
एलियंस की दुनिया अभी भी धरती के वैज्ञानिकों के लिए रहस्य ही बनी हुई है. अब तक धरती के अलग-अलग हिस्सों पर एलियंस या यूएफओ के देखे जाने का दावा किया जा चुका है. इसके चलते ही एलियंस से कम्युनिकेशन की कोशिश भी लगातार की जाती है. इस बीच एक और अनोखा दावा सामने आया है. दरअसल, रिसर्चर्स का कहना है कि एलियंस को पृथ्वी का कोई मेसेज मिला होगा, लेकिन धरती पर उसका जवाब पहुंचाने में उन्हें 27 साल लग जाएंगे.
कम्युनिकेशन ट्रांसफर में लग जाते हैं लाइट ईयर्स
ऐसा इसलिए क्योंकि अंतरिक्ष इतना विशाल है कि यहां कम्युनिकेशन ट्रांसफर में लाइट ईयर्स लग जाते हैं. ये दूसरे प्लैनेट्स पर जीवन की इंसानों की खोज को धीमा कर देता है. नासा का डीप स्पेस नेटवर्क (डीएसएन) रेडियो डिशेज का ग्लोबल ऐर्रे है जिसने सोलर सिस्टम के दूर-दराज के हिस्सों में रेडियो सिग्नल रिलीज किए हैं.

1972 में भेजा गया एक सिग्नल 2002 में पहुंचा
वैज्ञानिकों की कैलकुलेशन के अनुसार पॉयनियर 10 स्पेस प्रोब के लिए 1972 में भेजा गया एक सिग्नल साल 2002 में जाकर 12 बिलियन मील दूर एक ड्वार्फ स्टार पर पहुंच सका है. लेकिन विशेषज्ञों का अनुमान है कि उस डेड स्टार के पास किसी भी एलियन लाइफ से कोई भी जवाब 2029 तक ही धरती पर पहुंच सकेगा. उसी तरह वायेजर 2 स्पेस प्रोब के लिए 1977 में लॉन्च किया गया एक सिग्नल 2007 में दो दूरस्थ सितारों तक पहुंचा.
मुसीबत है स्पेस कम्युनिकेशन की धीमी गति
Astronomical Society of the Pacific के जर्नल पब्लिकेशन में छपी एक स्टडी के अनुसार रिसर्चर्स ने सितारों की एक लिस्ट बनाई है जिन्हें अगली शताब्दी तक धरती से मैसेज मिल सकते हैं. लेकिन स्पेस कम्युनिकेशन की धीमी गति के चलते वैज्ञानिकों को इनके जवाब के लिए लंबा इंतजार करना पड़ सकता है.

Aliens का जवाब कैच करने में चूक सकते हैं वैज्ञानिक
आलोचकों ने चेतावनी दी है कि अगर दूसरी दुनिया से कोई जवाब भेजता है तो भी वैज्ञानिक इसे कैच करने में चूक सकते हैं. अमेरिकी एस्ट्रोनॉमर मेसी हस्टन, जो स्टडी में शामिल नहीं थे, ने कहा- "अगर दूसरी दुनिया से कोई जवाब आता भी है तो इसे पता लगाने की हमारी क्षमता कई फैक्टर्स पर निर्भर करेगी. जैसे कि हम जवाब के लिए कितना ज्यादा स्टार की निगरानी करते हैं और कितनी देर में ये वापसी के सिग्नल हम तक पहुंचते हैं.
इधर, अमेरिका के कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के रेडियो एस्ट्रोनॉमर जीन-ल्यूक मार्गोट ने कहा- "हमारे छोटे और इनफ्रीक्वेंस ट्रांसमिशन्स से दूसरे ग्रहों पर जीवन का पता लगाने की संभावना नहीं है." उन्होंने कहा कि पृथ्वी के रेडियो ट्रांसमिशन द मिल्की वे के दस लाखवें हिस्से तक ही पहुंच सके हैं. इस छोटे से क्षेत्र में किसी सभ्यता के रहने की संभावना असाधारण रूप से कम है.