे वो बीमारियों की चपेट में आ रहे हैं.
यूएन रिपोर्ट के मुताबिक, 'वैश्विक स्तर पर कम से कम 2 अरब लोग मल से दूषित पेयजल स्रोत का उपयोग करते हैं, जिससे उन्हें हैजा, पेचिश, टाइफाइड और पोलियो होने का खतरा होता है.'
इसमें उच्च संख्या फार्मास्यूटिकल्स, रसायनों, कीटनाशकों, माइक्रोप्लास्टिक्स और नैनोमैटेरियल्स से होने वाले जल प्रदूषण को ध्यान में नहीं रखा गया है. रिपोर्ट में कहा गया है कि 2030 तक सभी के लिए सुरक्षित पेयजल तक पहुंच सुनिश्चित करने के लिए निवेश के मौजूदा स्तर को तीन गुना करना होगा.
रिपोर्ट में चेतावनी दी गई कि मीठे पानी के पारिस्थितिक तंत्र - जो पानी के अलावा, जीवन-निर्वाह के लिए आर्थिक संसाधन प्रदान करते हैं और ग्लोबल वार्मिंग से निपटने में मदद करते हैं वो दुनिया में सबसे ज्यादा खतरे में हैं.
पानी के लिए यूएन में नीदरलैंड्स के विशेष दूत हेंक ओविंक ने कहा, 'हमें अब इस पर गंभीरता से काम करना होगा क्योंकि पानी को लेकर हमारी असुरक्षा खाद्य सुरक्षा, स्वास्थ्य सुरक्षा, ऊर्जा सुरक्षा, शहरी विकास और सामाजिक मुद्दों को कमजोर कर रही है. जैसा कि कहा जाता है, कि अभी नहीं तो कभी नहीं. ऐसा अवसर एक बार आता है.'