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वो खतरा जिसे सभी कर रहे नजरअंदाज, फिर मच सकती है चमोली जैसी तबाही

चमोली जैसी तबाही
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बीते महीने ग्लेशियर टूटने से उत्तराखंड के चमोली में जो आपदा आई थी उसके लिए ग्लोबल वॉर्मिंग को भी एक प्रमुख वजह माना गया था. पर्यावरण विशेषज्ञों के मुताबिक अन्य ग्लेशियरों में भी झीलों का स्तर बढ़ रहा है जिस पर अगर समय रहते ध्यान नहीं दिया गया तो आने वाले समय में भी तबाही मच सकती है. (सभी तस्वीरें सांकेतिक हैं)

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बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक विशेषज्ञों ने बताया है कि ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से करोड़ों टन बर्फ पिघल रही है. उनका मानना है कि ग्लेशियर पिघलते हैं या फिर पतले हो जाते हैं तो ये खतरनाक हो जाते हैं. ये पहाड़ों की खड़ी दीवार से चिपक जाते हैं और जब भी ढहते हैं तो बड़ी आपदा लाते हैं.

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जानकारों के मुताबिक पतले ग्लेशियर पहाड़ के नीचे और उसके आसपास के जमीन को भी अस्थिर कर सकते हैं. इससे भूस्खलन और चट्टान गिरने जैसी घटनाएं संभव हैं. इतना ही नहीं वैज्ञानिकों के मुताबिक इससे नदी और नालों में अवरोध पैदा हो सकता है जिससे थोड़े समय बाद ये नदियां भारी तबाही ला सकती है.

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वैज्ञानिक मानते हैं कि हिमालय पर्वत श्रृंखला में लगातार बढ़ोतरी हो रही है और इनमें भूकंप कई बार इनकी ढलानों को अव्यवस्थित कर देते हैं. ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव से पहाड़ों पर होने वाली बर्फबारी और वर्षा के पैटर्न में बदलाव आ जाता है जिससे पहाड़ कमजोर होने लग जाते हैं. ऐसे में ग्लेशियर का पिघलना स्थिति को और खराब बना देता है.

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हाल ही में पहाड़ों को लेकर किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि 1999 से लेकर 2018 के बीच दुनिया भर में पहाड़ों में होने वाले भूस्खलन के लिए ग्लेशियरों का पिघलना सबसे प्रमुख कारण है. हिमालय, हिंदूकुश पर्वत श्रृंखला, पामीर सहित कई पहाड़ों पर रिसर्च के बाद वैज्ञानिक इस निष्कर्ष पर पहुंचे थे.

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