
कनाडा के प्रधानमंत्री मार्क कार्नी ने ऐलान किया है कि कनाडा सितंबर में संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) में फिलिस्तीन को एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में मान्यता देने की योजना बना रहा है. हाल के दिनों में ऐसा निर्णय लेने वाला वह तीसरा G7 देश बन गया है.
कार्नी ने स्पष्ट किया कि यह मान्यता कुछ शर्तों पर आधारित होगी.इनमें प्रमुख रूप से फिलिस्तीनी अथॉरिटी (Palestinian Authority) द्वारा शासन में बुनियादी सुधार करना, वर्ष 2026 में हमास (Hamas) के बिना पारदर्शी आम चुनाव कराना और फिलिस्तीनी क्षेत्रों का निरस्त्रीकरण (demilitarisation) शामिल है.
प्रधानमंत्री कार्नी ने कहा कि कनाडा लंबे समय से दो राष्ट्र समाधान (Two-State Solution) के लिए प्रतिबद्ध है, जिसमें एक स्वतंत्र, व्यवहार्य और संप्रभु फिलिस्तीनी राज्य, इज़रायल के साथ शांति और सुरक्षा के साथ सह-अस्तित्व में रहे. हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि यह समाधान अब तेजी से अस्थिर होता जा रहा है, खासकर हमास की हिंसा, वेस्ट बैंक और यरुशलम में बस्तियों के विस्तार और गाज़ा में बिगड़ती मानवीय स्थिति के कारण.
PM कार्नी ने क्या-क्या कहा?
बयान में यह भी कहा गया है कि हमास को 7 अक्टूबर 2023 की हिंसक घटना में बंधक बनाए गए लोगों को तत्काल रिहा करना होगा. हमास को भविष्य में फिलिस्तीन के शासन में कोई भूमिका नहीं निभानी होगी. साथ ही कहा कि इज़रायल के अस्तित्व और सुरक्षा के अधिकार को कनाडा हमेशा समर्थन देता रहेगा.

कनाडा ने पहले भी भेजी मदद
कनाडा पहले ही गाज़ा की बिगड़ती स्थिति को सुधारने के लिए 34 करोड़ डॉलर से अधिक की मानवीय सहायता दे चुका है. इसमें 3 करोड़ डॉलर फिलिस्तीनी नागरिकों की मदद के लिए और 1 करोड़ डॉलर फिलिस्तीनी अथॉरिटी को स्थिरता लाने में मदद के लिए दिए गए हैं.
ब्रिटेन भी कर चुका है ऐलान
ये घोषणा ब्रिटेन द्वारा मंगलवार को दिए गए इसी तरह के बयान के एक दिन बाद की गई है.बता दें कि ब्रिटेन ने कहा था कि अगर इज़रायल ने गाज़ा में सीजफायर और अन्य मानवीय शर्तें नहीं मानीं, तो वह सितंबर में फिलिस्तीन को मान्यता देगा.
139 देशों ने दी फिलिस्तीन को मान्यता
पिछले सप्ताह फ्रांस ने भी कहा था कि वह फिलिस्तीन को औपचारिक मान्यता देगा. वर्तमान में विश्व के लगभग 139 देश फिलिस्तीन को एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में मान्यता दे चुके हैं. कनाडा के इस कदम को वैश्विक राजनयिक परिदृश्य में फिलिस्तीनी अधिकारों और मध्य-पूर्व शांति प्रयासों की दिशा में एक महत्वपूर्ण मोड़ के रूप में देखा जा रहा है.