कोलकाता पुस्तक मेले में विरोध के चलते अपनी किताब का आधिकारिक विमोचन रद्द होने के एक दिन बाद विवादास्पद बांग्लादेशी लेखिका तसलीमा नसरीन ने दावा किया है कि उनके जीवन तथा उपन्यासों पर फिल्म की योजना बनाने वाले तीन बंगाली फिल्म निर्देशकों ने अब अपने पैर पीछे खींच लिए हैं.
उनके जीवन तथा दो उपन्यासों ‘शोध’ और ‘निमंत्रण’ पर फिल्म निर्माण के प्रस्ताव के बारे में तसलीमा ने नई दिल्ली से बताया, ‘करार पर हस्ताक्षर किए गए थे, लेकिन निर्देशकों ने अचानक चुप्पी साध ली.’
निर्देशकों पर दबाव पड़ने का संकेत देते हुए उन्होंने कहा, ‘मुझे नहीं पता कि उनके साथ क्या हुआ. किसने उन्हें फिल्म बनाने से रोका.’ हालांकि, उन्होंने यह नहीं बताया कि निर्देशकों पर किसने दबाव डाला होगा.
नई पुस्तक के प्रकाशकों ने इस बीच दावा किया कि तसलीमा की आत्मकथा के सातवें हिस्से ‘निर्वासन’ की बिक्री बढ़ गई है.
कट्टरपंथियों के विरोध प्रदर्शन के बाद पुस्तक मेला के आयोजक इस पुस्तक के आधिकारिक विमोचन को रद्द करने पर मजबूर हुए थे. आयोजकों द्वारा सुरक्षा चिंता का हवाला दिए जाने के बाद पुस्तक जारी करने के लिए निर्धारित स्थल के बाहर इसे जारी किया गया था.
प्रकाशक पीपुल्स बुक सोसायटी की शिबानी मुखर्जी ने बताया, ‘हमने नए संस्करण का ऑर्डर दिया है. पहले संस्करण की एक हजार प्रतियां बिक चुकी हैं. हम इस बिक्री से काफी उत्साहित हैं.’
पुस्तक मेले में बुकस्टोर तथा स्टॉल पर यह किताब पहले ही बिक चुकी है. प्रकाशक ने कहा, ‘विशेष रूप से महिलाएं हमारे बुक स्टाल पर टूट पड़ रही हैं.’ उन्होंने साथ ही इस बात पर जोर दिया कि पुस्तक की विषय वस्तु में कुछ भी विवादास्पद नहीं है.
इस किताब में कोलकाता से नवंबर 2007 में तसलीमा को बाहर भेजे जाने के बाद लेखिका के संस्मरणों को संग्रहित किया गया है.
बांग्ला में लिखी गई किताब में उन हालातों का जिक्र किया गया है जिनके चलते सरकार ने उन्हें नई दिल्ली भेज दिया और जिसके परिणामस्वरूप उन्हें मानसिक तनाव तथा बेघर होने की असुरक्षा से गुजरना पड़ा.
तसलीमा ने कहा, ‘पुस्तक कहीं से भी मुद्दा नहीं है. तसलीमा मुद्दा है.’ उन्होंने कहा, ‘न तो कट्टरपंथियों और न ही सरकार के लोगों ने पुस्तक पढ़ी है. अगर कोई ‘तसलीमा फ्लावर शो’ का आयोजन करता है, तो वे उसपर भी प्रतिबंध लगाने की मांग करेंगे.’
49 वर्षीय तसलीमा को अपने उपन्यास ‘लज्जा’ के जरिए कथित तौर पर धार्मिक भावनाओं को आहत करने के बाद 1994 में बांग्लादेश छोड़कर भागना पड़ा था.