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NCTC को आईबी से बाहर रखने पर विचार संभव: चिदंबरम

विभिन्न राज्यों द्वारा मौजूदा प्रारूप में एनसीटीसी का विरोध किए जाने के बीच गृहमंत्री पी. चिदंबरम ने आश्वस्त किया है कि आतंकवाद विरोधी निकाय को खुफिया ब्यूरो (आईबी) के दायरे से बाहर रखे जाने के मुद्दे पर फिर से विचार किया जाएगा.

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पी. चिदंबरम
पी. चिदंबरम

विभिन्न राज्यों द्वारा मौजूदा प्रारूप में एनसीटीसी का विरोध किए जाने के बीच गृहमंत्री पी. चिदंबरम ने आश्वस्त किया है कि आतंकवाद विरोधी निकाय को खुफिया ब्यूरो (आईबी) के दायरे से बाहर रखे जाने के मुद्दे पर फिर से विचार किया जाएगा.

मुख्यमंत्रियों के सम्मेलन में अपने समापन भाषण में चिदंबरम ने एनसीटीसी को आईबी के दायरे में रखे जाने के फैसले पर सफाई देने का प्रयास किया. उनका भाषण रविवार को आधिकारिक रूप से जारी किया गया.

उन्होंने कहा, ‘मुझे याद है कि दिसंबर 2009 में जब मैं इस मंच पर था, मैंने यह प्रस्ताव नहीं किया था कि एनसीटीसी को आईबी के तहत स्थापित किया जाना चाहिए. वास्तव में नयी सुरक्षा व्यवस्था निश्चित तौर पर अधिक महत्वाकाक्षी थी लेकिन यह प्रस्ताव नहीं था कि इसे आईबी के तहत होना चाहिए.’

चिदबंरम ने कहा कि इसे आईबी में लाने का फैसला इसलिए किया गया कि मंत्रियों के समूह (जीओएम) ने 2001 में अपनी सिफारिशों में आईबी को देश की नोडल आतंकवाद विरोधी एजेंसी बताया था.

उन्होंने कहा, ‘कई वक्ताओं ने यह जिक्र किया कि एनसीटीसी होनी चाहिए, लेकिन उन्होंने सवाल किया कि इसे आईबी के तहत क्यों रखा जा रहा है? निश्चित तौर पर इस मामले में पुनर्विचार किए जाने की जरूरत है और हम निश्चित रूप से ऐसा करेंगे.’

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चिदंबरम ने कहा कि वह एनसीटीसी पर विचार विमर्श के लिए खुले दिमाग से आए थे. देश में आतंकवाद के खतरे का सामना करने के लिए उन्होंने एनसीटीसी को काफी महत्वपूर्ण बताया. उन्होंने कहा, ‘मैं खुले दिमाग से इस बैठक में आया हूं. मैं आपको आश्वास्त करता हूं कि सरकार द्वारा कोई फैसला किए जाने के पूर्व आपके सभी सुझावों पर सावधानीपूर्वक विचार किया जाएगा.’

चिदंबरम ने कहा, ‘हम उन दोनों पर गंभीरता से विचार करेंगे जिन्होंने प्रस्ताव का जोरदार समर्थन किया और जिन्होंने यह सुझाव दिया कि इसे खारिज कर दिया जाना चाहिए.’ एनसीटीसी जैसी एजेंसी की वकालत करते हुए उन्होंने कहा कि देश में आईबी जैसी खुफिया एजेंसी और एनआईए जैसी जांच एजेंसी दोनों है.

चिदंबरम ने कहा, ‘कानून व्यवस्था के प्रशासन की पारंपरिक व्यवस्था के तहत खुफिया एजेंसियों और जांच एजेंसियों के बीच पुलिस आती है. लेकिन पिछले साढ़े तीन साल के दौरान मेरा अनुभव बताता है कि हमें सिर्फ पुलिस संगठन की ही जरूरत नहीं है बल्कि हमें एक आतंकवाद निरोधक संगठन की जरूरत है.’

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