भारत और रूस के रिश्तों में पहले जैसी गर्माहट नहीं रही, ऐसी बातें पिछले कुछ वर्षों से कही जा रही हैं. बुधवार को अचानक से खबर आई कि दोनों देशों के बीच होने वाली वार्षिक बैठक टाल दी गई है. इसके बाद से कई तरह की अटकलें शुरू हो गईं. प्रमुख विपक्षी पार्टी कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और वर्तमान कांग्रेस प्रमुख सोनिया गांधी के बेटे राहुल गांधी ने इसे लेकर ट्विटर पर अपनी टिप्पणी में मोदी सरकार को आड़े हाथों लिया.
उन्होंने ट्वीट कर कहा, ‘’रूस भारत का अहम दोस्त हैं. पारंपरिक संबंधों को नुकसान पहुंचाना हमारी अदूरदर्शिता है और यह भविष्य के लिए खतरनाक है.’’ राहुल गांधी की इस टिप्पणी के बाद दोनों देशों की तरफ से आधिकारिक बयान आया और बताया गया कि कोविड 19 महामारी के कारण इसे टाला गया है. भारत में रूस के राजदूत निकोलय कुदाशेव ने कहा कि भारत और रूस के संबंध गतिशील हैं.
Russia is a very important friend of India.
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) December 23, 2020
Damaging our traditional relationships is short-sighted and dangerous for our future. pic.twitter.com/U5VyFWeS6L
20 सालो में पहली बार टली बैठक
पुतिन मई 2000 में रूस के राष्ट्रपति बने और तब से भारत-रूस के बीच यह वार्षिक बैठक हो रही है. यह पहली बार है जब वार्षिक बैठक को टाला गया है. कई लोग कोविड महामारी के तर्क को लेकर कह रहे हैं कि बैठक वर्चुअल भी हो सकती थी. ऐसे लोग दोनों देशों के तर्कों से सहमत नहीं हैं. हाल के दिनों में, प्रधानमंत्री मोदी कई वर्चुअल अंतरराष्ट्रीय समिट में शरीक हुए हैं.
वार्षिक बैठक टलने पर भारत के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव ने भी बयान जारी कर स्पष्टीकरण दिया. उन्होंने कहा, ‘’वार्षिक बैठक को रद्द करने का फैसला पारस्परिक सहमति से लिया गया है. इसे लेकर किसी भी तरह की अटकलबाजी में भ्रमित करने वाले हैं और उनमें कोई सच्चाई नहीं है. दोनों देशों के रिश्ते बेहद अहम हैं और इसे लेकर किसी भी तरह की फर्जी न्यूज स्टोरी फैलाना एक गैर-जिम्मेदाराना रवैया है.’’
Please see our response to a media report regarding the India-Russia Annual Summit. pic.twitter.com/BShPqq8NTR
— Anurag Srivastava (@MEAIndia) December 23, 2020
'चीन विरोधी नीति में भारत एक मोहरा'
वहीं, भारत में रूस के राजदूत निकोलय कुदाशेव ने कहा, ‘’हम लोग बैठक की नई तारीख को लेकर संपर्क में हैं. हम इस बात को लेकर आश्वस्त हैं कि जल्द ही बैठक का आयोजन किया जाएगा.’’
Noted the article “India-Russia annual summit postponed for 1st time in two decades amid Moscow’s unease with Quad” in the Print.
— Nikolay Kudashev (@NKudashev) December 23, 2020
Find it to be far from reality. Special and privileged strategic partnership between Russia and India is progressing well despite the #COVID19.
हालांकि, हाल ही में रूसी विदेश मंत्री सेर्गेई लावरोव के बयान से दोनों देशों के संबंधों में तनाव को हवा मिली थी. रूस के विदेश मंत्री सर्गेइ लवरोव ने क्वैड गुट पर सख्त टिप्पणी करते हुए भारत को चीन के खिलाफ पश्चिमी देशों की 'लगातार, आक्रामक और छलपूर्ण' नीति में एक मोहरा बताया था. क्वैड गुट में भारत, जापान, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया हैं. इस गुट को एशिया-पैसिफिक में चीन विरोधी गुट के तौर पर देखा जा रहा है.
सर्गेइ लवरोव ने कहा था, "पश्चिम एकध्रुवीय विश्व बहाल करना चाहता है. मगर रूस और चीन के उसका मातहत होने की संभावना कम है. लेकिन, भारत अभी इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में तथाकथित क्वैड जैसी पश्चिमी देशों की चीन-विरोधी नीति का एक मोहरा बना हुआ है."रूसी मंत्री ने ये भी कहा कि पश्चिमी मुल्क भारत के साथ रूस के करीबी संबंध को भी कमजोर करना चाहते हैं.
रूसी विदेश मंत्री ने ये बात नौ दिसंबर को रूसी इंटरेशनल अफेयर्स काउंसिल की बैठक में कही थी. चीन और रूस के बीच संबंध काफी गहरे हैं जबकि भारत और चीन के संबंधों में पर्याप्त तनाव है.
अब भी लद्दाख में दोनों देशों की सेना आपने-सामने है. इस तनाव को लेकर भारत ने रूस से भी बात की थी. रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह दो बार रूस भी जा चुके हैं. हालांकि, इस मामले में रूस से कोई मदद नहीं मिली और लद्दाख में अब भी इस साल अप्रैल के पहले जो स्थिति थी, वो बहाल नहीं हो पाई है.
पाकिस्तान और रूस के संबंध
हाल के दिनों में रूस और पाकिस्तान के बीच भी करीबी बढ़ी है. इसी साल नवंबर के पहले हफ्ते में रूसी सैनिक के जवान पाकिस्तान में सैन्य अभ्यास के लिए आए थे. इसके अलावा, पाकिस्तान में रूस एलएनजी पाइपलाइन बना रहा है.
पाकिस्तान के साथ रूस के कारोबारी और सैन्य संबंध ना के बराबर रहे हैं, लेकिन अब बदली वैश्विक परिस्थिति में पाकिस्तान और रूस में संबंध की सुगबुगाहट देखी जा रही है.
चीन की सैन्य आक्रामकता के कारण भारत को अमेरिका के करीब जाना पड़ा है तो पाकिस्तान के अमेरिका से संबंध ऐतिहासिक रूप से खराब हुए हैं. पाकिस्तान का चीन सदाबहार दोस्त है. ऐसे में पाकिस्तान, चीन के साथ रूस भी जाता है तो भारत के लिए चिंतित होना स्वाभाविक है.
पाकिस्तान में सैन्य अभ्यास को लेकर रूस सफाई दे चुका है. समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार, रूसी मिशन के उप-प्रमुख रोमान बाबश्किन ने इसी महीने 20 दिसंबर को कहा था कि भारत को रूस और पाकिस्तान के संबंधों को लेकर चिंतित नहीं होना चाहिए.
रोमान ने कहा था, ‘’हम लोगों को लगता है कि भारत के इस मामले में चिंतित नहीं होना चाहिए. रूस संवेदनशील मामलों को लेकर बहुत सतर्क रहता है. लेकिन हम पाकिस्तान के साथ स्वतंत्र रूप से द्विपक्षीय संबंधों के लेकर भी प्रतिबद्ध हैं. पाकिस्तान के साथ भी हमारा द्विपक्षीय व्यापार और आर्थिक एजेंडा है. पाकिस्तान एससीओ (संघाई कॉर्पोरेशन ऑर्गेनाइजेशन) का सदस्य है. किसी भी देश के साथ द्विपक्षीय रिश्ता किसी देश के खिलाफ नहीं होता.’’
एससीओ में भी भारत-पाकिस्तान के तनाव का असर
एससीओ आठ देशों का गुट है. इसमें चीन और रूस का दबदबा है. भारत और पाकिस्तान 2017 में इसके स्थायी सदस्य बने थे. इसे नेटो की तर्ज पर देखा जाता है. लेकिन इस गुट में शामिल भारत, पाकिस्तान आपस में तीन युद्ध कर चुके हैं और चीन के साथ भी भारत की जंग हो चुकी है.
भारत के पाकिस्तान और चीन के साथ रिश्तों में जो अविश्वास है, वो अब तक कम नहीं हो पाया है. ऐसे में इस गुट में इसका तनाव भी साफ तौर पर देखा जाता है. भारत और पाकिस्तान का तनाव तो अक्सर इस गुट में छाया रहता है. इसका नतीजा यह होता है कि यह कोई मजबूत वैश्विक संगठन नहीं बन पाया है.
भारत अपनी रक्षा जरूरतों के लिए रूस पर निर्भर है. भारत 90 फीसदी अपना सौदा रूस से करता है और इससे रूस को अरबों डॉलर का कारोबार मिलता है.
लेकिन हाल के वर्षों में भारत ने डिफेंस डील में इजरायल को भी काफी तवज्जो दी और अमेरिका, फ्रांस जैसे देशों की भी एंट्री हुई है. विशेषज्ञों का कहना है कि रूस की एक नाराजगी यह भी है.
रूस और भारत की दोस्ती शीत युद्ध से पहले की है, जब रूस सोवियत संघ हुआ करता था. शीत युद्ध के बाद सोवियत संघ का विघटन हुआ और दुनिया एकध्रुवीय हो गई. इसके बाद से रूस और भारत के संबंधों में काफी बदलाव आए हैं.
लेकिन रूस के मन में अमेरिका के ताकतवर होने और सोवियत संघ टूटने की कसक आज तक है. रूस नहीं चाहता है कि अमेरिका के नेतृत्व को भारत स्वीकार कर ले लेकिन बदलती वैश्विक परिस्थिति में भारत के लिए भी किसी एक पक्ष में जाना आसान नहीं है. भारत न तो रूस को नाराज कर सकता है और न ही अमेरिका की उपेक्षा कर सकता है.