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लाखों लोग कर रहे हैं ये गलती! सेकेंड हैंड स्मार्टफोन खरीदने से पहले जान लें पूरी सच्चाई

स्मार्टफोन की कीमतें बढ़ने वाली हैं. इस वजह से लोग महंगे फोन सस्ती कीमत पर पाने के लिए सेकंड हैंड मार्केट की तरफ जाएंगे. वैसे भी भारत में कई स्मार्टफोन्स नए से ज्यादा सेकेंड हैंड ही मिलते हैं. लेकिन सेकेंड हैंड फोन मार्केट ट्रिकी भी है, इसलिए अगर आप यूज्ड फोन खरीदने का मन बना रहे हैं तो इन टिप्स पर जरूर गौर करें.

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सेकंड हैंड फोन खरीदने से पहले जान लें ये बातें
सेकंड हैंड फोन खरीदने से पहले जान लें ये बातें

नया स्मार्टफोन हर किसी को चाहिए, लेकिन हर बार नया फोन खरीदना जेब पर भारी पड़ सकता है. यही वजह है कि आजकल सेकेंड हैंड और रिफर्बिश्ड स्मार्टफोन का ट्रेंड तेज़ी से बढ़ रहा है. 

ऑनलाइन प्लेटफॉर्म हों या लोकल मोबाइल मार्केट, हर जगह कम दाम में फ्लैगशिप फोन का लालच दिया जाता है. लेकिन सस्ता फोन अगर बाद में सिरदर्द बन जाए, तो पूरा सौदा घाटे का हो सकता है.  इसलिए सेकेंड हैंड या रिफर्बिश्ड स्मार्टफोन खरीदने से पहले कुछ अहम बातों को समझना बेहद ज़रूरी है.

फ़ोन की पहचान

सबसे पहले फोन की लीगल पहचान को लेकर सतर्क रहना चाहिए. भारत में हर मोबाइल फोन का एक यूनिक IMEI नंबर होता है, जिससे ये पता चलता है कि फोन चोरी का तो नहीं है. अगर चोरी का फोन है और आपने उसे खरीद लिया है तो पुलिस आप तक भी पहुंच सकती है. 

सरकार और टेलीकॉम रेगुलेटर की गाइडलाइंस के मुताबिक, चोरी या ब्लैकलिस्टेड IMEI वाला फोन कभी भी नेटवर्क से ब्लॉक हो सकता है. ऐसे में खरीदने से पहले IMEI नंबर को CEIR पोर्टल या नेटवर्क ऑपरेटर के ज़रिये ज़रूर वेरिफाई करना चाहिए. अगर IMEI से जुड़ी कोई गड़बड़ी है, तो ऐसे फोन से दूरी बनाना ही बेहतर है.

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फिजिकल कंडीशन

इसके बाद आता है फोन की फिजिकल कंडीशन. स्क्रीन पर हल्की स्क्रैच आम बात हो सकती है, लेकिन अगर डिस्प्ले में शैडो, लाइन, टच लैग या कलर ब्लीड जैसी समस्या दिखे, तो ये बड़ा रेड फ्लैग है. 

बॉडी में डेंट, मुड़ा हुआ फ्रेम या ढीले बटन इस बात का संकेत हो सकते हैं कि फोन गिर चुका है या रफ यूज़ में रहा है. कैमरा लेंस, स्पीकर ग्रिल और चार्जिंग पोर्ट को भी ध्यान से देखना चाहिए, क्योंकि यहीं से नमी और धूल अंदर जाती है.

बैटरी हेल्थ

आज के स्मार्टफोन में बैटरी हेल्थ सबसे अहम फैक्टर बन चुकी है. सेकेंड हैंड फोन में बैटरी अक्सर सबसे पहले कमजोर होती है. अगर बैटरी जल्दी ड्रेन हो रही है, फोन गर्म हो रहा है या चार्ज बहुत स्लो ले रहा है, तो आगे चलकर बैटरी रिप्लेसमेंट का खर्च जुड़ सकता है. कुछ ब्रांड बैटरी हेल्थ का डेटा सेटिंग्स में दिखाते हैं, जबकि दूसरे मामलों में सर्विस सेंटर या थर्ड पार्टी ऐप से बैटरी की स्थिति चेक करनी पड़ती है.

सिर्फ हार्डवेयर ही नहीं, सॉफ्टवेयर और सिक्योरिटी भी उतनी ही ज़रूरी है. फोन में पहले से किसी और का Google या Apple अकाउंट लॉग-इन न हो, ये ज़रूर चेक करें. 

अगर फैक्ट्री रीसेट के बाद भी पुराना अकाउंट मांगता है, तो इसका मतलब है कि फोन ठीक से अनलिंक नहीं हुआ है. ऐसे फोन भविष्य में लॉक हो सकते हैं. साथ ही ये भी देखना चाहिए कि फोन को अभी सिक्योरिटी अपडेट मिल रहे हैं या नहीं, क्योंकि पुराने और अनसपोर्टेड फोन साइबर फ्रॉड और डेटा चोरी के लिए ज्यादा रिस्की होते हैं.

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रिफर्बिश्ड के मायने

रिफर्बिश्ड फोन खरीदते वक्त ये समझना ज़रूरी है कि रिफर्बिश्ड का मतलब हर जगह एक जैसा नहीं होता. कुछ प्लेटफॉर्म फोन को अच्छे से टेस्ट करके, खराब पार्ट्स बदलकर और क्वालिटी चेक के बाद बेचते हैं, जबकि कुछ जगह सिर्फ साफ-सफाई करके फोन को रिफर्बिश्ड बता दिया जाता है. 

इसलिए वारंटी और रिटर्न पॉलिसी को ध्यान से पढ़ना चाहिए. कम से कम 6 महीने की वारंटी मिल रही हो, तो रिस्क काफी हद तक कम हो जाता है.

एक और अहम पहलू है फोन का नेटवर्क और हार्डवेयर टेस्ट. कॉलिंग, माइक्रोफोन, स्पीकर, Wi-Fi, Bluetooth, GPS और फिंगरप्रिंट या फेस अनलॉक जैसे फीचर्स को मौके पर ही टेस्ट करना चाहिए. कई बार फोन दिखने में ठीक लगता है, लेकिन अंदर से सेंसर या नेटवर्क मॉड्यूल में दिक्कत होती है, जो बाद में सामने आती है.

कीमत को लेकर ध्यान दें

कीमत को लेकर भी जल्दबाज़ी नहीं करनी चाहिए. अगर कोई फोन मार्केट रेट से बहुत सस्ता मिल रहा है, तो उसके पीछे कोई न कोई वजह ज़रूर होती है. एक्सपर्ट्स के मुताबिक, सेकेंड हैंड फोन की कीमत उसकी कंडीशन, उम्र और ब्रांड सपोर्ट के हिसाब से तय होनी चाहिए. बिना बिल, बॉक्स और एक्सेसरीज़ वाला फोन सस्ता जरूर हो सकता है, लेकिन रिस्क भी उतना ही ज्यादा होता है.

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आखिर में सबसे ज़रूरी बात, भरोसेमंद सोर्स से खरीदारी. चाहे ऑनलाइन प्लेटफॉर्म हो या ऑफलाइन दुकान, वहां की रेटिंग, रिव्यू और आफ्टर-सेल्स सपोर्ट को ज़रूर देखना चाहिए. कैश में जल्दबाज़ी में डील करने से बेहतर है कि लिखित बिल और ट्रांजैक्शन प्रूफ के साथ खरीदारी की जाए.

कुल मिलाकर, सेकेंड हैंड या रिफर्बिश्ड स्मार्टफोन एक समझदारी भरा फैसला हो सकता है, लेकिन तभी जब खरीदने से पहले पूरी जांच की जाए. थोड़ी सी सावधानी आपको पैसे की बचत के साथ-साथ बड़े नुकसान से भी बचा सकती है.

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