scorecardresearch
 

The Sick Man of Europe... मुस्तफा कमाल पाशा के मॉडर्न तुर्की को कैसे एर्दोगन ने कट्टर देश बना डाला?

ऑटोमन साम्राज्य के बिखरने के बाद मुस्तफा कमाल पाशा ने एक धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक तुर्की की स्थापना की थी जहां सरकार इस्लामिक नीतियों से नहीं चलती थी. उनके बाद से नेताओं ने भी उनकी नीतियों का पालन किया लेकिन एर्दोगन ने आते ही तुर्की में ऑटोमन साम्राज्य का वैभव वापस लाने का वादा कर अपनी राजनीति चमकाई.

Advertisement
X
एर्दोगन कमालपाशा के धर्मनिरपेक्ष तुर्की को इस्लामिक तरीके से चला रहे हैं (Photo- Reuters/Social Media)
एर्दोगन कमालपाशा के धर्मनिरपेक्ष तुर्की को इस्लामिक तरीके से चला रहे हैं (Photo- Reuters/Social Media)

'मस्जिदें हमारी छावनी हैं, गुंबदें हमारी रक्षा कवच, मीनारें हमारी तलवार और इस्लाम के अनुयायी हमारे सैनिक हैं...',  रेचेप तैय्यप एर्दोगन जब 1994 में पहली बार इस्तांबुल के इस्लामिक रूढ़िवादी मेयर बने तब वो अपनी रैलियों में अक्सर तुर्की के राष्ट्रवादी विचारक जिया गोकाई का ये उद्धरण दोहराया करते. तुर्की की राजनीति में एर्दोगन के उदय में इस्लामिक कट्टरता की बड़ी भूमिका रही और उन्होंने आते ही धर्मनिरपेक्ष तुर्की के मुसलमानों में कट्टर इस्लामिक राष्ट्रवाद की भावना भरनी शुरू की. वो अपने भाषणों में इस्लाम की बातें करते जिससे मुसलमानों को यह लगने लगा कि वो इस्लाम की रक्षा और उनके हित की बात कर रहे हैं.

एर्दोगन ने आते ही तुर्की के ऑटोमन साम्राज्य के अतीत को एक बार फिर से जीवित करने का बीड़ा उठाया. उन्होंने तुर्की को नव-ऑटोमन बनाने की कोशिश की जो कि तुर्की से पिता (तुर्की में अतातुर्क) कहे जाने वाले मुस्तफा कमाल पाशा 'अतातुर्क' के तुर्की से बिल्कुल अलग होने वाला था. इस बात को अब 31 साल बीत चुके हैं और अब एर्दोगन तुर्की के राष्ट्रपति हैं.

मुस्तफा कमाल पाशा 'अतातुर्क' और उनसे पहले का तुर्की

मुस्तफा कमाल अतातुर्क का तुर्की कैसा था, इसे जानने-समझने के लिए हमें पहले ऑटोमन साम्राज्य के बारे में जानना होगा. तुर्की कभी विशाल ऑटोमन साम्राज्य का हिस्सा हुआ करता था जो 23 अक्टूबर 1923 को तुर्की गणतंत्र के रूप में सामने आया.

ऑटोमन साम्राज्य की बात करें तो, इस साम्राज्य की स्थापना 13वी शताब्दी में उस्मान प्रथम ने अंतोलिया (आधुनिक तुर्की) में की थी. यह एक शक्तिशाली साम्राज्य था जो छह सदी से अधिक समय तक कायम रहा.

Advertisement

ऑटोमन साम्राज्य इतना विशाल था कि यह तीन महादेशों में फैला था. आधुनिक बुल्गारिया, मिस्र, हंगरी, ग्रीस, जॉर्डन, इजरायल, लेबनान, फिलिस्तीन, मकदूनिया, रोमानिया, सीरिया, सऊदी अरब का कुछ हिस्सा और उत्तरी अफ्रीका ऑटोमन साम्राज्य का हिस्सा हुआ करते थे. अल्बानिया, साइप्रस, इराक, सर्बिया, यमन और कतर भी विशाल साम्राज्य के तहत आते थे जिसपर उस्मान प्रथ के वंशजों ने छह सदियों तक शासन किया.

कमजोर होता साम्राज्य कैसे बन गया 'Sick Man Of Europe'

ऑटोमन साम्राज्य बेहद शक्तिशाली माना जाता था लेकिन यह इतना विशाल था कि पूरे क्षेत्र पर शासन करना कठिन था. बाद में चलकर साम्राज्य के सुल्तानों में विलासिता बढ़ने लगी, राज्य में भ्रष्टाचार चरम पर पहुंचता गया और साम्राज्य में रह रहे आर्मीनियाई, कुर्द और ग्रीक लोग तुर्कों के अत्याचार से परेशान हो विद्रोह पर उतर आए.

विशाल साम्राज्य में पहली दरार 1571 के लेंपाटो की लड़ाई में पड़ी जब स्पेन के राजा के नेतृत्व में कैथोलिक देशों ने ऑटोमन साम्राज्य को हरा दिया. इस हार के साथ ही ऑटोमन साम्राज्य के पतन की शुरुआत हो गई.

पूरे साम्राज्य में बेरोजगारी बढ़ती गई, पैसे की कमी हो गई और कर्ज बढ़ता गया. राजनीतिक अस्थिरता का दौर भी शुरू हुआ और 18वीं सदी के आते-आते ऑटोमन साम्राज्य की हालत ऐसी हो चुकी थी जैसे किसी बीमार इंसान की होती है. 

Advertisement

ऑटोमन साम्राज्य की यह हालत देखकर 1853 में रूस के जार (राजा) निकोलस प्रथम ने ऑटोमन साम्राज्य के लिए 'Sick Man Of Europe' (यूरोप का मरीज) शब्द का इस्तेमाल किया. ऑटोमन साम्राज्य के लिए इस्तेमाल किए गए रूसी जार के ये शब्द काफी लोकप्रिय हुए और साम्राज्य के पतन के सालों बाद भी तुर्की के लिए इस शब्द का इस्तेमाल होता रहा. 

इधर, प्रथम विश्वयुद्ध में पश्चिमी देशों के विजय के साथ ही ऑटोमन साम्राज्य के विघटन की शुरुआत हो गई और आधिकारिक तौर पर 1 नवंबर 1922 को ऑटोमन साम्राज्य का अंत हो गया.

इस्लामिक साम्राज्य के पतन के एक साल बाद तुर्की गणतंत्र की स्थापना की गई जिसकी वकालत मुस्तफा कमाल अतातुर्क ने किया था. वो तुर्की को एक गणतंत्र बनाना चाहते थे और उनकी क्रांति के फलस्वरूप यह संभव हुआ और तुर्की धर्मनिरपेक्ष, गणतंत्र देश के रूप में स्थापित हुआ.

अतातुर्क का धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक तुर्की

अतातुर्क ने एक ऐसे तुर्की की परिकल्पना की थी जो पारंपरिक कट्टर इस्लाम के रास्ते पर न चलकर लोकतांत्रिक हो. उन्होंने तुर्की को एक आधुनिक यूरोपीय देश बनाने की कोशिश की और इसके लिए कई कदम उठाए.

अतातुर्क ने इस्लामिक खलिफाओं का महत्व खत्म कर दिया, इस्लामिक अदालतें बंद कर दी गई और बच्चों को इस्लामिक शिक्षा देने के बजाए आधुनिक शिक्षा देने की शुरुआत की गई. उन्होंने मदरसे की जगह नए तरीके के स्कूल खुलवाए, अरबी लिपि के बजाए रोमन लिपी पर रोज दिया.

Advertisement
Photo- Reuters

अतातुर्क ने देश में स्विटजरलैंड के सिविल कोड को लागू किया. उन्होंने महिला अधिकारों के लिए काम करते हुए उन्हें वोटिंग का अधिकार दिया. अतातुर्क ने उस दौरान पहली बार परिवार नियोजन की बात की.

आधुनिक तुर्की के संस्थापक अतातुर्क ने तुर्की को धर्मनिरपेक्ष दिखाने के लिए तुर्की की ऐतिहासिक मस्जिद हागिया सोफिया को एक संग्रहालय में बदल दिया.

हागिया सोफिया को छठी शताब्दी में एक चर्च के रूप में बनाया गया था. 1453 में ऑटोमन साम्राज्य के शासक महमद द्वितीय ने इस चर्च को मस्जिद में बदल दिया था. लेकिन अतातुर्क ने 1934 में हागिया सोफिया के भवन में कुछ बदलाव कर इसे धर्मनिरपेक्ष रूप दिया और इसे एक संग्रहालय में बदल दिया गया. 1985 में संग्रहालय को यूनेस्के ने अपने विश्व धरोहर लिस्ट में शामिल कर लिया.

एर्दोगन का कट्टर इस्लामिक आंदोलन और हागिया सोफिया का फिर से मस्जिद में बदलना

अतातुर्क ने तु्र्की को धर्मनिरपेक्ष बनाने की हर संभव कोशिश की और उनके बाद के नेताओं ने उनकी विरासत को संभाले रखा. लेकिन एके पार्टी (जस्टिस एंड डेवलपमेंट पार्टी) के नेता एर्दोगन ने आते ही अतातुर्क की विरासत मिटाकर ऑटोमन साम्राज्य की विरासत को पुनर्जीवित करना शुरू कर दिया.

1998 में एर्दोगन जब इस्तांबुल के मेयर थे (Photo- Reuters)

एर्दोगन इस्लामिक आंदोलन के जरिए तुर्की की सत्ता में आए और जल्द ही देश के प्रधानमंत्री बन गए.

Advertisement

एर्दोगन 2003 में तुर्की के प्रधानमंत्री बने और 11 साल तक इस पद पर रहे. साल 2014 में वो तुर्की के राष्ट्रपति बने और अब तक तुर्की की कमान उनके हाथों में बनी हुई है.

तुर्की पर शासन के लिए एर्दोगन ने इस्लामिक नेता की अपनी एक छवि बनाई है जो उनके प्रशंसकों के बीच काफी लोकप्रिय है. उनके प्रशंसक मानते हैं कि एर्दोगन ने तुर्की की पुरानी इस्लामिक विरासत को पुनर्जीवित किया है और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तुर्की का कद बढ़ाया है.

इस्लामिक नेता की छवि वाले एर्दोगन इस्लामिक प्रतीकों को लेकर भी काफी सजग रहते हैं. उनकी पत्नी एमिन एर्दोगन हमेशा हिजाब में दिखती हैं.

1980 में तुर्की में सार्वजनिक संस्थानों और यूनिवर्सिटीज में हिजाब पहनने पर प्रतिबंध लगा दिया गया था. हिजाब प्रतिबंध के कारण एर्दोगन ने अपनी दो बेटियों एसरा और सुमैया एर्दोगन को पढ़ने के लिए अमेरिका के इंडियाना यूनिवर्सिटी में भेजा क्योंकि वहां छात्राओं को हिजाब पहनने पर मनाही नहीं थी.

इसके बाद एर्दोगन के हाथ में जब पूरी ताकत आ गई तो उन्होंने धीरे-धीरे करके तुर्की में हिजाब बैन को हटा दिया था. एर्दोगन ने 2010 में छात्राओं के हिजाब पहनने पर बैन को हटा दिया था और 2013 में उन्होंने सरकारी अधिकारियों के हिजाब पहनने पर लगे प्रतिबंध को भी हटाया था.

Advertisement

एर्दोगन ने अतातुर्क के परिवार नियोजन वाले विचार को भी नकार दिया. उनका कहा है कि 'मुसलमानों को परिवार नियोजन नहीं अपनाना चाहिए.'

अतातुर्की ने हागिया सोफिया को जिस तर्क के आधार पर संग्रहालय में बदला था, उसकी तर्क को पलटते हुए 2020 में एर्दोगन ने हागिया सोफिया को दोबारा मस्जिद के रूप में खोलने की घोषणा कर दी. जुलाई 2020 में हागिया सोफिया को मस्जिद में बदलने की घोषणा करते हुए एर्दोगन ने कहा था कि मस्जिद में अब नमाज पढ़े जाएंगे.

एर्दोगन खुद को इस्लामिक दुनिया के नेता के रूप में पेश करते हैं. वो अपनी इसी छवि को मजबूत करने के लिए गाहे-बगाहे फिलिस्तीन और कश्मीर का मुद्दा उठाते रहे रहते हैं. इसी मुद्दे को लेकर भारत से उनकी अनबन रही है.

विपक्ष पर नकेल और हार की आशंका के बावजूद चुनाव जीतते एर्दोगन

इतने सालों के शासन में ऐसा नहीं कि एर्दोगन की लोकप्रियता में कोई कमी नहीं आई और उनके सामने कोई खड़ा नहीं हुआ. हाल के सालों में तुर्की में एर्दोगन की लोकप्रियता घटी है और मजबूत विपक्षी नेता भी सामने आए हैं जिन्हें एर्दोगन की सरकार ने जेल में डाल दिया है.

Photo- Reuters

तुर्की में 2023 में राष्ट्रपति चुनाव थे. देश महंगाई और बेरोजगारी से जूझ रहा था. पिछले ही साल फरवरी 2022 में तुर्की में दो विनाशकारी भूकंप आए थे जिसमें 50 हजार से अधिक लोगों की मौत हो गई थी. इस भूकंप में तुर्की के दर्जनों शहर जमींदोज हो गए. राहत और बचाव कार्य में अव्यवस्था से भी लोग एर्दोगन से नाराज थे.

Advertisement

लोगों को आलोचनाओं को देखते हुए तब कई विश्लेषकों ने कहा कि 2023 में एर्दोगन की हार पक्की है. एर्दोगन के सामने विपक्षी पार्टी सीएचपी के नेता कमाल कलचदारलू चुनावी मैदान में थे. लेकिन जब नतीजे आए तो सब हैरान रह गए क्योंकि जीत एर्दोगन की हुई. उन्होंने 52.16% वोट हासिल किए.

एर्दोगन पर अपने विरोधियों को झूठे मामलों में फंसाकर उन्हें जेल में डालने के आरोप लगते रहे हैं. हाल ही में उन्होंने तुर्की के बेहद लोकप्रिय विपक्षी नेता एकरेम इमामोग्लू को भ्रष्टाचार और आतंकवाद के आरोपों में जेल में डाल दिया. एकरेम 2028 के राष्ट्रपति चुनाव में एर्दोगन को टक्कर देने वाले थे और उनकी लोकप्रियता से डरे एर्दोगन ने उन्हें जेल में डाल दिया.

---- समाप्त ----
Live TV

Advertisement
Advertisement