भारत और चीन के बीच पिछले कुछ समय में लगातार तनाव बढ़ा है. सिक्किम बॉर्डर को लेकर शुरू हुआ विवाद लगातार बढ़ रहा है. दोनों देशों की ओर से लगातार बयानबाजी भी हो रही है. अब बुधवार को चीनी विदेश मंत्रालय ने भारत पर पंचशील समझौता तोड़ने का आरोप लगाया है, चीन का कहना है कि भारत ने ही इसकी नींव रखी थी और भारत ही इसे तोड़ रहा है. 63 साल पहले हुआ ये पंचशील समझौता आखिर क्या था, यहां समझें....
पंचशील समझौते पर 63 साल पहले 29 अप्रैल 1954 को हस्ताक्षर हुए थे. ये समझौता चीन के क्षेत्र तिब्बत और भारत के बीच व्यापार और आपसी संबंधों को लेकर ये समझौता हुआ था. इसमें पांच सिद्धांत थे जो अगले पांच साल तक भारत की विदेश नीति की रीढ़ रहे थे. ये समझौता तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के नेतृत्व में हुआ था, चीन के पहले प्रीमियर (प्रधानमंत्री) चाऊ एन लाई के बीच हुआ था.
इस समझौते के बाद ही हिंदी-चीनी भाई-भाई के नारे लगे थे और भारत ने गुट निरपेक्ष रवैया अपनाया. हालांकि फिर 1962 में चीन के साथ हुए युद्ध में इस संधि की मूल भावना को काफ़ी चोट पहुंची थी.
दरअसल, पंचशील शब्द ऐतिहासिक बौद्ध अभिलेखों से लिया गया है जो कि बौद्ध भिक्षुओं का व्यवहार निर्धारित करने वाले पांच निषेध होते हैं. पंडित जवाहर लाल नेहरू ने वहीं से ये शब्द लिया था. इस समझौते के बारे में 31 दिसंबर 1953 और 29 अप्रैल 1954 को बैठकें हुई थीं जिसके बाद बीजिंग में इस पर हस्ताक्षर हुए.
पंचशील मुद्दे में ये 5 मुख्य बिंदु थे अहम
1. एक दूसरे की अखंडता और संप्रभुता का सम्मान
2. परस्पर अनाक्रमण
3. एक दूसरे के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करना
4. समान और परस्पर लाभकारी संबंध
5. शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व
इस समझौते के तहत भारत ने तिब्बत को चीन का एक क्षेत्र स्वीकार किया था, इस तरह उस समय इस संधि ने भारत और चीन के संबंधों के तनाव को काफी हद तक दूर कर दिया था.
चीन ने धमकाया
इससे पहले बुधवार को चीन के सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स ने कहा कि भारत को एक बार फिर से सबक सिखाने का समय आ गया है. इस बार भारत का 1962 से भी ज्यादा बुरा हाल किया जाएगा. बीते दिनों भारत रक्षा मंत्री अरुण जेटली के बयान के बाद चीनी अखबार की इतनी तीखी टिप्पणी देखने को मिली है. दरअसल, सिक्किम सेक्टर पर तनाव के बाद चीन ने भारत को 1962 की हार की याद दिलाई थी, जिसके जवाब में रक्षा मंत्री जेटली ने कहा था कि 1962 से अब के हालात अलग हैं. भारत को 1962 का देश समझने की भूल नहीं करनी चाहिए.