उत्तर भारत समेत पूरे देश में ठंड अपना रंग दिखा रही है. लोग कड़ाके की सर्दी से परेशान हैं लेकिन सर्दी से हमारी मुलाकात नहीं हुई. रूस का ओमाइकॉन कस्बा दुनिया का सबसे ठंडा रिहाइशी हिस्सा है. सर्दियों में यहां पलकों पर बर्फ जम जाती है. लोग गाड़ियों को 24 घंटे ऑन रखते हैं. यहां तक कि कसरत तक की मनाही रहती है क्योंकि इतनी ठंड में पसीना बहाना मौत ला सकता है.
साइबेरिया में याकुत्या इलाके के पास बसे इस कस्बे में आखिरी बार कुल 500 लोगों की आबादी दर्ज की गई थी. सर्दियों में 21 घंटे से भी ज्यादा समय तक रात जैसे गहरे अंधेरे में डूबा ओमाइकॉन हमेशा से दुनिया के लिए आकर्षण और रहस्यों का केंद्र रहा. कैसे रहते होंगे दुनिया के सबसे ठंडे हिस्से में लोग. क्या वे भी हमारी तरह ही प्यार और गुस्सा करते होंगे, या ठंड में इमोशन्स भी जम जाते हैं. ये समझने के लिए कई बार रिसर्चरों की टीम वहां गई तो लेकिन बेनतीजा वापस लौट आई.
साल 2015 में न्यूजीलैंड से कुछ फोटोग्राफरों की टीम पहुंची. लंबे समय तक वे होटल से बाहर निकलने की भी हिम्मत नहीं जुटा सके, लेकिन निकलने पर पाया कि भावनाएं ठंड में भी वही रहती हैं, जैसे हम गर्म इलाके वालों की होती हैं.
ओमाइकॉन का रूसी में मतलब है, वो पानी जो कभी जमे नहीं. लेकिन नाम से उलट यहां गर्मी के मौसम में भी पानी जमा रहता है. साल 1920 के आसपास रेंडियर चराने वालों एक बड़ा झुंड गर्म पानी के सोते की तलाश में घूमते हुए यहां पहुंच गया और यहीं बस गया. इसके बाद से ही ओमाइकॉन पर चर्चा शुरू हुई क्योंकि लोग समझना चाहते थे कि इतनी ठंड में लोग रहते कैसे हैं.

इतनी यानी कितनी ठंड है यहां
गर्मियों में यहां का तापमान -10 डिग्री या इससे भी कम रहता है, जबकि सर्दियों में -60 तक चला जाता है. कई बार तापमान इससे भी कम होकर 80 तक पहुंच जाता है. ये वो समय है जब आप हीटर वाले घर से बाहर निकले तो आंखों की बरौनियां जम जाएंगी, यहां तक कि ठंड के कारण आंखों से निकलते आंसू भी जम जाएंगे लेकिन खास बात ये है कि ठंड में भी यहां जीवन चलता रहता है. यहां तक कि स्कूल भी तभी बंद होता है, जब तापमान -50 डिग्री से नीचे गिरने लगे.
क्या खाते हैं ओमाइकॉन में लोग
यहां सालभर ही तापमान माइनस में रहता है, इसलिए यहां फसलें, अनाज उगाने का खास स्कोप नहीं. लोग मीट-बेस्ड खाना खाते हैं, जिसमें रेंडियर का मांस मुख्य है. इसके अलावा फ्रोजन मांस की वराइटी मिलती है, जिसमें मछली से लेकर कबूतर और यहां तक कि घोड़ा भी मिल जाएगा. यहां के लोग वो सारी चीजें खाते हैं, जो गर्मी देकर जिंदा रहने में उनकी मदद कर सकें. ये चीजें हमेशा आग पर पकाकर नहीं खाई जातीं. इसमें काफी ऊर्जा और समय लगता है, तो लोग ठंडा खाना ही खा लेते हैं. बाजार में आइसक्रीम के लिए तक फ्रिज की जरूरत नहीं होती. लोग दुकानों में खुले में आइसक्रीम और मांस-मछली रखते हैं, जो महीनों फ्रोजन की तरह ताजा रहती हैं.

एसोसिएटेड प्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार यहां हर घर और हर दुकान में सेंट्रल हीटिंग सिस्टम है, जो चौबीसों घंटे चालू रहता है. पावर बैकअप भी यहां रखा जाता है. अगर लकड़ी और कोयला खत्म हो जाए तो लगभग 5 घंटों के लिए यहां बिजली नहीं रहती.
कमाने का यहां कोई जरिया नहीं, सिवाय इसके के यहां के लोग आइस फिशरमैन का काम करते हैं. पास ही में लीना नदी है, जहां वे बर्फ से मछलियां पकड़ते और याकुत्स्क शहर में जाकर बेचते हैं. इसके अलावा रेंडियर और घोड़े का मांस भी बेचते हैं. लेकिन असल कमाई का जरिया वो त्योहार है जो सैलानियों को आकर्षित करने के लिए मनाया जाता है. पोल ऑफ द कोल्ड त्योहार साल 2001 से याकुत्स्क शहर में मनाया जा रहा है, जहां ओमाइकॉन से कल्चरल ग्रुप आते और प्रोग्राम करते हैं. सैलानी इसके साथ ही डॉग स्लेजिंग का भी आनंद लेते हैं.
मास्को से लगभग चार दिन का सफर करके यहां तक पहुंचने के लिए सड़कें एकदम बढ़िया हैं. इनका भी इतिहास है. इन्हें रोड ऑफ बोन्स कहते हैं. तानाशाह स्टालिन ने अपने विरोधियों को सीधे-सीधे मौत की सजा देने की बजाए साइबेरिया में सड़कें बनाने का काम दे दिया. ठंड में मेहनत करते हुए बहुत से लोगों की मौत हार्ट अटैक से हो गई.