भारत के न्यूजीलैंड दौरे से पहले क्रिकेट जानकारों का मानना था कि अगर मेजबान टीम इक्के-दुक्के मुकाबले जीत ले और बाकी मैचों में टक्कर भी दे दे तो यह उसके लिए अच्छा प्रदर्शन माना जाएगा. अब आते हैं स्कोरलाइन पर. हारने की लत लगा चुके धोनी के धुरंधर वेलिंगटन में खेले गए पांचवें वनडे में भी पस्त हो गए. सीरीज के बाद न्यूजीलैंड-4 और भारत-0. सीरीज गंवाई. एक नंबर का ताज गंवाया और बची-खुची इज्जत भी चली गई. वो गालिब का एक शेर आपने जरूर सुना होगा... 'बड़े बेआबरू होकर तेरे कूचे से निकले हम'.
क्रिकेट में आंकड़े बड़े अहम होते हैं. क्योंकि जीत-हार का फैसला रनों और विकेटों से तय होता है. निजी उपलब्धियां भी तो इन्हीं आंकड़ों की मोहताज होती हैं. शुरुआत करते हैं होनहार फिरकीबाज आर अश्विन से. 5 मैच में कुल 44 ओवर. विपक्षियों पर इतने मेहरबान कि 227 की औसत से 227 रन लुटाये. गिफ्ट में भारतीय टीम को 1 विकेट भी दिया. हरभजन सिंह और अमित मिश्रा भी आज घर बैठे यही सोचते होंगे... हमसे क्या भूल हुई?
गलती तो गौतम गंभीर से भी नहीं हुई थी. पर टीम मैनेजमेंट को शिखर धवन और रोहित शर्मा पर ज्यादा भरोसा था. साउथ अफ्रीका में रन नहीं बनाये तो क्या, कीवियों के यहां अपने घर वाला कमाल दोहराएंगे. जमकर रन बनाएंगे, बदले में टीम को जीत भी दिलाएंगे. पर उम्मीदों का क्या, पूरा होने की गारंटी थोड़े ही है. जीत दिलाना तो दूर, ये तो रन भी न बना सके. धवन साहब ने 4 मैच में जैसे-तैसे कुल 81 बनाए, और टैलेंट का खजाना कहे जाने वाले रोहित शर्मा के बल्ले से 5 मैचों में निकले 145 रनों ने तो अपनों की ही मुश्किल बढ़ा दी. पारी शुरू नहीं हुई कि अगला कौन...अगला कौन? ज्यादा अहम सवाल हो जाता. हर मुकाबले में दर्शक यही सवाल पूछता..अभी धोनी है न...जडेजा आउट तो नहीं हुआ...इतना विश्वास करते हैं दर्शक रोहित और धवन पर.
सुरेश रैना के लिए यह दौरा बहुत अच्छा रहा. वेलिंगटन देखा...ऑकलैंड देखा...और देखा नेपियर. ऐसा नहीं है कि पिछले दौरे पर उन्होंने ये सब नहीं देखा था, पर यादें ताजा होती रहनी चाहिए. भई... कहां यूपी की वही ऊबाऊ सी गलियां और कहां न्यूजीलैंड. नेचुरल खूबसूरती जनाब! क्रिकेट तो बाद में भी खेल लेंगे. बस धोनी की मेहरबानी होनी चाहिए. हमें इनके द्वारा किये गए 3 मैच में कुल 84 रन के योगदान को नहीं भूलना चाहिए.
मुंबई के छोरे अजिंक्य रहाणे में बहुत टैलेंट हैं. कई देशों का टूर कर चुके हैं भारतीय टीम के साथ. ताकि टीम का टैलेंट हंट शो पास कर जाएं. हर बार मुंबई में फ्लाइट में बैठने वक्त यही सोचते होंगे कि इस बार तो जगह पक्की. पर प्रदर्शन ऐसा कि प्लेइंग इलेवन छोड़िए, ड्रेसिंग रूम में भी शामिल करने पर सवाल उठ जाए. 5 मैचों में शुभ 51 रन बनाए हैं तो सवाल तो पूछा ही जाएगा. इतनी दरियादिली क्यों जनाब!?
आज एक अखबार ने टीम के पूर्व कप्तान राहुल द्रविड़ के हवाले से लिखा कि धोनी के पास एक गेंदबाज ऐसा नहीं जिसके पास वो मुश्किल वक्त में जा सकें. सही कहा है कि एक कप्तान ही कप्तान के दर्द समझ सकता है.
सबसे अनुभवी जब मजबूरी बन जाए तो आप क्या करेंगे? धोनी का भी यही हाल है. ईशांत शर्मा, यंग ब्रिगेड के नये खेवनहार. भुवनेश्वर, शमी और वरुण इनकी ओर उम्मीद भरी निगाहों से देखते होंगे. मन ही मन कहते होंगे... सरजी, आप ही हमें रास्ता दिखाओ. पर अनुभव का क्या करें जब टैलेंट ही धोखा देने लेगे. दूसरों को विकेट लेने का गुर क्या सिखाएं जब खुद ही इसके लिए तरस रहे हों. ईशांत शर्मा को देखकर मन में एक ही ख्याल आता है. कहां फंस गए यार! इतने खूबसूरत बाल हैं तुम्हारे. केश काला तेल...या फिर किसी शैंपू का विज्ञापन करो. पैसे भी मिलेंगे और टीम की इज्जत भी बची रहेगी. मैच खेलकर, काहे टीम को विकेट के लिए तरसाते हो.
सेना के बाद बात सेनापति की. किस्मत के धनी धोनी की. मैदान पर कोई भी फैसला कर दें समझो हो गया मास्टर स्ट्रोक. पर ये बातें अब पुरानी हो चुकी हैं. आज कल ये फैसले विरोधियों के लिए मास्टरस्ट्रोक साबित हो रहे हैं. टीम के चयन को ले लीजिए. सीनियर को दरकिनार युवाओं को आगे बढ़ाने के नाम पर टीम को चेन्नई सुपरकिंग्स की फोटो कॉपी बना दी. फिर न्यूजीलैंड की पिच पर दो स्पिनरों पर भरोसा. लगातार फ्लॉप होते खिलाड़ियों के साथ बने रहना. इसे जिद कहते हैं धोनी साहब! टीम फिसड्डियों की जमात बन गई है फिर भी वही पुराना राग अलाप रहे हैं आप...समय चाहिए..थोड़ा और समय चाहिए. आपकी इस दलील के चक्कर में टीम का बंटाधार हो रहा है और हमारी भावनाओं के साथ खिलवाड़. कुछ करिए. रहने दीजिए. दिल तो यही कहता है...आप से न हो पाएगा.