'अब मैं और नहीं झेल सकता, प्लीज या तो मुझे घर ले चलो या फिर अस्पताल में भर्ती करा दो, मैं सांस भी नहीं ले पा रहा हूं'. ये आखिरी शब्द उसी 52 साल के कारोबारी के हैं जो अब इस दुनिया में नहीं हैं. आखिरी बातचीत उन्होंने बेंगलुरु के एक अस्पताल के गेट पर अपने भतीजे से की थी. उनकी मौत सिर्फ इसलिए हो गई क्योंकि शहर में मौजूद 50 अस्पतालों में से 18 अस्पतालों ने बिस्तर की उपलब्धता नहीं होने की बात कहकर भर्ती करने से इनकार कर दिया था.