मध्य प्रदेश में बढ़ते तापमान के साथ पानी की समस्या भी बढ़ती जा रही है, कहीं पानी के लिए लोगों को पहाड़ चढ़ना पड़ रहा है तो कहीं पानी को चोरी से बचाने के लिए पानी पर ताला लगाना पड़ रहा है. पानी की किल्लत से जूझता सीहोर जिले का पाटनी गांव जहां लोग गंदा पानी पीने को मजबूर हैं. 1500 आबादी के इस गांव में पानी की एक ही छोटी टंकी है लेकिन उसकी सप्लाई सभी घरों में नहीं है. (प्रतीकात्मक तस्वीर)
एएनआई के मुताबिक, पाटनी गांव की महिलाएं बताती हैं कि ये सुबह पीने का पानी कुंए से लाती हैं तो दिन में झीरी (पानी के कुदरती गड्ढे) से पानी भरतीं हैं. झीरी का पानी काफी गंदा है जिसका इस्तेमाल वो नहाने और कपड़े धोने और मवेशियों के लिए करतीं हैं, और कभी-कभी उन्हें यही पानी पीना भी पड़ता है. पीने के पानी के लिए महिलाओं को घर से तकरीबन 1 किलोमीटर दूर जाना पड़ता है बावजूद उसके गंदा पानी ही इनके हाथ लगता है. (प्रतीकात्मक तस्वीर)
पाटनी ग्राम के सरपंच इकबाल बताते हैं कि गांव में सबसे बड़ी समस्या पानी की है हमारे गांव में एक टंकी है एक पंप है उससे पूर्ति हो नहीं पा रही है पंद्रह सौ मकानों की आबादी है. हमारी सबसे बड़ी जरूरत तो पानी की है सबसे पहले पानी चाहिए. अगर एक टंकी, एक पंप और हो जाए तो हमारे गांव की समस्या दूर हो सकती है. पानी की व्यवस्था हो नहीं पा रही है. आवेदन जगह-जगह दे रहे हैं हमारा काम है आवेदन देने और मांग करने का. सरकार का काम है पूर्ती करने का. (प्रतीकात्मक तस्वीर)
सरपंच इकबाल अधिकारियों की अनदेखी का ज़िक्र करते हुए बताते हैं कि पानी के साथ-साथ पाटनी गांव के लोग प्रधानमंत्री आवास योजना का भी लाभ नहीं ले पा रहे हैं, प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत इन्होंने जो सर्वे करवाया था उसके तहत 447 परिवार ऐसे सामने आए थे जो लोग कच्चे मकान में रहते हैं और जिन्हें पक्के मकानों की आवश्यकता है. सभी की डिटेल सरपंच ने जिला मुख्यालय भेजी थी लेकिन बीते 6 साल में सिर्फ 9 आवास ही स्वीकृत हुए हैं. (प्रतीकात्मक तस्वीर)
सरपंच इक़बाल का कहना है कि यहां लोग इस लायक नहीं हैं कि अपने मकान खुद बना सकें. छोटे-छोटे किसान घर के बच्चों खिलाए या मकान बनाएं. आंधी तूफान आता है तो घर में चढ़ी हुई पल्ली (प़ॉलीथीन) भी उड़ जाती हैं. भोपाल जिले से सटा सीहोर जिला राजधानी से महज 28 किलोमीटर दूर है लेकिन यहां न साफ पानी की उपलब्धता है और न ही लोगों को सरकारी योजनाओं का लाभ मिल रहा है. जो यहां के लोगों को मिलना चाहिए ये उससे भी महरूम हैं. (प्रतीकात्मक तस्वीर)