धरती के एकमात्र उपग्रह चंद्रमा पर जल के अणु होने की घोषणा के एक साल बाद नासा वैज्ञानिकों का अब कहना है कि चंद्रमा पर न केवल उपयोगी पदार्थ हैं बल्कि उसका अपना जलचक्र भी है. नये अध्ययनों में पाया गया है कि पहले के अनुमान की बजाय चंद्रमा में पानी की मात्रा कहीं ज्यादा है.
नासा के उपग्रह लूनर क्रेटर आब्जर्वेशन एंड सेंसिंग उपग्रह :एलसीरॉस: और लूनर रिकोनेंस ऑरबिटर से मिले नये तथ्यों से इस बात के सुबूत मिले हैं कि चांद की सतह पर बने गड्ढों में उपयोगी पदार्थ भरे पड़े हैं. चंद्रमा रसायनिक तौर पर सक्रिय है और उसका अपना जलचक्र है.
साइंस मैग्जीन के 22 अक्टूबर के संस्करण में प्रकाशित अध्ययन में वैज्ञानिकों ने इस बात की पुष्टि की है कि चंद्रमा की सतह में कुछ जगहों में पानी शुद्ध बर्फ के रूप में मौजूद है.
वाशिंगटन में नासा के चंद्रमा अभियान से जुड़े मुख्य वैज्ञानिक माइकल वार्गो ने बताया, ‘नासा ने चंद्रमा के छाया वाले हिस्सों में बर्फ होने की पुष्टि की है.’ चंद्रमा के कैबियास नाम के एक गड्ढे से 9 अक्टूबर 2009 को नासा के उपकरणों ने उसमें पड़े ऐसे पदाथरें को उठाया जिनपर अरबों सालों से सूरज की रोशनी नहीं पड़ी थी.
उन पदार्थों के ढेर को कैबियस गड्ढे से 10 किलोमीटर उपर उठाने के बाद एलसी रॉस और एलआरओ में लगे यंत्रों ने गड्ढे, मलबे और वाष्प के बादलों का अवलोकन किया. एलसीरॉस परियोजना के वैज्ञानिक और नासा के एमेस रिसर्च सेंटर के प्रमुख जांचकर्ता एंथोनी कोलाप्रेट ने बताया कि उन पदाथरे के ढेर में शुद्ध बर्फ के कणों का मिलना इस बात का संकेत है कि पूर्व में चंद्रमा पर रसायनिक क्रियाओं के फलस्वरूप बड़ी मात्रा में बर्फ रही होगी.
उन्होंने कहा, ‘ढेर में बोलाटाइल नाम के पदाथरें की बहुतायत इस बात की ओर इशारा करती है कि चंद्रमा के छाया वाले हिस्से में सक्रिय जल चक्र हो सकता है.’