लद्दाख में सोमवार को भारतीय और चीनी सेना के बीच हुए हिंसक संघर्ष में 20 भारतीय शहीद हो गए लेकिन चीन ने अपने घायल या मारे गए सैनिकों को लेकर कोई आंकड़ा नहीं जारी किया. चीन की सरकार द्वारा नियंत्रित मीडिया में भी दशकों के सबसे खतरनाक सैन्य संघर्ष को कम करके दिखाने की कोशिश की. यहां तक कि चीनी अखबार शिन्हुआ और पीपल्स डेली में राष्ट्रपति शी जिनपिंग की एक्वाडोर के राष्ट्रपति के साथ बातचीत और आगामी चीन-अफ्रीका समिट को लेकर खबर छपी थी जबकि भारत से चीनी सेना की झड़प को चौथे या पांचवें नंबर पर छापा गया.
सोमवार रात को जब भारतीय सैनिक एलएसी पर पट्रोलिंग कर रहे थे तो हिंसक झड़प शुरू हो गई और चीनी सैनिकों ने पत्थरों और लोहे की छड़ों से भारतीय सैनिकों पर हमला किया. भारतीय सैनिकों ने भी इसका जवाब दिया. भारतीय मीडिया में 35 से 43 चीनी सैनिकों के मरने की खबरें आईं लेकिन इसकी आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई.
भारत की तरफ से शहीद हुए सैनिकों की पूरी लिस्ट जारी की गई लेकिन चीन इसे लेकर पूरी तरह से खामोश क्यों है? कुछ विश्लेषकों का कहना है कि चीन की सरकार चाहती है कि वह जनभावनाओं के दबाव के बजाय अपने हिसाब से फैसला लेने के लिए स्वतंत्र रहे. अगर चीनी सेना के ज्यादा जवान मरे हैं तो इससे भी चीन की कमजोरी का संकेत जाने का भी डर है. विश्लेषकों का ये भी कहना है कि चीन के हिंसक झड़प को लेकर ज्यादा जानकारी ना देने और इसे गंभीर रूप में पेश ना करने के पीछे एक वजह अमेरिका के साथ उसकी बैठक भी हो सकती है.
भारत ने अपने बयान में कहा कि क्षेत्र में पिछले चार दशक में हुए सबसे बुरे संघर्ष में उसके 20 सैनिक शहीद हुए हैं जबकि चीन पीपल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) को हुए नुकसान को लेकर बिल्कुल चुप रहा. उसने किसी आंकड़े का ना तो खंडन किया और ना ही उसकी पुष्टि की. पीएलए के वेस्टर्न थियेटर कमांड के प्रवक्ता सीनियर कर्नल झांग शुली ने मंगलवार को कहा कि गलवान घाटी में हुए संघर्ष के दौरान दोनों पक्षों को नुकसान हुआ है लेकिन इससे ज्यादा जानकारी देने से इनकार कर दिया.
चीन के विदेश मंत्रालय ने भी बुधवार को कहा कि दोनों देश अपने मतभेद वार्ता के जरिए सुलझाने के पक्ष में हैं लेकिन उन्होंने भी संघर्ष में घायल या मरने वाले सैनिकों का कोई आंकड़ा नहीं दिया. पीएलए के नजदीकी सूत्र ने साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट से बातचीत में कहा कि बीजिंग हताहत हुए सैनिकों की संख्या को लेकर बेहद संवेदनशील है. चीन में कोई भी आंकड़ा जारी करने से पहले राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मंजूरी लेनी पड़ती है जो खुद मिलिट्री को कमांड करते हैं.
साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट को नाम ना छापने की शर्त पर एक चीनी अधिकारी ने कहा, बीजिंग को ये भी चिंता थी कि चीन के शीर्ष राजनयिक यांग जिएची और अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पियो की बुधवार को हवाई में होने वाली मुलाकात में ये मुद्दा ना उठे. चीन निश्चित तौर पर यांग-पोम्पियो की मुलाकात से पहले तनाव घटाना चाहता है लेकिन अगर कोई देश सीमा विवाद को लेकर फायदा उठाने की कोशिश करेगा तो हमारी सेना उसी हिसाब से जवाब देगी.
पीएलए के एक अन्य नजदीकी सूत्र ने कहा कि बीजिंग इसलिए भी ज्यादा सावधानी बरत रहा है क्योंकि ये संघर्ष गलवान घाटी में हुआ है जहां 1962 में भी भारत-चीन की सेना भिड़ चुकी हैं. उस वक्त 2000 लोगों की मौत हुई थीं. सूत्र ने कहा, भारत की ही तरह चीन में भी राष्ट्रवादी भावनाएं भड़क रही हैं और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर लोग हर कीमत पर चीनी भू-भाग की सुरक्षा करने की बात कर रहे हैं.
शंघाई म्युनिसिपल सेंटर फॉर इंटरनेशनल स्टडीज के एक्सपर्ट वांग देहुआ ने कहा, बीजिंग दिल्ली के साथ लड़ना नहीं चाहता है. भारत और चीन के बीच सीमा विवाद ना सिर्फ भारत और पाकिस्तान, चीन-पाकिस्तान के संबंधों को प्रभावित करता है बल्कि डोनाल्ड ट्रंप की हिंद-प्रशांत की रणनीति पर भी असर डालता है. चीन भारत के साथ युद्ध नहीं चाहता है लेकिन इसका ये मतलब नहीं है कि चीन युद्ध से डरता है. पीएलए खराब से खराब स्थिति के लिए भी तैयार है.
सिचुआन यूनिवर्सिटी में भारतीय मामलों के एक्सपर्ट सुन शिहाई ने कहा, मुझे विश्वास है कि भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ तनाव घटाने पर काम करने के इच्छुक होंगे क्योंकि वह आर्थिक विकास के लिए शांति की अहमियत को समझते हैं. कुछ भारतीय राजनीतिज्ञ एकतरफा कार्रवाई की वकालत कर सकते हैं लेकिन चीन और भारत के शीर्ष नेता इस बात को समझते हैं कि अगर युद्ध हुआ तो वैश्विक ताकतें मदद के लिए आगे नहीं आएंगी जैसा 1962 के युद्ध में भी देखने को मिला था.
दिल्ली में अंतरराष्ट्रीय संबंधों के मामलों के जानकार राजीव रंजन चतुर्वेदी ने कहा, सोमवार को हुए संघर्ष के बाद दोनों देशों के बीच अविश्वास और बढ़ेगा. भले ही दोनों तरफ से फायरिंग की रिपोर्ट नहीं आई है और हाथापाई-पत्थरों से ही हमले में सैनिकों की जानें गईं लेकिन इलाके में सैन्य मौजूदगी में इजाफा चिंता की बात है. जब अधिकारी तनाव घटाने की दिशा में बातचीत आगे बढ़ा रहे थे तो चीन की जमीन कब्जाने वाली गतिविधियां और ताकत का प्रदर्शन करना क्षेत्रीय स्थिरता के लिए बेहद खतरनाक संकेत है.