मल्टीप्लेक्स सिनेमाघरों में सोफे पर पसर कर पॉपकोर्न और कोक के साथ फिल्मों का आनंद उठाता युवा वर्ग इस बात से अनजान है कि किसी जमाने में दिल्ली के सिनेमाघरों में फिल्म समाप्त होने पर राष्ट्रगान की धुन बजती थी और लोग सम्मान में खड़े होते थे."/> मल्टीप्लेक्स सिनेमाघरों में सोफे पर पसर कर पॉपकोर्न और कोक के साथ फिल्मों का आनंद उठाता युवा वर्ग इस बात से अनजान है कि किसी जमाने में दिल्ली के सिनेमाघरों में फिल्म समाप्त होने पर राष्ट्रगान की धुन बजती थी और लोग सम्मान में खड़े होते थे."/> मल्टीप्लेक्स सिनेमाघरों में सोफे पर पसर कर पॉपकोर्न और कोक के साथ फिल्मों का आनंद उठाता युवा वर्ग इस बात से अनजान है कि किसी जमाने में दिल्ली के सिनेमाघरों में फिल्म समाप्त होने पर राष्ट्रगान की धुन बजती थी और लोग सम्मान में खड़े होते थे."/>
 

अब नहीं बजती सिनेमा हॉल में राष्ट्रगान की धुन

मल्टीप्लेक्स सिनेमाघरों में सोफे पर पसर कर पॉपकोर्न और कोक के साथ फिल्मों का आनंद उठाता युवा वर्ग इस बात से अनजान है कि किसी जमाने में दिल्ली के सिनेमाघरों में फिल्म समाप्त होने पर राष्ट्रगान की धुन बजती थी और लोग सम्मान में खड़े होते थे.

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मल्टीप्लेक्स सिनेमाघरों में सोफे पर पसर कर पॉपकोर्न और कोक के साथ फिल्मों का आनंद उठाता युवा वर्ग इस बात से अनजान है कि किसी जमाने में दिल्ली के सिनेमाघरों में फिल्म समाप्त होने पर राष्ट्रगान की धुन बजती थी और लोग सम्मान में खड़े होते थे.

दिल्ली की सिनेमाघर संस्कृति की गवाह रही पीढ़ी महसूस करती है कि अब लोगों में राष्ट्र प्रतीकों के प्रति सम्मान का उतना जज्बा नहीं रहा है जितना
60 और 70 के दशक में होता था.

 

कनाट प्लेस स्थित सबसे पुराने सिनेमाघरों में से एक 1932 में स्थापित रीगल सिनेमा हाल में पिछले 22 साल से मैनेजर रवि शर्मा ने बताया कि सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के तहत फिल्म प्रभाग ने काफी समय पहले सिनेमाघरों में फिल्म की समाप्ति पर राष्ट्रगान शुरू करवाया था.

उन्होंने बताया कि राष्ट्रगान की धुन की रील फिल्म की रील से ही जुड़ी होती थी और जैसे ही फिल्म खत्म होती थी
, परदे पर राष्ट्र ध्वज फहराता था और राष्ट्रगान की धुन बजती थी. धुन बजने पर लोग सम्मान में खड़े हो जाते थे लेकिन कुछ समय बाद हालत यह हो गयी कि कुछ लोग खड़े हो जाते थे और कुछ दरवाजे की ओर लपकते थे . बाद में हमें राष्ट्रगान संपन्न होने तक दरवाजे बंद रखने के निर्देश दिए गए लेकिन बाद में सरकार ने ही आदेश जारी कर राष्ट्रगान बजाने की व्यवस्था को बंद कर दिया.

राजधानी के बहुत पुराने सिनेमाघर
डिलाइटके वरिष्ठ प्रबंधक आर के मेहरोत्रा ने बताया कि सरकार ने काफी साल पहले एक अधिसूचना जारी कर फिल्म समाप्ति पर राष्ट्रगान बजाने की अनिवार्यता समाप्त कर दी थी . उसके बाद से यह परंपरा बंद हो गयी.

क्या इस परंपरा को फिर से शुरू किया जाए
, इस पर मेहरोत्रा ने कहा ‘‘राष्ट्रगान कोई ऐसी चीज नहीं है कि इसे सुबह शाम बजाया जाए. इसे तभी बजाया जाना चाहिए जब सम्मान की भावना हो . सिनेमाहाल में लोगों ने इसके सम्मान में खड़े होना बंद कर दिया था और इसीलिए इसे बजाना भी बंद कर दिया गया.’’

देश के कुछ हिस्सों में हालांकि आज भी यह परंपरा कायम है. महानगर मुंबई से डेजल ने बताया कि वहां सिनेमाघरों में फिल्म शुरू होने से पूर्व राष्ट्रगान की धुन बजायी जाती है.

उधर बेंगलूर से मनुज बंसल ने अपने ब्लाग में लिखा है कि सरकार को सभी सिनेमाहाल में राष्ट्रगान की धुन बजाना अनिवार्य करना चाहिए. उसने लिखा है कि कई देशों में फिल्म शुरू होने से पूर्व राष्ट्रगान बजाने का बाकायदा कानून है.

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बंसल ने लिखा है कि पीवीआर, इनोक्स, वेव्स और बिग सिनेमा आदि को इस दिशा में पहल करनी चाहिए.

 

पुणे में भी राष्ट्रगान की धुन बजती है लेकिन फिल्म खत्म होने के बाद.

दिल्ली के सिनेमाघरों में राष्ट्रगान की धुन बजाना शुरू करने और बाद में इसे बंद करने का फैसला भी फिल्म डिवीजन का ही था लेकिन इस बारे में जानकारी देने के लिए कई बार संपर्क करने पर भी कोई अधिकारी टिप्पणी के लिए उपलब्ध नहीं हो सका.

फिल्म डिवीजन के एक अधिकारी ने नाम गुप्त रखने की शर्त पर केवल इतना कहा कि यह मंत्रालय में उच्च स्तर पर लिया गया फैसला था और इस बारे में उसी स्तर के अधिकारी अधिक बता सकते हैं.

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