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स्‍टेट ऑफ स्‍टेट्स: पश्चिम क्यों है भारत का अगुआ

जिन राज्‍यों में सबसे ज्‍यादा सुधार हुआ उन बड़े राज्‍यों में शीर्ष पर हैं महाराष्ट्र और गुजरात. छोटे राज्‍यों में अरुणाचल प्रदेश अव्वल.

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पृथ्‍वीराज चव्‍हाण
पृथ्‍वीराज चव्‍हाण

वर्ष 2010 में, इंडिया टुडे की राज्‍यों की दशा-दिशा के बारे में प्रकाशित रिपोर्ट में कृषि और सुशासन की श्रेणियों में 20 बड़े राज्‍यों में असम सबसे नीचे था. 2011 में पासा पलट गया है और असम इस बार इन दोनों श्रेणियों में खुद को पहली रैंक पर पाता है.
सर्वागीण प्रगति: गुजरात और महाराष्‍ट्र रहे अव्‍वल
लेकिन भवें तनें इससे पहले ही साफ कर देना जरूरी है कि इंडिया टुडे  के पिछले आठ साल की इन रिपोर्टों की तुलना में पूरी तरह अलग तरीका राज्‍यों को रैंक देने में अपनाया गया है.
स्‍वास्‍थ्‍य: हरियाणा में मिलती है सबको मुफ्त सेवा 

पहली बार हमारे अध्ययन में राज्‍यों को रैंक पिछले एक साल में उनके द्वारा किए गए सुधारों के आधार पर दी गई है. इस साल राज्‍यों को रैंक देने के लिए जिस अवधि का सर्वेक्षण किया गया है, वह 2009-10 और 2010-11 के बीच की है. निरंतरता बनाए रखने के लिए पिछले सभी सर्वेक्षणों की तरह रैंकिंग उन्हीं आठ श्रेणियों (कृषि, प्राथमिक स्वास्थ्य, उपभोक्ता बाजार, प्राथमिक शिक्षा, सरकार संचालन, बुनियादी ढांचा, निवेश और वृहत्‌ अर्थव्यवस्था) पर की गई है और नौवीं श्रेणी बाकी श्रेणियों में हुई प्रगति का सकल योग है.
शासन: मणिपुर और असम सबसे बेहतरीन 

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सर्वेक्षण के नए तरीके का नतीजा रैंकिंग में भारी उलटफेर के रूप में निकला है. हमेशा पीछे रहने वाले असम सरीखे राज्‍यों को कई सालों से विकास न होने के नुक्सान के बोझ से मुक्ति मिली है. इसी तरह पंजाब सरीखे राज्‍य जो परंपरागत तौर पर रैंकिंग में शीर्ष पर रहा करते थे, उनसे लंबे समय तक विकसित होने के फायदे को हटा दिया गया है.
बुनियादी ढांचा: हिमाचल ने दिखाई नई रोशनी की किरण
असम जैसे परंपरागत तौर पर पिछड़े राज्‍य को अग्रणी राज्‍यों से बराबरी करने में काफी समय लग सकता है, भले ही हाल के वर्षों में उसका प्रदर्शन बेहतर रहा हो.
शिक्षा: हरियाणा और पुड्डुचेरी ने मारी बाजी 

किसी अगुआ राज्‍य का नीचे तक पतन होने में काफी समय लग सकता है, भले ही हाल के वर्षों में उसका प्रदर्शन अपेक्षाकृत कमजोर रहा हो. इस साल हम जिस तथ्य का आकलन कर रहे हैं, वह बदलाव की रफ्तार है, उन राज्‍यों को चिन्हित करते हुए जो गतिशील हैं और उन राज्‍यों को अलग-थलग करते हुए जो अटके पड़े हैं. इस तरह, इस पैकेज में आगे दिए गए आंकड़ों  और खबरों से जो चीज निकलकर आती है, वह भारत के राज्‍यों के बारे में हाल का ज्‍यादा गतिमान आकलन है.
निवेश: गुजरात में सफल है निवेश करना 

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पिछले साल केंद्र में नीतिगत तौर पर पूरी तरह ठहराव की स्थिति थी-यूपीए सरकार भ्रष्टाचार और घोटालों में घिरी हुई थी और सन्निपात में थी- लेकिन कुछ राज्‍यों में प्रभावशाली नीतिगत गतिशीलता थी. दो श्रेणियों में पुरस्कार विजेता राज्‍य असम में मुख्यमंत्री तरुण गोगोई ने ठोस उपलब्धियों के आधार पर सत्ता में लगातार तीसरे कार्यकाल के लिए जीत हासिल की. राज्‍य को कानून और व्यवस्था में तेजी से हुए सुधार और राज्‍य के किसानों को लाभान्वित करने वाली खास योजनाओं का फायदा मिल रहा है.
वृहत अर्थव्‍यवस्‍था: महाराष्‍ट्र ऊर्जा शक्ति से सराबोर 

शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में सर्वाधिक सुधार के लिए पुरस्कार प्राप्त करने वाले हरियाणा में मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने उन अभिनव योजनाओं की  अगुआई की है, जिन्होंने राज्‍य के सामाजिक क्षेत्रों में सुधार ला दिया है, उन क्षेत्रों में जहां वह परंपरागत तौर पर पिछड़ा रहता था. अच्छा प्रदर्शन करने वाले दोनों राज्‍य कांग्रेस शासित हैं. महाराष्ट्र सबसे उन्नत वृहत्‌ अर्थव्यवस्था है और गुजरात के साथ यह समग्र तौर पर सबसे उन्नत राज्‍य है.
उपभोक्‍ता बाजार: उत्तराखंड और गोवा है सबसे बेहतर 

साफ है कि नवंबर, 2010 में प्रधानमंत्री कार्यालय से पैराशूट से मुंबई में उतारे गए पृथ्वीराज चव्हाण परिवर्तन के कारक रहे हैं. लगातार बदलाव करने का नरेंद्र मोदी की तरह रिकॉर्ड रखने वाले मुख्यमंत्री कम ही रहे हैं. सत्ता में एक दशक से वे गुजरात को उद्योगों के लिए ज्‍यादा आकर्षक ठिकाना बनाने के लिए संघर्ष जारी रखे हुए हैं. कु छ ही महीनों में गुजरात आ रहे मारुति सुजुकी के हरियाणा के बाहर पहले संयंत्र समेत बड़ी परियोजनाओं के ढेर के आधार पर वे राज्‍यों में निवेश की दौड़ जीत रहे हैं.
खेती: मिजोरम और असम रहे सबसे आगे 

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छोटे राज्‍यों की श्रेणी में, पूर्वोत्तर के राज्‍यों- मिजोरम, अरुणाचल प्रदेश, नगालैंड और मणिपुर ने अधिकांश श्रेणियों में दिल्ली और गोवा जैसे राज्‍यों को पछाड़ दिया है. इस साल एक मुख्यमंत्री की मौत और दूसरे के इस्तीफे के बावजूद अरुणाचल प्रदेश सबसे ज्‍यादा उन्नत छोटा राज्‍य है, जो केंद्रीय आर्थिक पैकेज और ऊर्जा क्षेत्र में भारी-भरकम निवेश का फायदा उठा रहा है. मिजोरम ने खेती के मामले में बहुत बढ़िया प्रदर्शन किया है, जो भूमि प्रयोग नीति में बदलाव के बूते है, जिससे चावल के उत्पादन में बढ़ोतरी हुई है. राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना और मिजोरम राज्‍य स्वास्थ्य रक्षा योजना पर प्रभावी अमल से स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी वह शीर्ष पर है.

आम धारणा यह है कि भारत का शासन नई दिल्ली से होता है. वास्तव में राज्‍यों की राजधानियां अब ज्‍यादा महत्वपूर्ण होने लगी हैं. 1991 से शुरू हुए कोटा-परमिट राज के खात्मे के बाद आर्थिक सुधारों की दूसरी पीढ़ी के लिए भौतिक ढांचागत सुविधाएं, सामाजिक क्षेत्र (शिक्षा और स्वास्थ्य) में भारी निवेश और प्रभावी निष्पादन और खेती में कायापलट की जरूरत है.

इन सभी में राज्‍य ही अहम कर्ताधर्ता हैं. केंद्र मिलने वाले पैसे पर नियंत्रण भले ही कर सकता हो, लेकिन प्रभावी अमल की रणनीतियां तैयार करने का काम राज्‍यों पर है. गुजरात और महाराष्ट्र जैसे पश्चिम के औद्योगिक ऊर्जा स्त्रोत राज्‍य इसे पहले ही समझ चुके हैं. दरअसल गुजरात में विकास दर कई वर्ष से दो अंकों में चल रही है. बाकी राज्‍य भी देखादेखी कर रहे हैं.

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मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अगुआई में बुनियादी ढांचे में भारी-भरकम निवेश करने वाले बिहार में 2010-11 में विकास दर 14 फीसदी रही है. राज्‍य में खस्ताहाल सार्वजनिक वितरण प्रणाली को उम्दा बना देने वाले सुधारवादी डॉ. रमन सिंह की अगुआई वाले छत्तीसगढ़ में विकास दर 11.5 फीसदी रही है. इनकी तुलना में अखिल भारतीय औसत महज 8 फीसदी रहा है. केंद्र सरकार सकल विकास की रूपरेखा खींच सकती है, लेकिन अच्छे शासन वाले राज्‍य निश्चित तौर पर सीमाओं को आगे धकेल सकते हैं और अपने नागरिकों के कल्याण में इजाफा कर सकते हैं.

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