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सऊदी अरब की सरकार ने शादी के मामले में महिलाओं को दिया झटका

सऊदी अरब की सरकार ने शादी के मामले में महिलाओं को दिया झटका
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सऊदी अरब की न्यायिक समिति शूरा काउंसिल ने पुरुष अभिभावक की इजाजत के बगैर महिलाओं की शादी का प्रस्ताव खारिज कर दिया है. महिलाओं को स्वतंत्र रूप से शादी करने का अधिकार दिलाने के लिए 'फीमेल काउंसिल मेंबर' ने सुझाव रखा था.
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अल रियाद की एक रिपोर्ट के मुताबिक, इकबाल दरंदारी ने अपने इस प्रस्ताव में न्याय मंत्रालय को आवश्यक कानूनों में संशोधन करने और महिलाओं को स्वतंत्र रूप से शादी करने की अनुमति देने का आग्रह किया था.
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न्यायिक समिति शूरा काउंसिल ने इस प्रस्ताव को ये कहकर ठुकरा दिया कि वैवाहिक कानून के लिए पुरुष अभिभावक की मौजूदगी एक जरूरी शर्त है. बता दें कि सऊदी के परंपरागत कानून के तहत किसी भी महिला की शादी के वक्त उसके पुरुष अभिभावक का सहमत होना जरूरी है.
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न्यायिक समिति द्वारा जारी एक बयान का हवाला देते हुए अल रियाद ने अपनी रिपोर्ट में कहा, 'दरंदारी ने अपना प्रस्ताव वापस ले लिया है, जबकि परिषद के अन्य सदस्यों ने भी तलाक से संबंधित कानूनों में संशोधन की मांग पर कदम पीछे खींच लिए हैं.'
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बता दें कि सऊदी अरब में पुरुष संरक्षणात्मक प्रणाली के कारण महिलाओं के अधिकारों का शोषण होता है. ह्यूमन राइट के मुताबिक, यहां जन्म से लेकर मरने तक एक महिला की पूरी जिंदगी पुरुष के नियंत्रण में रहती है.
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सऊदी अरब की हर महिला को कानूनन एक पुरुष अभिभावक की जरूरत होती है, जो अक्सर लड़की का पिता, पति या भाई होता है. महिलाओं के इन अभिभावकों के पास महत्वपूर्ण निर्णय लेने की शक्ति होती है.
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यहां औरतों को अपने अभिभावक की मंजूरी के बिना शादी तक करने की आजादी नहीं है. अब न्यायिक समिति ने सोमवार को अपनी टिप्पणी पर प्रतिक्रिया के लिए परिषद बुलाई है. आर्थिक समिति के प्रमुख फैजल अल-फादिल ने अन्य सुधारों पर विचार के लिए भी परिषद को बुलाया है.
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अल-रियाद के अनुसार, फादिल अनुशासनात्मक दंडों को समाप्त करने का प्रस्ताव दे रहे हैं. इसमें मारने-पीटने या फांसी देने की बजाए ऐसी सजा की मांग उठाई जा रही है जो इस्लामिक शरिया कानून के विरुद्ध न हो.
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कानून में संशोधन की यह मांग दोषियों का जीवन समाप्त करने या उन्हें अपमानित करने की बजाए पुनर्सुधार पर आधारित है. एक रिपोर्ट के मुताबिक, इस प्रस्ताव पर विचार करना अब ज्यादा जरूरी हो गया है. इससे देश की छवि सुधरेगी और मानव अधिकारों का संरक्षण होगा.
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