यह सवाल अब जोर पकड़ रहा है कि भारतीय क्रिकेट टीम का बॉस कौन है. टीम की इंग्लैंड के हाथों शर्मनाक पराजय के बाद बीसीसीआई ने पूर्व कप्तान रवि शास्त्री को वहां भेजा ताकि स्थिति काबू में आए लेकिन फिलहाल कुछ स्पष्ट नहीं हो पा रहा है.
बोर्ड ने रवि शास्त्री को सारे अधिकार देकर इंग्लैंड भेजा और कहा कि वह सारे फैसले लेने के लिए अधिकृत हैं. लेकिन शास्त्री ने एक इंटरव्यू में साफ कहा कि धोनी ही टीम के लीडर हैं और वह सब कुछ तय करेंगे. उधर, धोनी ने अपने कोच डंकन फ्लेचर को आगे बढ़ा दिया और कहा कि वह बॉस हैं और वर्ल्ड कप तक टीम की कोचिंग करेंगे. अब सवाल उठ रहा है कि टीम का असली बॉस कौन है, शास्त्री, धोनी या फ्लेचर?
इस मामले में नया मोड़ भी आ गया है. धोनी के बयान के बाद बीसीसीआई ने नाराजगी जताई है और कहा है कि बोर्ड की अगली बैठक में धोनी के बयान पर विचार होगा. लेकिन यह सभी जानते हैं कि भारतीय क्रिकेट कप्तान के खिलाफ कोई कदम उठाना किसी के बस का नहीं है और धोनी के अलावा कप्तान पद के लिए कोई विकल्प भी नहीं है.
धोनी की बातें बीसीसीआई को माननी ही पड़ेगी. भले ही बोर्ड कह रहा है कि शास्त्री वहां भारतीय टीम की पराजय का पता लगाने गए हैं और उसमें सुधार के उपाय बताएंगे. लेकिन बात साफ है कि शास्त्री वहां कुछ कर नहीं सकते क्योंकि टीम के सारे टॉप बैट्समैन फ्लॉप हो चुके हैं.
ऐसा लगता है कि धोनी और बीसीसीआई के आला अफसरों में पटरी नहीं बैठ रही है. धोनी हमेशा की तरह अपने ढंग से काम कर रहे हैं. बीसीसीआई अब चाहती है कि धोनी शास्त्री के निर्देश पर चलें. लेकिन ऐसा होता नहीं लगता है. धोनी अभी भी फ्लेचर को महत्व दे रहे हैं.
सच तो यह है कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ियों को कोई भी कोच कुछ खास समझा नहीं सकता. उन्हें उनकी गलतियों के बारे में बताया जा सकता है या उनकी कमियों के बारे में. लेकिन जब खिलाड़ी कुछ समझ ही न पा रहा हो जैसा इंग्लैंड में हो रहा है तो कोच क्या कर सकता है?
अब सभी की निगाहें अगले वन डे पर है. अगर भारतीय टीम बढ़िया प्रदर्शन करती है तो फिर सारे विवाद खत्म हो जाएंगे. अगर टीम जीतती है तो धोनी, फ्लेचर और शास्त्री की जय-जयकार हो जाएगी. वैसे भी इंग्लैंड की टीम वन डे में कोई बहुत अच्छी टीम नहीं मानी जाती है.
इंग्लैंड के पूर्व कप्तान केविन पीटरसन ने कहा कि भारतीय क्रिकेट टीम के विदेशों में पराजय का कारण यह है कि अब भारतीय इंग्लिश काउंटी क्रिकेट नहीं खेलते हैं. काउंटी क्रिकेट खेलने से बैट्समैन और बॉलर दोनों ही वहां की तकनीक से रूबरू होते हैं. यह जरूरी है. पहले हर भारतीय खिलाड़ी वहां जरूर खेलता था और उससे उनके खेल में निखार आता था.