पाकिस्तान में सेना और सरकार के बीच चल रही तनातनी के बीच स्थिति अस्पष्ट बनी रही और सोमवार को उच्चतम न्यायालय द्वारा दिए जाने वाले संभावित फैसले से वर्तमान राजनीतिक संकट का हल निकलने की संभावना व्यक्त की जा रही है.
परेशानियों से घिरे राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी एक दिन की दुबई यात्रा के बाद वापस लौट आए हैं. दूसरी ओर उनके करीबी सहयोगी प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी ने नेशनल एसेंबली की आपातकालीन बैठक को संबोधित करते हुए कहा कि देश में ‘या तो लोकतंत्र रहेगा या फिर तानाशाही.’
सत्तारूढ़ गठबंधन के सांसदों ने सदन में एक प्रस्ताव पेश किया जिसमें राजनीतिक नेतृत्व में ‘पूर्ण विश्वास और भरोसा’ का वादा किया गया था. उसमें जोर दिया गया है कि सभी सरकारी संस्थाओं को संविधान के दायरे में रह कर ही काम करना चाहिए. परोक्ष रूप से इसमें सेना का जिक्र है जिस पर राजनीतिक क्षेत्र में हस्तक्षेप के आरोप लगते रहे हैं. इस प्रस्ताव पर मतदान सोमवार को होगा.
सोमवार को ही पाकिस्तान के उच्चतम न्यायालय की पूर्ण 17 सदस्यीय पीठ उसके द्वारा सरकार को दिए गए छह सूत्री ‘करो या मरो’ अल्टीमेटम पर सरकार के जवाब की सुनवायी करेगी. न्यायालय ने यह अल्टीमेटम जरदारी समेत अन्य लोगों के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले को दोबारा शुरू करने के मामले में दिया है.
सरकार ने अभी तक इन आदेशों का कार्यान्वयन नहीं किया है जिससे नाराज शीर्ष न्यायालय ने कहा है कि वह गिलानी और जरदारी के खिलाफ कार्रवाई कर सकती है. न्यायालय ने गिलानी के बारे में कहा था ‘वह ईमानदार व्यक्ति नहीं हैं.’
सैन्य तख्तापलट की आशंका के कमजोर होने के बावजूद गुरुवार को अपने कोर कमांडरों की बैठक बुलाने के बाद सेना प्रमुख जनरल अश्फाक परवेज कयानी ने और कोई कदम नहीं उठाया है. राजनीतिक हलकों में ज्यादातर लोगों का विचार है कि पाकिस्तान के 64 साल के जीवन काल में आधे से ज्यादा समय तक सत्ता में बनी रहने वाली सेना तत्कालीन परिस्थितियों में सीधे तौर पर तख्तापलट करने के पक्ष में नहीं है.
‘संवैधानिक तख्ता पलट पर भी’ चर्चा हो रही है क्योंकि उच्चतम न्यायालय द्वारा सरकार के खिलाफ फैसला देने पर सरकार गिर जाएगी. राष्ट्रपति के दुबई से वापस लौटने पर सवाल उठाए जा रहे हैं कि क्या उन्हें अपना पद छोड़ने के लिए मजबूर किया जा रहा है उनके प्रवक्ता फरातुल्ला बाबर ने उन रिपोर्टों को खारिज किया कि जरदारी अपने राजनीतिक भविष्य को लेकर चिंतित हैं.
बाबर ने कहा, ‘वह बिल्कुल ठीक और शांत हैं.’ इस बीच पाकिस्तानी मीडिया ने खबरें प्रकाशित की हैं कि सेना के शीर्ष कमांडरों ने मेमोगेट कांड और हाई-प्रोफाइल भ्रष्टाचार के मामले को दोबारा शुरू करने जैसे मामलों के बीच उच्चतम न्यायालय के फैसले का समर्थन करने का फैसला किया है. ‘द एक्सप्रेस ट्रिब्यून’ की खबर के मुताबिक, ऐसा लगता है जैसे अपनी बैठक के दौरान सेना के शीर्ष कमांडरों ने तय किया है कि वह सरकार के मुद्दे पर शीर्ष न्यायालय के फैसले पर नजर रखेंगे.
सैन्य अधिकारियों ने अखबार को बताया कि शीर्ष कमांडरों के साथ कयानी के इस बैठक में सेना और सरकार के बीच बढ़ रही तल्खी पर ही जोर रहा. एक अनाम सैन्य अधिकारी के अनुसार, कमांडरों ने तय किया है कि सेना उच्चतम न्यायालय के फैसले के साथ होगी. अधिकारी ने बताया कि अगर न्यायालय के फैसले का पालन करने के लिए मदद मांगी जाती है तो सेना जरूर न्यायपालिका की मदद करेगी. एक ओर सेना अपना रुख कड़ा कर रही है तो गिलानी भी आक्रामक मुद्रा में नजर आ रहे हैं.
संसद में अपने भाषण में गिलानी ने कहा, ‘मुझे विश्वासमत की कोई जरूरत नहीं है.’ अपने भाषण में गिलानी ने विपक्ष की जमकर आलोचना की. उन्होंने कहा कि उनकी सरकार को उच्चतम न्यायालय के आदेश के कारण पैदा हुई समस्या से निबटने के लिए विपक्षी के समर्थन की जरूरत नहीं है.
न्यायालय ने भ्रष्टाचार के उन मामलों को दोबारा शुरू करने का आदेश दिया है, जिन्हें पिछली सैन्य सरकार ने वर्ष 2007 में भ्रष्टाचार माफी के कानून नेशनल रिकांसिलेशन ऑर्डिनेंस (एनआरओ) के तहत हटा दिया था. न्यायालय ने एनआरओ को वर्ष 2009 में रद्द कर दिया था.
गिलानी ने एनआरओ के लिए पूर्व सैन्य शासक परवेज मुशर्रफ को दोषी ठहराते हुए कहा कि इस भ्रष्टाचार माफी कानून के ‘अनुमानित लाभान्वितों’ को सजा दी जा रही है जबकि एनआरओ को बनाने वाला स्वनिर्वासन के बाद वापसी की योजनाएं बना रहा है और लोगों से स्वागत करने को कह रहा है.
प्रधानमंत्री ने कहा कि उनकी सरकार ने गलतियां की हैं लेकिन इसके लिए लोकतंत्र को दंडित नहीं किया जा सकता है. उन्होंने कहा कि यह पाकिस्तान के इतिहास में लिखा जाएगा कि उनके पद पर रहते हुए पहली बार सेना और आईएसआई प्रमुख को संसद में जिम्मेदार ठहराया गया.
गिलानी ने कहा, ‘संसद को तय करना चाहिए कि देश में लोकतंत्र रहना चाहिए या तानाशाही. अगर हम गलतियां करते हैं तो लोकतंत्र को सजा नहीं मिलनी चाहिए.’ गिलानी ने एक बार फिर कहा कि वह न्यायपालिका और सेना समेत किसी भी संस्था के खिलाफ नहीं हैं.
शीर्ष न्यायालय ने 16 जनवरी तक सरकार द्वारा भ्रष्टाचार के मामले को दोबारा शुरू नहीं करने पर उसके छह परिणाम सुझाए हैं. इस मामले में सुनवायी की अगली तिथि 16 जनवरी है. कानून विशेषज्ञों का मानना है कि न्यायालय अपने आदेशों को लागू कराने के लिए संविधान के अनुच्छेद 190 का प्रयोग कर सकती है.
संविधान के इस अनुच्छेद के अनुसार, पाकिस्तान में सभी कार्यपालिका और न्यायपालिका संस्थाओं को उच्चतम न्यायालय के सहायक के तौर पर काम करना चाहिए. कुछ संविधान विशेषज्ञों का मानना है कि अनुच्छेद 190 के तहत न्यायालय अपने निर्णयों को लागू कराने के लिए सेना की मदद ले सकता है.