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विश्व

तेल पर भिड़े सऊदी और UAE, बढ़ा भारत का संकट

Saudi-UAE tussle
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तेल की कीमतों में इजाफा थमने की उम्मीद नजर नहीं आ रही है, बल्कि दाम में बढ़ोतरी की संभावना बढ़ गई है. क्योंकि तेल निर्यातक देशों के समूह ओपेक प्लस देशों के बीच प्रोडक्शन बढ़ाने को लेकर कोई रजामंदी नहीं बन पाई है. सऊदी अरब और यूएई में आउटपुट डील को लेकर ठन गई है.

(फोटो-रॉयटर्स)

Saudi-UAE tussle
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सऊदी अरब ने तेल उत्पादन न बढ़ाने की मौजूदा डील को साल 2022 तक विस्तार देने का प्रस्ताव रखा, लेकिन यूएई इससे सहमत नहीं है. संयुक्त अरब अमीरात ने ओपेक और अन्य तेल उत्पादक देशों के तेल प्रोडक्शन में कटौती के फैसले का विरोध किया. यूएई इस डील को अपनी शर्तों पर आगे बढ़ने के लिए अड़ा हुआ है. यूएई का कहना है कि वह अपना तेल उत्पादन बढ़ाए बिना डील को आगे बढ़ाने के प्रस्ताव का समर्थन नहीं करेगा. उसने तेल उत्पादन बढ़ाये बिना डील को 2022 तक बढ़ाने के प्रस्ताव को अपने साथ नाइंसाफी करार दिया.  

(फोटो-रॉयटर्स)

Saudi-UAE tussle
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दोनों देशों में इस मुद्दे पर मतभेद इतना बढ़ गया कि बिना किसी नतीजे के बैठक खत्म हो गई, और आगे मीटिंग कब होगी यह भी तय नहीं हो पाया. यूएई तेल उत्पादन में चरणबद्ध वृद्धि के साथ मौजूदा सौदे को 2022 तक बढ़ाने के सऊदी के प्रस्ताव का विरोध कर रहा है. 

(फोटो-रॉयटर्स)

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तेल की मांगों में कमी की वजह से कच्चे तेल के दामों में कमी दर्ज की गई थी. इसलिए संतुलन बनाए रखने के लिए उत्पादन को कम करने का फैसला किया गया था. सऊदी अरब को लगता है कि वैश्विक आर्थिक सुधार अभी भी कठिन दौर गुजर रहा है. वो चाहता है कि बाजार को संतुलन में रखने के लिए डील को 2022 अप्रैल तक बढ़ाया जाए. सऊदी अरब ओपेक के सिर्फ एक सदस्य देश के लिए उत्पादन बेसलाइन में संशोधन का भी विरोध कर रहा है. सऊदी का मानना है कि अगर एक देश के लिए यह रियायत दी गई तो अन्य देश भी इसकी मांग करने लगेंगे. 

(फोटो-रॉयटर्स)
 

Saudi-UAE tussle
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बहरहाल, सऊदी और यूएई के बीच तकरार का नतीजा यह होगा कि अगस्त में होने वाली सप्लाई में अपेक्षाकृत कोई बढ़ोतरी नहीं होगी. यह विशेष रूप से अमेरिका, यूरोप, चीन और भारत से मांग में वृद्धि के रूप में बाजार को मजबूत करेगा. 

(फोटो-रॉयटर्स)

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एक रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले सप्ताह यूएई ने उत्पादन बढ़ाने के प्रस्ताव को रोक दिया था. वह अपने लिए बेहतर शर्तों की मांग कर रहा था. वहीं सऊदी अरब ने इस साल अगस्त से दिसंबर तक रोजाना 2 मिलियन बैरल तेल उत्पादन बढ़ाने का प्रस्ताव रखा था. लेकिन उसने तेल उत्पादन में कटौती को 2020 तक जारी रखने का भी प्रस्ताव रखा था.  
 

(प्रतीकात्म फोटो)

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दोनों देशों की तकरार का तेल की कीमतों पर असर भी दिखा. सोमवार को कच्चे तेल का दाम लगभग 77 डॉलर प्रति बैरल रहा. जो 2018 के बाद से सबसे अधिक है. कई बैंकों ने हाल ही में 80 डॉलर प्रति बैरल तेल की कीमत रहने का अनुमान लगाया था.

(प्रतीकात्मक फोटो-Getty Images)

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इसका मतलब है कि भारत में तेल की कीमतें तब तक बढ़ती रहेंगी जब तक कि केंद्र सरकार पिछले साल बढ़ाए गए टैक्स को कम नहीं करती है. भारत की कच्चे तेल की खरीद लागत जनवरी में लगभग 60 डॉलर प्रति बैरल से बढ़कर लगभग 75 डॉलर हो गई है. 

(फाइल फोटो-PTI)

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नतीजतन, पेट्रोल फिलहाल 100 रुपये प्रति लीटर के हिसाब से बिक रहा है. डीजल भी देश के अधिकांश हिस्सों में 100 रुपये लीटर की तरफ तेजी से बढ़ रहा है. पिछले साल सरकार ने तेल पर काफी टैक्स बढ़ा दिए थे. इसकी वजह से तेल की कीमतों में काफी इजाफा हुआ था. केंद्र ने पिछले साल मार्च से मई के बीच पेट्रोल पर 13 रुपये और डीजल पर 16 रुपये उत्पाद शुल्क बढ़ाया था.  

(फाइल फोटो-PTI)

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भारत अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल उत्पादन बढ़ाने की मांग करता रहा है. लेकिन ओपेक देशों ने इससे मना कर दिया. केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने ओपेक देशों से तेल प्रोडक्शन पर लागू नियंत्रण को हटाने का आग्रह किया था, लेकिन सऊदी अरब का कहना था कि पिछले साल जब इंटरनेशनल मार्केट में कच्चे तेल की कीमतें कम थीं, उस समय खरीदे गए तेल का उपयोग भारत कर सकता है.

(फाइल फोटो-PTI)

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