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विश्व

नेपाल की तरह श्रीलंका ने भी भारत के खिलाफ चला चीन का कार्ड?

अब नेपाल की तरह श्रीलंका ने भी भारत के खिलाफ चला चीन का कार्ड?
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दुनिया भर में चीनी निवेश और कर्ज के नुकसान को समझाने के लिए श्रीलंका का उदाहरण दिया जाता है. कर्ज नहीं चुका पाने की स्थिति में श्रीलंका को रणनीतिक रूप से अहम हंबनटोटा बंदरगाह चीन को सौंपना पड़ा था. इसके बावजूद, श्रीलंका एक बार फिर कर्ज के लिए चीन का रुख कर रहा है..
अब नेपाल की तरह श्रीलंका ने भी भारत के खिलाफ चला चीन का कार्ड?
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'द हिंदू' की रिपोर्ट के मुताबिक, कोरोना महामारी के संकट में श्रीलंका आर्थिक संकटों का सामना कर रहा है, ऐसे में उसने पहले भारत सरकार से कर्ज भुगतान को टालने की अपील की थी हालांकि, चार महीने बीतने के बाद भी इसे लेकर कोई फैसला नहीं किया जा सका. विश्लेषकों का कहना है कि अब नेपाल की ही तरह श्रीलंका भी भारत के साथ चीन कार्ड खेल रहा है.
अब नेपाल की तरह श्रीलंका ने भी भारत के खिलाफ चला चीन का कार्ड?
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शनिवार को श्रीलंका के प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे ने अंतरराष्ट्रीय मुद्रा संगठनों से विकासशील देशों को कर्ज में राहत देने की मांग दोहराई. राजपक्षे ने भारत समेत सभी सहयोगियों से भी कर्ज अदायगी को टालने की अपील की है. श्रीलंका ने भारत से 96 करोड़ डॉलर का कर्ज ले रखा है, इसके भुगतान को लेकर दोनों देशों में अभी बातचीत चल रही है. इसके अलावा, श्रीलंका करेंसी स्वैप फैसिलिटी (मुद्रा अदला-बदली) देने की भी मांग कर रहा है.
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'द हिंदू' की रिपोर्ट के मुताबिक, विदेश मंत्रालय के अधिकारियों का कहना है कि नई दिल्ली और कोलंबो के बीच इस मुद्दे को लेकर एक वर्चुअल बैठक का प्रस्ताव रखा गया था. हालांकि, ये बैठक क्यों नहीं हो सकी, इसकी वजह स्पष्ट नहीं हो सकी. एक भारतीय अधिकारी ने बताया, श्रीलंका की तरफ से बातचीत की तारीख तय नहीं हो पा रही है.
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पिछले सप्ताह, श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे ने यूरोपीय यूनियन के राजदूतों से बातचीत में कहा था कि उनके देश को और कर्ज के बजाय नए निवेश की जरूरत है. मार्च और अप्रैल महीने में कोरोना वायरस महामारी के फैलने के बाद उन्होंने अंतरराष्ट्रीय संगठनों से भी ऐसी ही अपील की थी. आर्थिक संकट और पिछले साल ईस्टर रविवार को हुए आतंकी हमले की वजह से श्रीलंका का विदेशी मुद्रा भंडार कम होता जा रहा है. कोरोना महामारी की वजह से श्रीलंका की सरकार की कमाई के मुख्य स्रोत निर्यात (चाय, कपड़ा), लेबर रेमिटेंस और पर्यटन बुरी तरह प्रभावित हुए हैं.
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श्रीलंका को इस साल विदेशी कर्ज के तौर पर 2.9 अरब डॉलर का भुगतान करना है. कर्ज अदायगी के लिए मोहलत बढ़ाने और मुद्रा की अदला-बदली सुविधा को लेकर श्रीलंका भारत से तीन बार अनुरोध कर चुका है.

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हालांकि, भारत से मदद को लेकर कोई आश्वासन ना मिलने के बीच श्रीलंका की सरकार एक बार फिर चीन का दरवाजा खटखटा रही है. जाहिर है कि श्रीलंका के इस कदम से भारत पर दबाव बढ़ेगा. 13 मई को चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और श्रीलंका के राष्ट्रपति राजपक्षे के बीच बातचीत हुई जिसके बाद बीजिंग ने महामारी के असर से लड़ने के लिए श्रीलंका को 50 करोड़ डॉलर की मदद को मंजूरी दे दी. चीन से लिए कर्ज की अदायगी को लेकर कोलंबो में चीनी दूतावास के अधिकारियों ने 'द हिंदू' को बताया कि दोनों देश विभिन्न चैनलों और मैकेनिजम के जरिए आर्थिक सहयोग पर काम कर रहे हैं. चीनी दूतावास के प्रवक्ता लूओ चोंग ने कहा कि इस संबंध में आने वाले हफ्तों में और व्यावहारिक प्रगति देखने को मिलेगी.

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कोरोना वायरस की महामारी से पहले फरवरी महीने में जब श्रीलंकाई प्रधानमंत्री राजपक्षे ने नई दिल्ली का दौरा किया था तो उस वक्त भी कर्ज भुगतान की मोहलत बढ़ाने के लिए कहा था. अप्रैल महीने में श्रीलंका के केंद्रीय बैंक ने सार्क देशों को मिलने वाली सुविधा के तहत आरबीआई से 40 करोड़ डॉलर की मुद्रा की अदला-बदली करने की अपील की थी. मई महीने में जब भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महामारी और द्विपक्षीय सहयोग पर चर्चा के लिए श्रीलंका के राष्ट्रपति से बातचीत की तो उन्होंने 1.1 अरब डॉलर करेंसी स्वैप के लिए कहा था.

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स्थानीय मीडिया की रिपोर्ट्स के अनुसार, जापान इंटरनेशनल कोऑपरेशन एजेंसी ने श्रीलंका के बढ़ते विदेशी कर्ज को देखते हुए प्रस्तावित लाइट रेल ट्रांजिट के लिए फंडिंग रोक दी है जिससे देश का आर्थिक संकट और गहरा सकता है. श्रीलंका पर कुल विदेशी कर्ज करीब 55 अरब डॉलर है और यह श्रीलंका की जीडीपी का 80 फीसदी है. इस कर्ज में चीन और एशियन डिवेलपमेंट बैंक का 14 फीसदी हिस्सा है. जापान का 12 फीसदी, विश्व बैंक का 11 फीसदी और भारत का दो फीसदी हिस्सा है.
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दिसंबर 2017 में श्रीलंका के तत्कालीन राष्ट्रपति मैत्रीपाल सिरिसेना और प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे ने चीन के कर्ज के जाल में फंसकर हंबनटोटा बंदरगाह और इसके आस-पास की 15000 एकड़ जमीन 99 सालों के लिए चीन को सौंप दी थी. उस वक्त श्रीलंका की सरकार ने अपने इस कदम का यह कहकर बचाव किया था कि वह बंदरगाह को बनाने के दौरान लिए गए चीनी कर्ज को चुका नहीं सकी इसलिए उसके पास कोई और रास्ता नहीं बचा था.

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चीन से फिर कर्ज लेने जा रहे श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटाबाया ने चुनाव जीतने से पहले हंबनटोटा पर कहा था, "भले ही चीन हमारा अच्छा दोस्त है और हमें विकास करने के लिए उनकी मदद की जरूरत है, लेकिन मैं यह कहने से डरता नहीं हूं कि यह गलती थी. मैं चीन से पुरानी डील पर पुनर्विचार करने और बेहतर समझौते के साथ आकर हमारी मदद करने की अपील करता हूं. आज लोग उस समझौते को लेकर खुश नहीं है."
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