
14-15 अगस्त 1947 को दुनिया के मानचित्र पर जब दो संप्रभु राष्ट्रों भारत और पाकिस्तान का उदय हुआ तो भारतीय उपमहाद्वीप में 565 देसी रियासतें (Princely states) थीं. इन्हें आम-बोलचाल की भाषा में रजवाड़े कहा जाता था जो अब भी प्रचलन में है. ब्रितानिया शासन के दौरान भी इन रियासतों ने किसी तरह से अपनी नाममात्र की स्वायत्तता बचाकर रखी थी. पूरे उपमहाद्वीप में फैले ये रजवाड़े अंग्रेजों से संधि कर अपनी स्वाधीनता बचाने का ढोंग अपनी जनता के सामने रचे हुए थे.
कहने को तो इन पर ब्रिटिश साम्राज्य का सीधा नियंत्रण नहीं था, लेकिन ब्रिटिश क्राउन के हितों के खिलाफ इंच भर जाने की दिलेरी इनके पास नहीं थी. इसके एवज में भारत की आजादी के समय में अंग्रेजों ने इन्हें अधिकार दिया कि वे भारत या पाकिस्तान अधिराज्य (Dominion) में शामिल हो सकती हैं या एक स्वतंत्र (Independent) और संप्रभु (Sovereign) राज्य के रूप में स्वयं को स्थापित कर सकते हैं.
उस समय इन देसी रियासतों के पास अविभाजित भारत का एक तिहाई भूभाग और एक चौथाई आबादी थी.
देश के पहले गृह मंत्री सरदार पटेल ने अपने कूटनीतिक कौशल से 500 से ज्यादा रियासतों का भारत में विलय कराया. इसके लिए उन्होंने प्यार, दुलार पुचकार और जरूरत पड़ने पर फटकार की नीति अपनाई.
लेकिन आज हम आपको उन 9 देसी रियासतों की कहानी बता रहे हैं जिनका विलय पाकिस्तान में हुआ. ये रियासतें अविभाजित भारत के उत्तर पश्चिमी हिस्से यानी आज के पाकिस्तान में थीं. मुस्लिम बहुत आबादी वाली ये रियासतें पाकिस्तान के निर्माण की पक्षधर तो थीं, लेकिन इनकी क्षेत्रीय महत्वाकांक्षाएं थीं. अलग देश बनने का सपना था. इसलिए अगस्त 1947 में इन रियासतों ने पाकिस्तान में विलय से इनकार कर दिया. इन्होंने जिन्ना को खूब छकाया. लेकिन धीरे-धीरे ये प्रदेश आखिरकार कैसे पाकिस्तान का हिस्सा बने; स्वार्थ और महत्वाकांक्षाओं के टकराव की ये दास्तान हम आपको बता रहे हैं.
पाकिस्तान के मुल्तान स्थित वूमन यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर अत्तिया खानम ने नॉर्थ वेस्ट फ्रंटियर प्रोविंस (NWFP) के पाकिस्तान में विलय की कहानी बताते हुए लिखा है कि जुलाई 1947 में NWFP में शामिल राज्यों में जनमत संग्रह किया गया. चूंकि ये राज्य पाकिस्तान की उत्तरी सीमा में थे, अलग पाकिस्तान मुहिम को ये समर्थन कर रहे थे इसलिए इन राज्यों ने पाकिस्तान में शामिल होने का विकल्प चुना.

अम्ब
1947 में इस छोटे से राज्य की आबादी लगभग 48 हजार थी. प्रोफेसर खानम के अनुसार यहां के शासक को अंग्रेज सरकार 15,300 रुपये सालाना देती थी. अम्ब के नवाब फरीद खान ने जुलाई 1947 में पाकिस्तान के साथ स्टैंडस्टिल एग्रीमेंट (standstill arrangement) पर दस्तखत किए और 31 दिसंबर 1947 को पाकिस्तान में शामिल होने के लिए विलय पत्र पर हस्ताक्षर कर दिए. अम्ब NWFP की पहली रियासत थी जिसने पाकिस्तान में शामिल होने पर सहमति जताई.
जिन्ना का वो दस्तावेज, जो बदल सकता था भारत का इतिहास, नहीं होता बंटवारा
बता दें कि Standstill arrangement वो समझौता था जो भारत अथवा पाकिस्तान अधिराज्य (Dominion) और देसी रियासतों के बीच किया जाता था. इसमें लिखा होता था कि दोनों पक्षों की वही प्रशासन व्यवस्था तब तक चलती रहेगी जब तक कि दोनों पक्ष नया समझौता नहीं कर लेते हैं. जबकि विलय पत्र ( Instrument of Accession) वो दस्तावेज है जिस पर हस्ताक्षर करने के बाद देसी रियासतें भारत अथवा पाकिस्तान में मिल गईं.
चित्राल
चित्राल पाकिस्तान के सुदूर उत्तर में बसा है. यह तत्कालीन USSR के नजदीक था. यहां के शासक मुजफ्फर उल मुल्क ने 15 अगस्त 1947 को पाकिस्तान में शामिल होने का फैसला सुनाया. लेकिन इस राज्य ने विलय पत्र पर हस्ताक्षर 6 नवंबर 1947 को किए.
दिर (DIR)
दिर उत्तर पश्चिम सीमांत प्रांत (NWFP) में स्थित एक छोटी सी देसी रियासत है. देश के बंटवारे के बाद फरवरी 1948 तक ये सूबा स्वतंत्र और तटस्थ रहा. इस राज्य को ब्रिटिश सरकार 50 हजार रुपये हर साल देती थी इस सूबे ने 8 नवंबर 1947 को ही विलय पत्र पर हस्ताक्षर कर दिए थे. लेकिन इसका औपचारिक विलय 1948 को हुआ.
स्वात
स्वात का नाम आते ही हमारे सामने जो तस्वीर उभरती है वो है बामियान में स्थित बुद्ध की 2 हजार साल पुरानी प्रतिमाओं की. हमें याद आती है मलाला युसूफजई की. इस स्वात घाटी में आतंकियों ने मलाला को सिर्फ इसलिए गोली मार दी थी क्योंकि वह स्कूल जाना चाहती थी. स्वात की वादियां आज भले ही तालिबानी आतंकियों के बर्बर इंसाफ की गवाह बन रही हों, लेकिन कभी यहां सभ्यताएं जन्मी थीं, ये स्थान गंधार सभ्यता का केंद्र था.
बात 1947 के आसपास की करें तो 18 हजार वर्ग मील के क्षेत्र वाले स्वात की आबादी 1931 में 2 लाख 16 हजार थी. तब यहां हिन्दुओं की भी बस्तियां हुआ करती थीं.
जिरगा, वारलॉर्ड और पठानी लड़ाकों के इस प्रदेश में सत्ता के लिए खूब लहू बहा करता था. 1917 में जिरगा (सरदारों की स्थानीय पंचायत) ने मिनागुल अब्दुल वदूद नाम के सरदार को स्वात का राजा घोषित कर दिया. 1926 में ब्रिटेन ने मिनागुल अब्दुल वदूद को खुश करने के लिए उन्हें वली की धार्मिक उपाधि दे दी.

14 अगस्त 1947 को जब पाकिस्तान अस्तित्व में आया तो उस समय मिनागुल अब्दुल वदूद पाकिस्तान में शामिल नहीं हुए.
लेकिन बाद में 3 नंवबर 1947 को पाकिस्तान के दबाव के आगे झुकते हुए मिनागुल अब्दुल वदूद ने स्वात के पाकिस्तान में विलय की घोषणा कर दी. हालांकि मिनागुल के वंशज मियांगुल जहां जेब लंबे समय तक स्वात में अपना शासन चलाता रहा लेकिन 28 जुलाई 1969 को पाकिस्तानी तानाशाह याह्या खान ने स्वात के पाकिस्तान में पूर्ण विलय की घोषणा कर दी.
बता दें कि 1969 में ही याह्या खान ने न सिर्फ स्वात बल्कि दिर और चित्राल को पूर्ण रूप से पाकिस्तान में मिला लिया और इनकी स्वतंत्र पहचान को समाप्त कर दिया.
ब्लूचिस्तान
पाकिस्तान के ब्लूचिस्तान में जो अलगाववादी आंदोलन भड़क रहा है उसकी जड़ें विभाजन के समय से ही पनप रही हैं. बलूचिस्तान (यानी कि कलात, खारान, लॉस बुला, मकरान) ऐसी रियासत थी जिस पर ब्रिटिश साम्राज्य का सीधा शासन नहीं था. ये बंटवारा अंग्रेजों ने किया था. जैसा कि हम जानते हैं कि देश के बंटवारे के बाद इन राज्यों को अपना भविष्य तय करने का अधिकार मिला था.
भारत की आजादी के बाद बलोच कबीलों के सरदारों की महत्वाकांक्षा उफान पर थी. वे अपने लिए एक अलग राष्ट्र चाहते थे. सबसे पहले हम आपको कलात की कहानी बताते हैं.
कलात के एकीकरण ने जिन्ना को पानी पिला दिया. कलात के खान मीर अहमद यार ख़ान ने पहले तो पाकिस्तान के निर्माण को लेकर बड़ा जोश दिखाया था, लेकिन जब कलात को पाकिस्तान में शामिल करने का अप्रत्यक्ष दबाव उस पर पड़ने लगा तो उसने अपने रंग बदल लिए.

कलात का क्षेत्रफल 1,39,850 वर्ग किलोमीटर था. 1951 में इसकी आबादी 2 लाख 53 हजार थी.
मार्च 1946 में जब कैबिनेट मिशन भारत आया तो मीर अहमद यार खान ने कहा कि उसकी संधि ब्रिटिश इंडिया साम्राज्य के साथ नहीं बल्कि सीधे ब्रिटिश क्राउन के साथ थी.
इसके बाद 4 अगस्त 1947 को दिल्ली में एक मीटिंग हुई. इसमें लॉर्ड माउंटबेटन, खान ऑफ कलात, चीफ मिनिस्टर ऑफ कलात और मोहम्मद अली जिन्ना मौजूद थे जिसमें जिन्ना ने उनका पक्ष रखा. तय हुआ कि 5 अगस्त 1947 को कलात ब्रिटिश साम्राज्य से स्वतंत्र होगा. साथ ही खारान, लॉस बुला को कहा गया कि वे अपना विलय कलात में करें.
बता दें कि 1876 की ब्रिटिश संधि ने कलात को आंतरिक स्वतंत्रता दे रखी थी. साथ ही इसके आंतरिक मामलों में दखल न देने का भी वादा किया था. इसी के आधार पर मीर अहमद यार खान ने कहा था कि 1876 की संधि की समाप्ति के साथ ही कलात को पूर्ण स्वतंत्रता हासिल हो जाएगी और स्वतंत्र राज्य होने की वजह से कलात के लोगों को अधिकार होगा कि वे अपना भविष्य तय कर सकें.
19 जुलाई 1947 को माउंटबेटेन, पाकिस्तान के प्रतिनिधियों और कलात के एक प्रतिनिधिमंडल के बीच बैठक हुई. इसमें पाकिस्तान कलात को स्वतंत्र और संप्रभु राज्य के रूप में मान्यता देने पर मान भी गया.
मुस्लिम लीग ने कलात को संप्रभु राज्य मान लिया था
11 अगस्त 1947 को मुस्लिम लीग और कलात के बीच एक घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर हुए. मुस्लिम लीग ने बाकायदा बयान जारी कर कहा कि कलात एक संप्रभु राज्य है और मुस्लिम लीग इसकी संप्रुता का सम्मान करती है. हालांकि मुस्लिम लीग ने अपने डर को दूर करने के लिए ये भी कहा कि कलात भारतीय राज्य नहीं है.
15 अगस्त 1947 को भारत की स्वतंत्रता के दिन और पाकिस्तान के निर्माण के एक दिन बाद कलात ने स्वयं को एक स्वतंत्र राष्ट्र घोषित कर दिया. शासक खान ने कलात संसद के उच्च और निम्न सदन बनाए. कलात ने कहा कि वह एक स्वतंत्र राष्ट्र होगा और पाकिस्तान के साथ उसका संबंध दोस्ताना रहेगा.
लेकिन दिखावे की इस संधि से जिन्ना को तसल्ली कहां थी? ईरान-अफगानिस्तान से जमीन से जुड़े इस भूभाग के महत्व को जिन्ना समझते थे. उन्हें यह भी पता था कि स्वतंत्र बलूचिस्तान भविष्य में पाकिस्तान के वजूद के लिए ही खतरा बन सकता है.
जिन्ना ने कलात के खान को घेरना शुरू किया
जिन्ना ने बलूचिस्तान को घेरना शुरू कर दिया. 17 अक्टूबर 1947 को जिन्ना ने कलात के खान को बातचीत की टेबल पर बुलाया. बहाना बनाया गया कि 11 अगस्त को कुछ मुद्दे रह गए थे, जिन पर चर्चा करनी है. यूं तो कलात के खान जिन्ना के दोस्त थे और पाकिस्तान बनाने में उन्होंने बड़ी मदद की थी, उन्हें धन दिया था. लेकिन इस बार वे इस शातिर दोस्त की मंशा भांप गए.
कलात के खान ने जिन्ना के इस निमंत्रण को लटकाना शुरू कर दिया. 14 फरवरी 1948 को जिन्ना ने फिर से बातचीत के लिए बुलाया. तबतक अहमद यार खान कलात के मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उठाना चाह रहे थे. उन्होंने अफगानिस्तान से बात की, लेकिन उन्हें मुकम्मल मदद नहीं मिल पाई. अबतक कलात के खान जिन्ना से टाल मटोल कर रहे थे.
इस बीच 27 मार्च 1948 को जिन्ना ने अपने विदेश सचिव इकरामुल्लाह से कहा कि कलात को स्पष्ट कहा जाए कि पाकिस्तान के साथ विलय के अलावा कोई चारा नहीं है. ये एक तरह से अंतिम चेतावनी थी.
कलात में पाकिस्तान का आक्रमण
1 अप्रैल 1948 को जिन्ना ने कलात में अपनी सेनाएं भेजने का आदेश दिया. पाकिस्तान की सेना के सामने कलात की सेना और संसाधन बौने साबित हुए और उन्होंने आत्मसमर्पण कर दिया और विलय पत्र पर हस्ताक्षर कर दिया. इसके साथ ही साढ़े आठ महीने की आजाद कलात सरकार इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गई.
जब लाल किले से पीएम मोदी ने किया था जिक्र
बलूचिस्तान में आजादी की लड़ाई अभी भी समाप्त नहीं हुई है. वहां बड़े पैमाने पर लोग अलग और स्वतंत्र देश के लिए आंदोलन चला रहे हैं. कुछ ही साल पहले पीएम मोदी ने लाल किले की प्राचीर से बलूचिस्तान के संघर्ष का जिक्र किया था तो इस जंग ए आजादी को फिर से संजीवनी मिल गई थी.
मकरान, लास बेला और खरान का विलय
जब कलात अपने वजूद के लिए संघर्ष कर रहा था तो इसकी पड़ोसी रियासतों मकरान, लास बेला और खरान जिन्ना के दबाव में झुक गईं और उन्होंने मार्च 1948 में पाकिस्तान में अपना विलय कर दिया.
बहावलपुर
पाकिस्तान के पंजाब में स्थित बहावलपुर अविभाजित भारत के सबसे घने प्रदेशों में था. 1947 में यहां की आबादी 15 लाख थी. बंटवारे के बाद यहां से बड़ी संख्या में हिन्दू और सिखों का पलायन भारत में हुआ.
पंजाब में सिखों के उदय ने बहावलपुर के नवाबों को कुचलकर रख दिया था. 1833 में बहावलपुर के शासकों ने ईस्ट इंडिया कंपनी के साथ समझौते पर हस्ताक्षर किया और उनकी अधीनता स्वीकार कर ली.

1947 में नवाब सादिक अब्बासी का बहावलपुर में शासन था. जब देश का बंटवारा हुआ तो नवाब की तबीयत खराब थी और वो इंग्लैंड में इलाज करा रहा था.
15 अगस्त 1947 को नवाब सादिक ने खुद को आजाद आमिर घोषित कर दिया. इससे पाकिस्तान को बड़ी चोट पहुंची. बहावलपुर की सीमा भारत से सटी थी और दोनों देशों के बीच में एक स्वतंत्र बहावलपुर के होने की खबर ने पाकिस्तान के होश उड़ा दिए.
मुस्लिम लीग ने तुरंत आमिर नवाब सादिक से संपर्क स्थापित करना शुरू किया. जब नवाब इंग्लैंड से बहावलपुर लौटे तो पाकिस्तान ने उनपर विलय पत्र पर हस्ताक्षर करने के लिए दबाव बनाया.
आखिरकार 3 अक्टूबर 1947 को उन्होंने बहावलपुर के विलय के लिए समझौते पर हस्ताक्षर कर दिए. लेकिन बहावलपुर का ये विलय आंशिक ही था. 8 साल बाद बहावलपुर पूरी तरह से पाकिस्तान में तब मिला जब 14 अक्टूबर 1955 में आमिर ने पाकिस्तान के साथ एक समझौते पर दस्तखत किए. इसके एवज में आमिर को सालाना 32 लाख रुपये की प्रिवीपर्स पाकिस्तान से मिलने लगी.
खैरपुर
खैरपुर सिंध की सीमा के अंदर मौजूद एक छोटी सी रियासत था. देश के बंटवारे के समय यहां का नवाब मीर जॉर्ज अली मुराद खान तालपुर-II नाबालिग था.
इसके स्थान पर मीर जॉर्ज अली के प्रतिनिधि मीर गुलाम हुसैन खान ने विलय पत्र पर हस्ताक्षर किए. हालांकि यहां पर नवाब का आंशिक शासन चलता रहा. बता दें कि इन क्षेत्रों में पहले लोकतांत्रिक व्यवस्था नहीं थी. इसलिए जब इनका विलय पाकिस्तान में हुआ तो पाकिस्तानी राज्य ने विदेशी मसले, मुद्रा विनिमय, सुरक्षा जैसे अहम मुद्दों को अपने पास रख लिया और बाकी प्रशासन के मुद्दे इन नवाबों के पास ही रहे. खैरपुर के साथ भी यही हुआ और 1955 में खैरपुर का पाकिस्तान में पूर्ण विलय हुआ.
इसके अलावा पाकिस्तान ने आज के गिलगिट बाल्टिस्तान में मौजूद दो देसी रियासतों हंजा (Hunza) और नागर (Nagar) का भी पाकिस्तान में जबरन विलय कराया है. भारत ने इस विलय को कभी मान्यता नहीं दी है. गिलगिट बाल्टिस्तान पाक प्रशासित कश्मीर (PoK) में मौजूद है और भारत के अविभाज्य अंग हैं.