कहते हैं कि रिश्ते खून से नहीं, भरोसे और भावनाओं से बनते हैं. जब कोई अपने स्वार्थ से ऊपर उठकर किसी और की जिम्मेदारी को अपना लेता है, तब इंसानियत अपने सबसे सुंदर रूप में सामने आती है. झांसी के एक छोटे से गांव में ऐसी ही एक कहानी सामने आई है, जिसने पूरे इलाके को भावुक कर दिया है और लोगों के लिए मिसाल बन गई है.
यह कहानी है उस बेटी की, जिसने महज सात साल की उम्र में माता-पिता का साया खो दिया था. और यह कहानी है उस ग्राम प्रधान की, जिसने न सिर्फ उस बच्ची को अपनाया, बल्कि उसे कभी यह महसूस ही नहीं होने दिया कि वह उसकी सगी संतान नहीं है. सालों तक पिता का फर्ज निभाने के बाद उसी बेटी की शादी पूरे मान-सम्मान और शाही ठाठ-बाट के साथ कराकर उन्होंने यह साबित कर दिया कि इंसानियत आज भी जिंदा है.
सात साल की उम्र में टूटा था सब कुछ
मामला झांसी जनपद के चिरगांव थाना क्षेत्र अंतर्गत ग्राम संत बेहटा का है. गांव के लोगों के मुताबिक शिवानी दो बहनों में सबसे बड़ी है. जब वह करीब सात साल की थी, तब उसके पिता रोज की तरह काम से लौटकर घर आए और सो गए. इसके बाद वह कभी नहीं उठे. हार्ट अटैक से उनकी मौत हो गई. पिता की अचानक हुई मौत से परिवार संभल भी नहीं पाया था कि तीन साल बाद बीमारी के चलते मां की भी मौत हो गई. मासूम उम्र में माता-पिता दोनों को खोने के बाद शिवानी और उसकी छोटी बहन के सामने अंधेरा छा गया. रिश्तेदार थे, लेकिन जिम्मेदारी उठाने वाला कोई नहीं था. ऐसे समय में गांव के ही ग्राम प्रधान नरेश यादव उर्फ बब्बा ने एक बड़ा फैसला लिया.
ग्राम प्रधान ने बढ़ाया मदद का हाथ
ग्राम प्रधान नरेश बब्बा ने शिवानी को गोद लेने का निर्णय लिया. उन्होंने गांव और परिवार वालों के सामने साफ कहा कि वह इस बच्ची को अपनी बेटी की तरह रखेंगे और उसकी पूरी जिम्मेदारी निभाएंगे. शिवानी की छोटी बहन को उसके मामा अपने साथ ले गए, जबकि शिवानी ग्राम प्रधान के घर आ गई. नरेश बब्बा ने सिर्फ उसे अपने घर में जगह नहीं दी, बल्कि दिल में भी जगह दी. गांव के लोग बताते हैं कि उन्होंने कभी किसी के सामने यह फर्क नहीं होने दिया कि शिवानी उनकी सगी बेटी नहीं है. स्कूल से लेकर सामाजिक कार्यक्रमों तक, हर जगह वह उसकी ढाल बनकर खड़े रहे.
पढ़ाई-लिखाई में नहीं होने दी कोई कमी
शिवानी की परवरिश बिल्कुल अपनी संतान की तरह की गई. पढ़ाई-लिखाई में किसी तरह की कोई कमी नहीं छोड़ी गई. ग्राम प्रधान ने हमेशा यही कोशिश की कि शिवानी आत्मनिर्भर बने और अपने पैरों पर खड़ी हो सके. शिवानी चिरगांव के चंदन सिंह महाविद्यालय से बीएड की पढ़ाई कर रही है. गांव के लोगों का कहना है कि अगर नरेश बब्बा का साथ न मिलता, तो शायद शिवानी की जिंदगी किसी और ही दिशा में चली जाती. लेकिन सही समय पर मिले सहारे ने उसकी किस्मत बदल दी.
पिता का फर्ज निभाया आखिरी सांस तक
समय के साथ शिवानी बड़ी हुई और उसके विवाह की चर्चा शुरू हुई. नरेश बब्बा ने इसे भी अपनी जिम्मेदारी माना. उन्होंने पूरे सम्मान और सोच-समझकर उसके लिए रिश्ता तलाशा. आखिरकार शिवानी की शादी मध्य प्रदेश की पूर्व कैबिनेट मंत्री इमरती देवी के भतीजे के साथ तय हुई. 14 दिसंबर को यह शादी बड़े ही धूमधाम और शाही अंदाज में संपन्न हुई. शादी में क्षेत्र के गणमान्य लोग, रिश्तेदार और गांव के लोग बड़ी संख्या में शामिल हुए. हर कोई इस बात की चर्चा करता नजर आया कि जिस बेटी को कभी बेसहारा समझा गया था, आज उसकी शादी इतनी प्रतिष्ठित परिवार में हो रही है.
पूरे क्षेत्र में हो रही चर्चा
शादी के बाद यह मामला सिर्फ गांव तक सीमित नहीं रहा. आसपास के इलाकों में भी इस इंसानियत की मिसाल की चर्चा होने लगी. लोग ग्राम प्रधान नरेश बब्बा की तारीफ करते नहीं थक रहे. किसी ने उन्हें इंसानियत का असली चेहरा कहा, तो किसी ने समाज के लिए आदर्श बताया. गांव के बुजुर्गों का कहना है कि आज के समय में जब लोग अपने सगे रिश्तों से भी मुंह मोड़ लेते हैं, ऐसे में किसी अनाथ बच्ची को अपनाकर उसकी पूरी जिंदगी संवार देना बहुत बड़ा काम है.
रिश्तेदारों की जुबानी कहानी
शिवानी के चाचा शिशुपाल और बुआ राजकुमारी बताते हैं कि जब शिवानी छोटी थी और उसके माता-पिता की मौत हुई, तब पूरा परिवार टूट गया था. उन्हें भी चिंता थी कि बच्चियों का भविष्य क्या होगा. ऐसे समय में नरेश बब्बा ने आगे बढ़कर जिम्मेदारी ली. उनका कहना है कि ग्राम प्रधान ने जो वादा किया था, उसे पूरी तरह निभाया. उन्होंने शिवानी को बेटी बनाकर रखा और आज उसे ऐसे घर में विदा किया, जिसके बारे में परिवार ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था. यह हमारे लिए गर्व और खुशी की बात है.