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बीकानेर का एक गांव जो भोग रहा है अभिशाप

जब वह 14 साल पहले जन्मी थी तो उसके माता-पिता शमुद्दीन और हम्दो बानो ने उसका नाम हिंदी फिल्मों की गायिका शमशाद बेगम के नाम पर रखा था. एक साल बाद उन्हें पता चला कि वह गूंगी और बहरी है तथा मानसिक रूप से भी स्वस्थ नहीं है.

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जब वह 14 साल पहले जन्मी थी तो उसके माता-पिता शमुद्दीन और हम्दो बानो ने उसका नाम हिंदी फिल्मों की गायिका शमशाद बेगम के नाम पर रखा था. एक साल बाद उन्हें पता चला कि वह गूंगी और बहरी है तथा मानसिक रूप से भी स्वस्थ नहीं है. आज उस लड़की को अलग-थलग रखा जाता है क्योंकि उसे गुस्से के दौरे पड़ते हैं. उसके इर्दगिर्द के माहौल में दर्द बसा हुआ है, जहां उसकी तरह के कई लोग रहते हैं. बीकानेर की 2,200 मुस्लिम आबादी वाले कुम्हारों की बस्ती पंजाबीगिरान में शमुद्दीन और हम्दो कोई इकलौते बदकिस्मत दंपती नहीं हैं. बस्ती के 350 घरों के ज्‍यादातर निवासी ईंट लदाई का काम करते हैं. इस बस्ती की लगभग 4 फीसदी आबादी शारीरिक विकलांगता की शिकार है, जबकि इस बीमारी से संबंधित राज्‍य का औसत 1 फीसदी से भी कम है. इसके अलावा, बीकानेर के प्रिंस बिजय मेमोरियल हॉस्पिटल में पंजीकृत 45 थैलेसेमिक मरीजों में से एक-चौथाई इसी इलाके में रहते हैं. और हम्दो उन पांच में से एक मांओं में शामिल है जो विशेष बच्चे को पाल रही हैं.
सादिक अली और समीना के पांच बच्चे हैं-9 वर्षीय मंगु और 7 वर्षीया जाहिदा थैलेसीमिया से पीड़ित हैं और एक वर्षीय रहमत अली भी इसी बीमारी से ग्रस्त पाया गया है. फिर, छह बच्चों की मां जुबैदा है-उसके तीन बच्चों, जिनकी उम्र 21, 18 और 16 साल है, के हाथ-पैर मुड़े-तुड़े हैं. उसका शौहर वली मोहम्मद सड़क पर खोमचा लगाता है. वह गर्मियों में कुल्फी और जाड़े में मूंगफली बेचता है.{mospagebreak} जुबैदा की 14 वर्षीया बेटी सायरा बानो ने, जिसका नाम बॉलीवुड की पूर्व अभिनेत्री पर है, स्कूल की पढ़ाई छोड़कर परिवार की खातिर पैसा कमाने के लिए पापड़ बनाना शुरू कर दिया. उसकी एक विकलांग बहन अपने घर के दरवाजे पर तंबाकू की खैनी बेचती है.
केवल पंजाबीगिरान में ही अनुमानतः 80 लोग, जिनमें ज्‍यादातर बच्चे हैं, विकलांग, थैलेसेमिक या लाइलाज बीमारियों से ग्रस्त हैं. हाल में आयोजित एक शिविर में शारीरिक रूप से विकलांग 61 लोगों की पहचान की गई. 37 घरों के दर-दर जाकर किए गए सर्वेक्षण में 52 लोगों को विकलांग पाया गया. एक अन्य सर्वेक्षण में 52 घरों में 84 बीमार लोगों का पता चला. भरतपुर के जिलाधीश हेमंत गेरा ने वहां और भीलवाड़ा में दो सर्वेक्षण करवाए थे, जिनमें उन्होंने पाया कि दोनों जिलों में 1 फीसदी आबादी शारीरिक रूप से विकलांग है. जिस गांव में सर्वाधिक 2.23 फीसदी मामले पाए गए, वहां मुसलमानों की आबादी 94 फीसदी है.
डॉक्टर इस आनुवांशिक विकृति के लिए मुसलमानों में खून के रिश्तेदारों के बीच विवाह को जिम्मेदार मानते हैं. जयपुर के बालरोग विशेषज्ञ सुशील सांघी का कहना है, ''हमें मुसलमानों और पाकिस्तान के सिंध और पंजाब से जुड़े लोगों के ज्‍यादा मामले मिलते हैं.'' लेकिन गरीब मुसलमानों को अपने परिवारों के बीच शादी करने के खिलाफ जागरूकता फैलाने की कोई कोशिश नहीं की गई है. कभी-कभी थैलेसेमिक लड़के-लड़की की शादी कर दी जाती है, जिससे उनका बच्चा भी थैलेसेमिक ही पैदा होता है. ज्‍यादातर पीड़ित कम उम्र के हैं; कुछ ही लोगों की उम्र 30 वर्ष से अधिक है. 55 वर्षीय अकबर अली को सबसे अधिक उम्र वाला विशेष व्यक्ति माना जाता है. वे अपने मुड़े-तुड़े हाथों से पंसारी की अपनी एक छोटी दुकान चलाते हैं. उनका कहना है कि उनकी पीढ़ी और उससे पहले के बहुत कम लोग इस तरह की विकृतियों के शिकार 'ए थे. पचास वर्षीय इमामदीन भी अली से सहमति जताते हैं; उनके माता-पिता के पांच भाई-बहनों में से कोई भी प्रभावित नहीं हुआ था. {mospagebreak}46 वर्षीय मोहम्मद शकूर का कहना है कि उनके नौ सहोदरों में से केवल अब्दुल पोलियो का शिकार हुआ है. इन पीड़ितों के लिए काम कर रहे स्थानीय भाजपा नेता श्याम सिंह हडला का कहना है, ''इससे यही जाहिर होता है कि गंभीर आनुवांशिक विकृति या दूसरी तरह की विकलांगता वाले बच्चों के जन्म की संभावना बढ़ रही है. यह आपात्‌ स्थिति का रूप ले रही है.''
मानसिक रूप से बीमार 25 वर्षीया नजमा की मां, विधवा हो चुकी जन्नत की दास्तान भी कम दर्द भरी नहीं है. उनकी मुसीबत की अनगिनत कहानियां हैं. जन्नत की बड़ी बेटी बेबी, जो विकलांग थी, कुछ समय पहले मर गई. फिर, 14 वर्षीय मोहम्मद अब्बास है, जो छह भाई-बहनों में इकलौता विकलांग है. एक और मामले में इमामदीन की दो बेटियों में से 20 वर्षीया नीरू के हाथ और पैर मुड़-तुड़ गए हैं. उसकी पड़ोसनों सुल्ताना, माफीना, रजिया, सलमा सबकी उम्र 20 साल से कम है और 30 वर्षीय रफीक, एक-दूसरे के चचेरे-ममेरे भाई-बहन हैं और उन सब के पांव मुड़-तुड़ गए हैं. आजीविका कमाने के लिए ये सब पापड़ बेलते हैं.
एक अन्य मामला खातून का है. वह उस वक्त अपने होश खो बैठी जब उसका बेटा बरकत अली इस हद तक पागल हो गया कि उसे उसके लिए विशेष रूप से बनाए गए कमरे में बांधकर रखा जाने लगा. बरकत अपने पिता असगर को देखते ही उन्हें मारने को दौड़ता है. उनका कहना है, ''मेरी बीवी हमारे बेटे की इस हरकत को बर्दाश्त नहीं कर सकी.'' एक स्थानीय डॉक्टर ने उन्हें सलाह दी कि वे दोनों को जयपुर के मानसिक रोग चिकित्सालय में ले जाएं, लेकिन मदद के लिए न तो उनके पास संपर्क सूत्र हैं, न ही संसाधन हैं. रज्‍जाक अली के छह बच्चों में से 9 वर्षीया मदीना बानो और 11 वर्षीय सलमान गूंगे-बहरे हैं. सलमान मानसिक रूप से भी बीमार है और ह्ढायः आक्रामक हो जाता है, लिहाजा उसे बाहर राजमार्ग पर भागने से रोकने के लिए लोहे की चारपाई से बांध दिया जाता है.{mospagebreak}
स्थानीय प्रशासन उनकी मुसीबतों को बढ़ाने के अलावा कुछ नहीं कर रहा है. उसने उन्हें सिर्फ विकलांगता का प्रमाणपत्र देकर उनके हाल पर छोड़ दिया है और अपने कर्तव्य की इतिश्री कर ली है.  कुछ लोगों को कल्याणकारी संस्थाओं की ओर से व्हीलचेयर दिए गए हैं. हाडला के मामूली प्रयास से एक एनआरआइ ने वली मोहम्मद को 1.5 लाख रु. दान दिया, जिसमें से उन्होंने अपने तीन विकलांग बच्चों के नाम 50,000-50,000 रु. सावधि जमा में डाल दिए. शारीरिक रूप से विकलांग लोगों को प्रति माह 400 रु. मिलते हैं, जिससे बमुश्किल उनकी जरूरतें पूरी हो पाती हैं. राज्‍य सरकार को पुनर्वास और रोकथाम के प्रयास करने की जरूरत है. अन्यथा यह समुदाय और इसकी भावी पीढ़ियां बीमारियों का घर बनी रहेंगी.

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