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भारतीय किशोर ने US को दिया 23 अरब 95 करोड़ 20 लाख रुपये बचाने का आइडिया

एक भारतीय किशोर ने अमेरिका को ऐसे आइडिया दिया है, जिससे वह साल में 23 अरब 95 करोड़ 20 लाख रुपये बचा पाएंगे. सुवीर मीरचंदानी नाम के इस बच्चे ने उनके आधिकारिक दस्तावेजों के फॉन्ट बदलने का उपाय दिया है.

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मिडिल स्कूल में पढ़ता है सुवीर मीरचंदानी
मिडिल स्कूल में पढ़ता है सुवीर मीरचंदानी

एक भारतीय किशोर ने अमेरिका को ऐसे आइडिया दिया है, जिससे वह साल में 23 अरब 95 करोड़ 20 लाख रुपये बचा पाएंगे. सुवीर मीरचंदानी नाम के इस बच्चे ने उनके आधिकारिक दस्तावेजों के फॉन्ट बदलने का उपाय दिया है.

पिट्सबर्ग के मिडिल स्कूल में पढ़ने वाले सुवीर मीरचंदानी ने दावा किया है कि अगर संघीय सरकार गैरामॉन्ड फॉन्ट का इस्तेमाल करती है तो वह सालाना 8 अरब 14 करोड़ 36 लाख 80 हजार रुपये बचा सकेगी, जो स्याही में प्रति वर्ष खर्च होने वाले 27 अरब 96 करोड़ 39 लाख 60 हजार रुपये का 30 फीसदी होता है. इसके अलावा अगर राज्य सरकार भी इसे लागू कर देती है तो सालाना 14 अरब रुपये और बचाए जा सकते हैं.

यह आइडिया सुवीर के दिमाग में तब आया जब वह अपने स्कूल के साइंस प्रोजेक्ट के लिए सोच रहा था कि कैसे बेकार की चीजों में कटौती कर पैसे बचाए जा सकते हैं. उसके दिमाग में आया कि कागज और स्याही का कम से कम उपयोग करने से पैसा बचाने का रास्ता निकल सकता है. पेपर रिसाइकिलिंग करके पैसे की बचत के साथ ही संसाधनों की भी बचत होती है. मीरचंदानी ने कहा, कागज में इस्तेमाल किए जाने वाले स्याही पर भी अगर ध्यान दिया जाए तो इससे भी पैसों की बचत संभव है.

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उसने कहा, 'स्याही, फ्रेंच परफ्यूम के मुकाबले दोगुना महंगा है.' इसके बाद ही प्रोजेक्ट के लिए उसका पूरा ध्यान स्याही की लागत को कम करने की ओर केंद्रित हो गया. इस प्रयोग में उसने अपने स्कूल के ही कागजों और अध्यापकों के नोट्स को इकट्ठा किया. सामान्य तौर पर इस्तेमाल करने वाले अक्षरों को देखा, इसमें e, t, a, o and r ज्यादा थे. उसने फिर देखा कि यह अक्षर अलग-अलग फॉन्ट गैरामॉन्ड, टाइम्स न्यू रोमन, सेंचुरी गॉथिक, कॉमिक सैन्स कितनी बार इस्तेमाल हुई है. फिर इंक कवरेज सॉफ्टवेयर में नापा कि एक अक्षर के लिए कितनी स्याही का इस्तेमाल हो रहा है. अपने विशलेषण से उसने निकाला कि गैरामॉन्ड फॉन्ट के अक्षरों में कम स्याही खर्च होती है. तो उसने पाया कि उसका स्कूल ही गैरामॉन्ड फॉन्ट का इस्तेमाल कर साल में 12 लाख 57 हजार रुपये बचा सकता है.

इसके बाद सुवीर ने सरकारी प्रिटिंग दफ्तरों की वेबसाइट से पांच सैम्पल इकट्ठा किए और उनसे भी यही नतीजा निकला. अगर सरकारी दफ्तर फॉन्ट को बदल लेते हैं तो पैसे बचा सकते हैं. सुवीर मीरचंदानी की यह खोज जर्नल फॉर इमरजिंग इन्वेस्टीगेटर (JEI) में भी छपी. यह हावर्ड के छात्रों द्वारा 2011 में तैयार पब्लिकेशन है, जो मिडिल स्कूल के छात्रों की रचनात्मकता को एक प्लैटफॉर्म देता है. JEI के संस्थापक सारा फनखौसर ने कहा, 'हम सुवीर के इस शोध से बहुत प्रभावित हुए हैं.' JEI का कहना है कि सुवीर का यह प्रोजेक्ट बड़े स्तर पर संघीय सरकार के पैसों की बचत कर सकता है.

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अभी सरकार का प्रिंटिंग पर सालाना 1.8 बिलियन डॉलर खर्च होता है और मीरचंदानी का यह प्रयोग इतने बड़े स्तर पर लागू करना सरकार के लिए एक चुनौती है. सरकारी प्रिंटिंग दफ्तर के मीडिया और पब्लिक रिलेशन मैनेजर गैरी समरसेट ने कहा कि सुवीर का आइडिया बेहतरीन है, लेकिन इसकी बचत ऑनलाइन डॉक्युमेंट को लेकर ही है. मीरचंदानी ने कहा, 'हर कोई ऑनलाइन जानकारियों को उपयोग करने में सक्षम नहीं है. कुछ दस्तावेजों को आज भी प्रिंट करवाना पड़ता है. मैं पहचानता हूं कि आदतों को बदलना थोड़ा मुश्किल है. लेकिन मैं वास्तविक रूप से बदलाव चाहता हूं और इसके लिए मैं जितना संभव होगा प्रयास करूंगा. '

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