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अफगानिस्तान में 10 महीने बाद भारत ने काबुल में शुरू किया डिप्लोमैटिक मिशन, तालिबान सरकार ने दिया सुरक्षा का भरोसा

तीन हफ्ते पहले संयुक्त सचिव जेपी सिंह के नेतृत्व में एक भारतीय टीम ने काबुल का दौरा किया था और अफगानिस्तान के कार्यवाहक विदेश मंत्री मावलवी आमिर खान मुत्ताकी और तालिबान के कुछ अन्य सदस्यों से मुलाकात की थी.

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संयुक्त सचिव जेपी सिंह के नेतृत्व में एक भारतीय टीम ने काबुल का दौरा किया था (फाइल फोटो)
संयुक्त सचिव जेपी सिंह के नेतृत्व में एक भारतीय टीम ने काबुल का दौरा किया था (फाइल फोटो)
स्टोरी हाइलाइट्स
  • भारत ने काबुल में दूतावास को फिर से खोल दिया है
  • जेपी सिंह के नेतृत्व में एक भारतीय टीम ने काबुल का दौरा किया था

अफगानिस्तान में तालिबानी हुकूमत की वापसी के 10 महीने बाद भारत ने बड़ा कदम उठाते हुए अपने दूतावास को फिर से खोल दिया है. विदेश मंत्रालय (MEA) ने अपने बयान में कहा, गुरुवार से एक तकनीकी दल को वहां तैनात किया गया है जो मानवीय सहायता की आपूर्ति में विभिन्न पक्षकारों के साथ समन्वय और निगरानी करेगा. 

बता दें कि तीन हफ्ते पहले संयुक्त सचिव जेपी सिंह के नेतृत्व में एक भारतीय टीम ने काबुल का दौरा किया था और अफगानिस्तान के कार्यवाहक विदेश मंत्री मावलवी आमिर खान मुत्ताकी और तालिबान के कुछ अन्य सदस्यों से मुलाकात की थी. तालिबान पक्ष ने भारतीय टीम को आश्वासन दिया था कि अगर भारत अपने अधिकारियों को काबुल में दूतावास भेजता है तो पर्याप्त सुरक्षा मुहैया कराई जाएगी. 

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने ट्वीट किया, 'अफगानिस्तान के लोगों के लिए भारत की ओर से भूकंप राहत सहायता की पहली खेप काबुल पहुंच गई है. इसे वहां भारतीय दल को सौंप दिया गया है.' वहीं, भारत के दूतावास खोलने के फैसले का तालिबान ने स्वागत किया है.

तालिबानी सरकार के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अब्दुल कहर बल्खि ने ट्वीट किया कि इस्लामिक अमीरात अफगानिस्तान (IEA) अफगान लोगों के साथ अपने संबंधों और उनकी मानवीय सहायता को जारी रखने के लिए काबुल में अपने दूतावास में राजनयिकों और तकनीकी टीम को वापस करने के भारत के निर्णय का स्वागत करता है.

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उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान में भारतीय राजनयिकों की वापसी और दूतावास को फिर से खोलना दर्शाता है कि देश में सुरक्षा स्थापित है, और सभी राजनीतिक और राजनयिक अधिकारों का सम्मान किया जाता है.'

गौरतलब है कि भारत के इस कदम को युद्ध प्रभावित रहे अफगानिस्तान में तालिबान के सत्ता पर काबिज होने के बाद वहां अपनी पूर्ण मौजूदगी की दिशा में पहला कदम माना जा रहा है. वहीं, MEA ये कहता रहा है कि दूतावास बंद नहीं था, केवल अधिकारियों को घर वापस लाया गया था और स्थानीय कर्मचारी काम करते रहे हैं. 


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