भारत के प्रमुख शक्ति पीठों में से एक कामाख्या देवी मंदिर असम राज्य की राजधानी गुवाहाटी के निकट नीलाचल पर्वत पर स्थित है. यह मंदिर देवी शक्ति के तांत्रिक स्वरूप को समर्पित है और इसे 51 शक्तिपीठों में अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है. मान्यता है कि सती देवी के शरीर का योनि भाग इसी स्थान पर गिरा था, जिसके कारण यह स्थल शक्ति उपासना का प्रमुख केंद्र बन गया (Shakti Peeth Kamakhya Temple).
कामाख्या देवी को इच्छा शक्ति की देवी माना जाता है. यहां देवी की पूजा मूर्ति के रूप में नहीं, बल्कि एक प्राकृतिक योनि आकार की शिला के रूप में की जाती है, जो वर्षभर जल से आच्छादित रहती है. यही विशेषता इस मंदिर को अन्य मंदिरों से अलग बनाती है. मंदिर में वैदिक परंपरा के साथ-साथ तांत्रिक साधना का भी विशेष महत्व है.
मंदिर का वर्तमान स्वरूप 16वीं शताब्दी में अहोम राजा नरनारायण द्वारा पुनर्निर्मित कराया गया था. इसकी वास्तुकला में नागर शैली की झलक मिलती है, जिसमें शिखर, गर्भगृह और मंडप प्रमुख हैं. मंदिर परिसर में दस महाविद्याओं के अलग-अलग मंदिर भी स्थित हैं.
कामाख्या मंदिर का सबसे प्रसिद्ध पर्व अंबुबाची मेला है, जो हर वर्ष जून माह में आयोजित होता है. इस दौरान यह माना जाता है कि देवी रजस्वला होती हैं और मंदिर के कपाट तीन दिन के लिए बंद कर दिए जाते हैं. इस मेले में देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु और साधक पहुंचते हैं.
धार्मिक मान्यताओं के साथ-साथ कामाख्या मंदिर आध्यात्मिक ऊर्जा का केंद्र भी माना जाता है. भक्तों का विश्वास है कि यहां सच्चे मन से की गई प्रार्थना अवश्य फल देती है. यही कारण है कि कामाख्या देवी मंदिर न केवल असम, बल्कि पूरे भारत में आस्था, शक्ति और साधना का प्रतीक है.
देश भर में नए साल के मौके पर मंदिरों में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ रही है. ऐसे में सुरक्षा और देख रेख बढ़ा दी गई है. कामाख्या मंदिर में भी नए साल से पहले श्रद्धालुओं की भारी भीड़ देखने को मिली, जहां लाइनों की लंबी कतार में श्रद्धालु खड़े होकर माता के दर्शन करने के लिए इंतजार करते दिखे.