अगर आप इतिहास के शौकीन हैं और घूमते-घूमते भारत की असली आत्मा को महसूस करना चाहते हैं, तो ये जगहें आपके ट्रैवल लिस्ट में जरूर होनी चाहिए. यहां सिर्फ पत्थर की इमारतें नहीं, बल्कि सदियों पुरानी कहानियां, राजा-महाराजाओं की विरासत और समय से भी मज़बूत वास्तुकला छिपी है. मुगलों से भी पहले बनी ये धरोहरें आज भी उतनी ही शानदार और भव्य दिखती हैं जितनी कभी थीं. तो आइए जानते हैं भारत की उन ऐतिहासिक जगहों के बारे में, जो हजार साल बाद भी अडिग खड़ी हैं. वक्त बदल गया, लेकिन इनकी शान नहीं बदली.
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मध्य प्रदेश के सांची में स्थित यह विशाल स्तूप दुनिया के सबसे पुराने और ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण बौद्ध स्मारकों में से एक है. ऐसा कहा जाता है कि इस स्तूप का निर्माण तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में महान सम्राट अशोक ने करवाया था. इसका विशाल गुंबद भगवान बुद्ध के अवशेषों को संजोए हुए है. इसकी सबसे बड़ी खूबसूरती इसके सुंदर नक्काशीदार प्रवेश द्वार हैं, जो यात्रियों और फोटोग्राफरों को बहुत आकर्षित करते हैं.
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यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल घोषित, महाबलीपुरम का शोर मंदिर लगभग आठवीं शताब्दी में पल्लव राजा नरसिंहवर्मन द्वितीय ने बनवाया था. यह दक्षिण भारत के सबसे पुराने संरचनात्मक मंदिरों में से एक है. यह बंगाल की खाड़ी के तट पर नाटकीय ढंग से स्थित है. यह पहला ऐसा मंदिर था, जिसे चट्टानों को काटकर नहीं, बल्कि पत्थर के टुकड़ों को जोड़कर बनाया गया, जो उस दौर की इंजीनियरिंग की महारत दिखाता है.
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महाराष्ट्र की एलोरा गुफाओं में स्थित कैलासा मंदिर आठवीं शताब्दी की कला और इंजीनियरिंग का अनोखा नमूना है. यह मंदिर ऊपर से नीचे तक एक ही बड़ी चट्टान को तराशकर बनाया गया है,जो कि भगवान शिव को समर्पित है. माना जाता है कि इसे बनाने के लिए करीब 2 लाख टन चट्टानें हटाई गई थीं, लेकिन यह काम उस समय कैसे हुआ, यह आज भी रहस्य है.
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माना जाता है कि खजुराहो के इन मंदिरों का निर्माण 950 से 1050 ईस्वी के बीच चंदेल वंश ने करवाया था. ये मंदिर अपनी खूबसूरत मूर्तियों और बारीक नक्काशी के लिए पूरी दुनिया में मशहूर हैं. पहले यहां 85 मंदिर थे, लेकिन अब करीब 25 ही बचे हैं. यहां हर दीवार पर देवी-देवताओं और नर्तकियों की नक्काशी डिजाइन की गई है, जो भौतिक और आध्यात्मिक जीवन के बीच संतुलन को दर्शाती है.
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बिहार में स्थित बराबर गुफाएं, भारत की सबसे पुरानी संरचनाओं में गिनी जाती हैं. ऐसा माना जाता है कि ये गुफाएं तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व की हैं, जो सम्राट अशोक के शासनकाल के दौरान ठोस ग्रेनाइट से तराशी गई थीं. इन गुफाओं का आंतरिक भाग इतना ज्यादा पॉलिश किया गया है कि आज भी शीशे जैसा चमकता है. यह सादगी में भव्यता और प्राचीन पाषाण वास्तुकला की शुरुआती महारत का प्रतीक है.
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