एक तीर से कई निशाने! ममता दिन-रात केंद्र की बीजेपी सरकार पर निशाना साध रही हैं और दावा कर रही हैं कि दूसरे राज्यों में बंगालियों, खासकर प्रवासी मज़दूरों पर अत्याचार हो रहा है. यह बिल्कुल साफ़ है कि वह 2026 के विधानसभा चुनावों में बंगाली भावनाओं को मुख्य मुद्दा बनाना चाहती हैं, जिसका इशारा एक और योजना, श्रमश्री का ऐलान है.
इस योजना के तहत, ममता बनर्जी ने दूसरे राज्यों से बंगाल लौटने वाले मज़दूरों को अगली नौकरी मिलने तक हर महीने 5 हज़ार रुपये देने का फ़ैसला किया है. ख़ास बात यह है कि श्रमश्री योजना की आलोचना और तरह-तरह के कटाक्ष करने के बावजूद, राज्य के विपक्षी नेता शुवेंदु अधिकारी इसका पूरी तरह विरोध नहीं कर पाए.
श्रमश्री के बारे में शुवेंदु ने कहा, '5 हज़ार रुपये में एक परिवार गुज़ारा नहीं कर सकता. प्रवासी मज़दूर रोज़ाना 5 हज़ार रुपये कमाते हैं. 5 हज़ार रुपये से कुछ नहीं होता, जो रोज़ाना 5 हज़ार रुपये कमाते हैं. फिर भी, आप इसे 6 महीने तक देंगे. चुनाव के बाद इसे बंद कर दिया जाएगा.
जैसे 2021 में चुनावों से पहले, उन्होंने 'लक्ष्मी भंडार' का ऐलान किया था. इस योजना के तहत राज्य की सभी महिलाओं को 500 रुपये प्रति माह दिए जाने का वादा किया गया था. बाद में इसे बढ़ाकर 1,000 रुपये कर दिया गया. तब भी विपक्ष इसका विरोध नहीं कर पाया था. इसके उलट बाद में बीजेपी, कांग्रेस और वामपंथी दलों को भी चुनाव जीतने के लिए लक्ष्मी भंडार जैसी योजनाओं का ऐलान करने पर मजबूर होना पड़ा.
भाजपा भी श्रमश्री योजना का सीधा विरोध नहीं कर पा रही है
ममता ने दूसरे राज्यों से बंगाल लौटने वाले प्रवासी मज़दूरों के लिए एक बड़ा ऐलान किया है कि उन्हें हर महीने 5,000 रुपये दिए जाएंगे. सवाल यह है कि इस योजना को मास्टर स्ट्रोक क्यों माना जा सकता है? राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि बंगाल से दूसरे राज्यों में काम करने जाने वाले प्रवासी मज़दूरों का एक बड़ा हिस्सा मुस्लिम समुदाय से है. चुनाव आयोग बंगाल में एसआईआर प्रक्रिया लागू करने जा रहा है. तृणमूल कांग्रेस का दावा है कि एसआईआर प्रक्रिया में एक खास धर्म के लोगों को वोटर लिस्ट से बाहर किया जा रहा है. बंगाल की सत्ताधारी पार्टी का आरोप है कि यह अवैध बांग्लादेशी फ़र्ज़ी मतदाताओं के नाम पर लोगों के नाम मतदाता सूची से बाहर करने की एक रणनीति है.
यही वह जगह है, जहां मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने श्रमश्री योजना का ऐलान करके बाजी पलटने की कोशिश की. तब बंगाल में बीजेपी की छवि बंगाली विरोधी हो जाएगी. फिर, मुस्लिम वोट बैंक, जो करीब पूरी तरह से ममता के पक्ष में है, और मज़बूत हो सकता है. अगर बीजेपी इस योजना का सीधा विरोध करती है, तो ममता फिर यह कहकर दुष्प्रचार करेंगी कि बीजेपी बंगाली कामगारों की मदद का विरोध कर रही है.
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बंगाल में दिखी लक्ष्मी भंडार योजना की सफलता
ममता बनर्जी को एक पल के लिए यह समझना मुश्किल नहीं था कि महिला मतदाता बाजी पलट सकती हैं. साल 2011 की जनगणना के मुताबिक, पश्चिम बंगाल में 4.4 करोड़ महिला वोटर्स हैं. स्वाभाविक रूप से, तब से यह संख्या बढ़ी है. करीब 10 करोड़ की आबादी वाले राज्य में, आधी महिला मतदाता महिलाएं हैं. 2021 के विधानसभा चुनाव में, वह महिला वोट बैंक सिर्फ़ एक योजना से ममता के पास चला गया. लक्ष्मी भंडार इतनी सफल रही है कि अब विपक्ष सहित बीजेपी सत्ता में आने पर महिलाओं को मासिक भत्ता देने का वादा कर रही है. बीजेपी शासित राज्यों में ऐसे भत्ते पहले से ही दिए जा रहे हैं.
2016 के चुनावों में जीत...
इस योजना के तहत, राज्य सरकार नौवीं कक्षा की छात्राओं को मुफ़्त साइकिल देती है. यह योजना 2016 के विधानसभा चुनावों से पहले ममता बनर्जी का एक और बड़ा बदलाव लाने वाला फैसला था. इस योजना के तहत राज्य के हर छात्र को 9वीं कक्षा में पहुंचते ही साइकिल मिल जाती है. एक तरफ इससे छात्रों को तो फायदा होता ही है, दूसरी ओर परिवार के बुजुर्गों को भी अप्रत्यक्ष रूप से साइकिल मिल जाती है. सरकार द्वारा दी जाने वाली मुफ्त साइकिलों पर लड़के-लड़कियों के साथ-साथ उनके माता-पिता भी सवार होते हैं. इसे ग्रामीण इलाकों की परिवहन व्यवस्था में एक क्रांतिकारी बदलाव कहा जा सकता है, क्योंकि हर कोई मोटरसाइकिल नहीं खरीद सकता.
महिलाओं का भी स्वास्थ्य साथी कार्ड के प्रति रुझान
पश्चिम बंगाल के हर परिवार को इस योजना का लाभ मिलता है. राज्य सरकार ने 2016 में 'स्वास्थ्य साथी' योजना शुरू की थी. परिवार की हर महिला के नाम पर एक 'स्वास्थ्य साथी' कार्ड बनाया जाता है. कहा जाता है कि अगर आप उस कार्ड को किसी भी अस्पताल, चाहे वह सरकारी हो या निजी, में दिखाते हैं, तो आपको 5 लाख रुपये तक का हेल्थ इंश्योरेंस मिल सकता है. राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक, यहां निशाना महिला वोट बैंक है, क्योंकि यह कार्ड सिर्फ परिवार की महिलाओं के नाम पर ही बनवाया जा सकता है.
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कन्याश्री की सफलता...
जब ममता बनर्जी सत्ता में आईं, तब उनके पास पहले से ही मुस्लिम वोट बैंक था. बाद में, यह और भी मज़बूत हो गया. फिर, ममता को महिलाओं के वोट बैंक का ध्यान आया. राज्य सरकार ने 2013 में कन्याश्री परियोजना शुरू की. शुरुआत में, यह सिर्फ स्कूली स्तर की छात्राओं के लिए थी, बाद में इस योजना में कॉलेज और विश्वविद्यालय भी शामिल किए गए. मुख्यमंत्री ने धनधान्य सभागार में कॉलेज और विश्वविद्यालय स्तर पर कन्याश्री योजना शुरू करने का विचार भी रखा. ममता बनर्जी ने अपने बयान में कहा था, 'मैंने देखा है कि कई माता-पिता चिंतित रहते हैं. वे अपने बच्चों पर जल्दी शादी करने का दबाव डालते हैं, वे पढ़ाई नहीं कर पाते. इसलिए उन्हें अपने कॉलेज और विश्वविद्यालय की पढ़ाई भी कवर करनी चाहिए, लेकिन आज, सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाला हर व्यक्ति कन्याश्री है.'