अमेरिका मुसलमानों के मानवाधिकारों को लेकर चीन को लगातार घेरता रहा है लेकिन अब फिलिस्तीन-इजरायल के बीच चल रहे मौजूदा संघर्ष ने चीन को अमेरिका के खिलाफ बोलने का मौका दे दिया है. चीन लगातार खुद को मुस्लिम हितैषी और मानवाधिकारों का रक्षक बताने वाले अमेरिका पर सवाल खड़े कर रहा है. फिलिस्तीन के मुस्लिमों के सवालों पर चीन कह रहा है कि अमेरिका को अपना रुख साफ करना चाहिए. फिलिस्तीनी मुस्लिमों की जान भी उतनी ही कीमती है जितनी बाकी मुसलमानों की. चीन इस महीने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की अध्यक्षता कर रहा है और इजरायल-फिलिस्तीन के बीच संघर्षविराम और जारी हिंसा की निंदा को लेकर परिषद में तीन बार साझा बयान जारी कराने की कोशिश कर चुका है.
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असल में, इजरायल-फिलिस्तीन संघर्ष पर हुई आपातकालीन बैठक में सुरक्षा परिषद के सदस्य देश कोई सहमति बनाने पर विफल रहे. यह तीसरी बार था जब अमेरिका ने सुरक्षा परिषद को बयान जारी करने से रोक दिया. संयुक्त राष्ट्र के बयान के समर्थन करने वाले अमेरिका के कुछ सहयोगी देश भी शामिल हैं. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) की बैठकों में इजरायल का बचाव करने को लेकर चीन का विदेश मंत्रालय लगातार अमेरिका को आड़े हाथों ले रहा है.
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फिलिस्तीनियों पर इजरायली हमले को लेकर चीन ने अमेरिका से अपना रुख साफ करने को कहा है. चीन के सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स ने सोमवार को इसी विषय पर अपनी संपादकीय प्रकाशित की. ग्लोबल टाइम्स में प्रकाशित विचार को चीन का आधिकारिक बयान माना जाता है. ग्लोबल टाइम्स में कहा गया कि दोनों पक्षों के बीच यह संघर्ष क्यों शुरू हुआ? इसे लेकर तमाम बातें की जा रही हैं. लेकिन फिलीस्तीनियों की हत्या ने वैश्विक आक्रोश पैदा कर दिया है. इजरायल का अमेरिकी पक्षपात मानवता के खिलाफ है.
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ग्लोबल टाइम्स ने कहा कि अमेरिका का बाइडन प्रशासन मानवाधिकारों की रक्षा किए जाने के अपने रुख से पलट रहा है. अमेरिका का यह रुख फिलिस्तीनियों के मानवाधिकारों के प्रति उदासीनता को दिखाता है.
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ग्लोबल टाइम्स ने कहा कि अमेरिका हमेशा मानवाधिकार का झंडा लहराता रखता है. अमेरिका, चीन पर गलत सूचना और मनगढ़ंत तथ्यों के आधार पर शिनजियांग प्रांत में मुसलमानों के खिलाफ "नरसंहार" करने का दुर्भावनापूर्ण आरोप लगाता रहा है. लेकिन अब जब फिलिस्तीनियों के मानवाधिकारों को कुचला जा रहा है तो अमेरिका ने अपनी आंखें मूंद ली हैं. अमेरिका इस बार अपने दोहरे मापदंड और पाखंड को शायद ही सही ठहरा सके.
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ग्लोबल टाइम्स ने कहा कि अमेरिका स्वार्थी देश है. जब अमेरिका को अंतरराष्ट्रीय नैतिकता और राजनीतिक स्वार्थ के बीच चयन करना होता है, तो वह केवल बाद वाले को चुनता है. वह अपनी हरकतों से अंतरराष्ट्रीय समुदाय को अपनी बेशर्मी के अभ्यस्त होने के लिए मजबूर करता है. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के अन्य सदस्य देशों की सहमति की परवाह किए बिना अमेरिका अक्सर इजरायल का समर्थन करता है, जो कई अन्य बड़ी शक्तियों के लिए हैरानी की बात है.
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इस संपादकीय लेख में लिखा है, दुनिया विकसित हो रही है, लेकिन कई ऐसे पुराने मुद्दे हैं जो बने रहते हैं और नई समस्याएं सामने आती रहती हैं. इसका नतीजा यह है कि दुनिया की एकमात्र महाशक्ति के रूप में अमेरिका मनमाने ढंग से काम करता है. अमेरिका दुनिया को अस्थिर करने में लगा रहता है. वह अंतर्राष्ट्रीय निष्पक्षता और न्याय को नजरअंदाज करता रहता है.
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ग्लोबल टाइम्स ने कहा कि गाजा पट्टी में खून बह रहा है, लेकिन संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद चुप है. अजीब है ना? इस महत्वपूर्ण मोड़ पर, अमेरिका को उस संगठन को पंगु बनाने का कोई अधिकार नहीं है जिसकी जिम्मेदारी शांति बनाए रखने और दुखों को खत्म करने की है.
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ग्लोबल टाइम्स ने लिखा, जब बाइडन प्रशासन मानवाधिकारों और अंतरराष्ट्रीय दायित्वों के प्रति अपनी तमाम प्रतिबद्धताओं का उल्लंघन करता है तो हम कुछ नहीं कर सकते. लेकिन अमेरिका का यह रवैया संयुक्त राष्ट्र को न्याय करने से नहीं रोक सकता है. 21वीं सदी ऐसा युग नहीं होना चाहिए जब मानवता इस तरह के नरसंहार को सार्वजनिक रूप से सहन करे.
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ग्लोबल टाइम्स ने अपने लेख में कहा कि वर्षों से सुरक्षा परिषद ने इजरायल-फिलिस्तीन संघर्ष को हल करने के लिए दो-राष्ट्र समाधान का समर्थन करने के लिए एक से अधिक बार प्रस्तावों को अपनाया है. लेकिन अमेरिका ने हमेशा अपने हाथ पीछे खींचे हैं. अंतरराष्ट्रीय समुदाय के दबाव को धता बताते हुए, पूर्व के ट्रंप प्रशासन ने अमेरिकी दूतावास को तेल अवीव से यरुशलम में स्थानांतरित कर दिया, जो दो-राष्ट्र समाधान की भावना से अलग था. चीनी अखबार का कहना था कि अमेरिका के पिछले प्रशासन ने जो किया, उसके लिए बाइडन प्रशासन ने मौन सहमति दी है. हाल के वर्षों में अमेरिका ने मध्य पूर्व में शांति के लिए कोई सकारात्मक काम नहीं किए हैं.
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चीन ने कहा कि अमेरिका का फोकस पूरी तरह से प्रमुख शक्तियों से कॉम्पीटिशन पर है. जाहिर है, अमेरिका को मुसलमान पसंद नहीं हैं. न ही उसे चीन पसंद है. बहरहाल, इसने चीन के शिनजियांग क्षेत्र के मुसलमानों में विशेष रुचि दिखाई है. अमेरिकी मूल्य विकृत हो गए हैं.
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ग्लोबल टाइम्स का मानना है कि चीन और रूस पर ध्यान केंद्रित करने के लिए अमेरिका मध्य पूर्व से पीछे हटना चाहता है. अमेरिका फिलिस्तीन-इजरायल शांति बहाली के लिए जहमत नहीं उठाना चाहता है. लेकिन वह चाहता है कि मध्य पूर्व की स्थिति इजरायल और अमेरिका के रणनीतिक हितों के अनुकूल बनी रहे और फिलिस्तीनी कष्ट झलते रहें. लेकिन अमेरिका को यह जानना होगा कि न्याय को जिंदा दफन नहीं किया जा सकता.
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