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पाकिस्तान के संविधान पर मुनीर कर रहे कब्जा? विरोध में अब लाहौर हाईकोर्ट के जज का इस्तीफा

पाकिस्तान में न्यायपालिका का संकट और गहराता जा रहा है. लाहौर हाई कोर्ट के जस्टिस शम्स महमूद मिर्जा ने 27वें संवैधानिक संशोधन के विरोध में इस्तीफा दे दिया है. इससे पहले सुप्रीम कोर्ट के दो वरिष्ठ जज भी पद छोड़ चुके हैं.

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पाकिस्तान के संविधान में संशोधन का विरोध हो रहा है. (File Photo)
पाकिस्तान के संविधान में संशोधन का विरोध हो रहा है. (File Photo)

पाकिस्तान में न्यायपालिका और संविधान को लेकर बड़ा विवाद गहराता नजर आ रहा है. शनिवार को लाहौर हाई कोर्ट के वरिष्ठ जज जस्टिस शम्स महमूद मिर्जा ने 27वें संवैधानिक संशोधन के विरोध में अपना इस्तीफा सौंप दिया. इससे पहले सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ जज, जस्टिस सैयद मनसूर अली शाह और जस्टिस अथर मीनल्लाह भी इसी संशोधन को "संविधान और न्यायपालिका पर हमला" बताते हुए इस्तीफा दे चुके है.

जस्टिस मिर्जा मार्च 2028 में सेवानिवृत्त होने वाले थे, लेकिन उन्होंने संशोधन को देश की न्याय व्यवस्था के लिए खतरनाक बताते हुए पद छोड़ना उचित समझा. उनका यह कदम पाकिस्तान के न्यायिक तंत्र में एक ऐतिहासिक मोड़ माना जा रहा है, क्योंकि यह पहला मौका है जब किसी हाई कोर्ट के जज ने संशोधन के विरोध में इस्तीफा दिया है. पाकिस्तान में संवैधानिक बदलाव को लेकर यहां के चीफ मार्शल आसिम मुनीर पर आरोप लग रहे हैं कि वह संविधान पर कब्जा करने की कोशिश कर रहे हैं.

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विवाद का केंद्र है 27वां संवैधानिक संशोधन, जिसके तहत एक नई फेडरल कॉन्स्टिट्यूशनल कोर्ट (FCC) बनाई गई है. यह अदालत अब संविधान से जुड़े सभी बड़े मामलों को सुनेगी, जबकि देश की वर्तमान सुप्रीम कोर्ट को सिर्फ सिविल और आपराधिक मामलों तक सीमित कर दिया गया है. न्यायाधीशों का कहना है कि यह संशोधन सुप्रीम कोर्ट को 'दूसरी पंक्ति' की अदालत बना देता है.

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लोकतांत्रिक संरचना की जड़ें कमजोर करने जैसा

जस्टिस मनसूर अली शाह ने अपने इस्तीफे में संशोधन को "संविधान पर गंभीर हमला" बताया. उनके अनुसार, यह बदलाव न्यायपालिका को कार्यपालिका के नियंत्रण में धकेल देता है और पाकिस्तान की लोकतांत्रिक संरचना की जड़ें कमजोर करता है.

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आईसीजे ने भी जताया विरोध

संशोधन में एक और विवादित प्रावधान यह है कि इसके तहत आर्मी चीफ जनरल आसिम मुनीर को 2030 तक चीफ ऑफ डिफेंस फोर्सेज (CDF) के रूप में पद पर बने रहने की अनुमति दे दी गई है. आलोचकों का मानना है कि यह सेना की भूमिका और शक्तियों को और बढ़ाता है. अंतरराष्ट्रीय संस्था इंटरनेशनल कमीशन ऑफ जुरिस्ट्स (ICJ) ने भी इस संशोधन को "न्यायिक स्वतंत्रता पर खुला हमला" बताया है.

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