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कोरोना से ठीक होने वालों को एक साल तक इस बीमारी का खतरा

कोरोना से ठीक होने वालों को एक साल तक इस बीमारी का खतरा
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कोरोना वायरस से संक्रमित होने के बाद जान बचाने में कामयाब रहने वाले लोगों को एक साल तक सेप्सिस बीमारी होने का खतरा है. ब्रिटेन के विशेषज्ञों ने Sepsis के खतरों को देखते हुए सरकार और आम लोगों के लिए चेतावनी जारी की है और शुरुआत में ही बीमारी को पहचानने की अपील की है.

कोरोना से ठीक होने वालों को एक साल तक इस बीमारी का खतरा
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सेप्सिस तब होती है जब शरीर का इम्यून सिस्टम काफी अधिक रिएक्ट करता है. इसकी वजह से मरीज का कोई अंग काम करना बंद कर सकता है और मौत भी हो सकती है. विशेषज्ञों का मानना है कि कोरोना वायरस शरीर के इम्यून सिस्टम को खराब कर सकता है जिसकी वजह से भविष्य में संक्रमण होने पर इम्यून सिस्टम सही से काम नहीं करेगा. ये स्थिति कई सालों तक रह सकती है.
कोरोना से ठीक होने वालों को एक साल तक इस बीमारी का खतरा
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द सन की रिपोर्ट के मुताबिक, यूके सेप्सिस ट्रस्ट (UKST) ने कोरोना को हराने में कामयाब रहने वाले लोगों से अपील की है कि वे Sepsis के लक्षणों के बारे में जानकारी जुटाएं और लक्षण आने पर शुरुआत में ही डॉक्टरों से संपर्क करें.
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कोरोना से ठीक होने वालों को एक साल तक इस बीमारी का खतरा
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यूके सेप्सिस ट्रस्ट की रिपोर्ट के मुताबिक, कोरोना की वजह से हॉस्पिटल में भर्ती रहने वाले हर पांच में से एक व्यक्ति को एक साल तक सेप्सिस बीमारी का गंभीर खतरा है. UKST का अनुमान है कि ब्रिटेन में करीब एक लाख ऐसे लोग होंगे जिन्हें कोरोना के इलाज के बाद हॉस्पिटल से छुट्टी मिलेगी. इनमें से कुल 20 हजार लोगों को सेप्सिस बीमारी का गंभीर खतरा रहेगा.
कोरोना से ठीक होने वालों को एक साल तक इस बीमारी का खतरा
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यूके सेप्सिस ट्रस्ट ने सरकार से भी मांग की है कि वे लोगों को जागरुक करने के लिए कैंपेन शुरू करें ताकि बीमारी शुरुआत में ही पकड़ में आ सके और हॉस्पिटल में समय पर इलाज हो सके. ट्रस्ट के फाउंडर डॉ. रॉन डेनियल्स ने कहा कि कोरोना के हल्के लक्षण वाले व्यक्ति को भी सेप्सिस के बारे में जानकारी रखनी चाहिए.
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डॉक्टरों के मुताबिक, सेप्सिस के लक्षणों में शामिल हैं- लटपटाकर बोलना, कंफ्यूजन होना, मांसपेशियों और जोड़ों में काफी दर्द होना, पूरे दिन पेशान न आना, सांस लेने में गंभीर तकलीफ, ऐसा महसूस करना कि अब जान नहीं बचेगी और स्किन का रंग बदलना. डॉक्टरों का कहना है कि शुरुआत में बीमारी पकड़ में आने पर बेहतर इलाज किया जा सकता है.
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